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राष्ट्रपति कोविंद का देश के नाम पहला संबोधन, 10 बड़ी बातें

Location: New Delhi                                                 👤Posted By: PDD                                                                         Views: 21234

New Delhi: भारत के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या के अवसर पर राष्ट्र के नाम संबोधन में देश को न्यू इंडिया के लक्ष्य को हासिल करने के लिए संकल्प लेने का आवाह्न किया. गांधी, नेहरू, नेताजी, पटेल से पहले उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों में क्रांतिकारी नेताओं भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद का नाम लिया, लेकिन भाषण की शुरुआत उन्होंने महिला वीरांगनाओं से की.

राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन के दौरान राष्ट्रपति कोविंद ने क्या कहा, एक नज़र डालते हैं.



1. गांधीजी ने समाज और राष्ट्र के चरित्र निर्माण पर बल दिया था. गांधीजी ने जिन सिद्धांतों को अपनाने की बात कही थी, वे आज भी प्रासंगिक हैं. नेताजी ने 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा' का आह्वान किया तो भारतवासियों ने आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया. नेहरूजी ने सिखाया कि विरासतें और परंपराएं का टेक्नोलॉजी के साथ तालमेल संभव है, और वे आधुनिक समाज के निर्माण में सहायक हो सकती हैं. सरदार पटेल ने हमें राष्ट्रीय एकता और अखंडता के प्रति जागरूक किया, उन्होंने यह भी समझाया कि अनुशासन-युक्त राष्ट्रीय चरित्र क्या होता है. आंबेडकर ने संविधान के दायरे मे रहकर काम करने तथा 'कानून के शासन' की अनिवार्यता के विषय में समझाया. उन्होंने शिक्षा के महत्व पर भी जोर दिया.

2. राष्ट्र निर्माण में जुटे लोगों के साथ सबको जुड़ना चाहिए. सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों का लाभ हर तबके को मिले, इसके लिए काम करना चाहिए. सरकार ने 'स्वच्छ भारत' अभियान शुरू किया है लेकिन भारत को स्वच्छ बनाना हममें से हर एक की जिम्मेदारी है. अनेक व्यक्ति और संगठन, गरीबों और वंचितों के लिए चुपचाप और पूरी लगन से काम कर रहे हैं.

3. देश को 'खुले में शौच से मुक्त' कराना, हर एक की जिम्मेदारी है. सरकार संचार ढांचे को मजबूत बना रही है, लेकिन विकास के नए अवसर पैदा करना, शिक्षा और सूचना की पहुंच बढ़ाना- हममें से हर एक की जिम्मेदारी है. सरकार 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' के अभियान चला रही है, लेकिन बेटियों से भेदभाव न हो, ये सुनिश्चित करना सबकी जिम्मेदारी है.

4. 2022 में हमारी आजादी के 75 साल पूरे होंगे. तब तक 'न्यू इंडिया' के लिए कुछ महत्वपूर्ण लक्ष्य प्राप्त करना हमारा 'राष्ट्रीय संकल्प' है. 'न्यू इंडिया' के बड़े स्पष्ट मापदंड हैं, जैसे सबके लिए घर, बिजली, बेहतर सड़कें और संचार के माध्यम, आधुनिक रेल नेटवर्क, तेज और सतत विकास. न्यू इंडिया' हमारे डीएनए में रचे-बसे मानवतावादी मूल्यों को समाहित करे. 'न्यू इंडिया' ऐसा समाज हो, जो तेजी से बढ़ते हुए संवेदनशील भी हो. ऐसा संवेदनशील समाज, जहां पारंपरिक रूप से वंचित लोग, देश के विकास प्रक्रिया में सहभागी बनें.

5. अपने दिव्यांग भाई-बहनों पर हमें विशेष ध्यान देना है और देखना है कि उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में अन्य नागरिकों की तरह बढ़ने के अवसर मिलें. हम ऐसे 'न्यू इंडिया' का निर्माण कर पाएंगे जहां हर व्यक्ति की पूरी क्षमता उजागर हो सके और वह समाज और राष्ट्र के लिए अपना योगदान कर सके. मुझे भरोसा है कि नागरिकों और सरकार के बीच मजबूत साझेदारी के बल पर 'न्यू इंडिया' के इन लक्ष्यों को हम अवश्य हासिल करेंगे.

6. नोटबंदी के समय जिस तरह आपने कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का समर्थन किया, वह जिम्मेदार और संवेदनशील समाज का ही प्रतिबिंब है. नोटबंदी के बाद ईमानदारी की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है. ईमानदारी की भावना और मजबूत हो, इसके लिए हमें लगातार प्रयास करते रहना होगा.

7. आधुनिक टेक्नॉलॉजी को ज्यादा प्रयोग में लाने की आवश्यकता है. ताकि एक ही पीढ़ी के दौरान गरीबी को मिटाने का लक्ष्य हासिल किया जा सके. न्यू इंडिया में गरीबी के लिए कोई गुंजाइश नहीं. आज जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं, आपसी टकराव और आतंकवाद जैसी कई अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने में भारत अहम भूमिका निभा रहा है.

8. नोटबंदी के समय जिस तरह आपने असीम धैर्य का परिचय देते हुए कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का समर्थन किया, वह एक जिम्मेदार और संवेदनशील समाज का ही प्रतिबिंब है. नोटबंदी के बाद से देश में ईमानदारी की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है. ईमानदारी की भावना दिन-प्रतिदिन और मजबूत हो, इसके लिए हमें लगातार प्रयास करते रहना होगा

9. मैं सब्सिडी का त्याग करने वाले ऐसे परिवारों को नमन करता हूं. उनके इस फैसले के पीछे उनके अंतर्मन की आवाज थी. प्रधान मंत्री की एक अपील पर, एक करोड़ से ज्यादा परिवारों ने अपनी इच्छा से एलपीजी पर मिलने वाली सब्सिडी छोड़ दी.

10. ढाई हजार वर्ष पहले, गौतम बुद्ध ने कहा था, 'अप्प दीपो भव.. यानी अपना दीपक स्वयं बनो. दीपक जब एक साथ जलेंगे तो सूर्य के प्रकाश के समान वह उजाला सुसंस्कृत और विकसित भारत के मार्ग को आलोकित करेगा. हम सब मिलकर आजादी की लड़ाई के दौरान उमड़े जोश और उमंग की भावना के साथ सवा सौ करोड़ दीपक बन सकते हैं.



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