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अब युद्ध के मैदान में इंसानों की जगह मशीनें लड़ेंगी

Location: नई दिल्ली                                                 👤Posted By: Admin                                                                         Views: 13853

नई दिल्ली: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की बदलती प्रकृति युद्ध और रक्षा सहित मानव समाज के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करेगी.



भविष्य में होने वाले युद्धों पर एआई का क्या असर देखने को मिलेगा यह विषय दुनिया के तमाम नीति निर्माताओं, वकीलों और सैन्य अधिकारियों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है.



किसी भी सेना में एआई का प्रयोग इन पांच मुख्य कामों में किया जा सकता है. ये कुछ इस प्रकार हैं, रसद और आपूर्ति प्रबंधन, डाटा एनालिसिस (विश्लेषण), ख़ुफ़िया जानकारी जुटाना, साइबर ऑपरेशन और हथियारों का स्वायत्त सिस्टम.



रसद आपूर्ति और डाटा एनालिसिस में एआई का प्रयोग ज़्यादा नुकसानदायक नहीं होगा क्योंकि असैन्य क्षेत्रों में पहले ही इन पर काफ़ी काम हो चुका है.



कई विशेषज्ञों का मानना है कि साइबर हमलों को रोकने (या फिर उन्हें शुरू करने के लिए भी) के लिए एआई का प्रयोग काफ़ी तेज़ी से आवश्यक होता जा रहा है क्योंकि एआई के ज़रिए साइबर हमलों को आसानी से पकड़ा जा सकता है.



ऊपर बताए गए सेना के पांच कामों में से एआई के लिए सबसे अधिक विवादास्पद काम है, हथियारों का स्वायत्त सिस्टम तैयार करना.



हथियारों के स्वायत्त सिस्टम को किस तरह समझाया जाए फिलहाल तो इसी विषय पर विवाद है, लेकिन ऊपरी तौर पर कहा जाए तो इस सिस्टम के तहत वे हथियार आते हैं तो अपने आप ही कार्य करने में सक्षम होते हैं और इन्हें मनुष्य की अधिक ज़रूरत नहीं पड़ती. इन हथियारों को 'किलर रोबोट' नाम से भी जाना जाता है.







हालांकि, ये हथियार टर्मिनेटर की तरह सैनिकों की जगह तो नहीं ले सकते (कम से कम अभी तो नहीं) लेकिन इन्हें कुछ विशेष कार्य ज़रूर सौंपे जा सकते हैं. आसान शब्दों में कहें तो ये हथियार युद्ध के मैदान में सेना के लिए काफ़ी मददगार साबित हो सकते हैं, विशेषकर उस समय जब एक सैकेंड की देरी में काफ़ी कुछ दांव पर लगा हो और सूचना तंत्र भी सही तरीके से काम नहीं कर रहा हो.



हथियारों का यह सिस्टम मिसाइल डिफेंस सिस्टम से लेकर छोटे ड्रोन के रूप में हो सकते हैं.



इन हथियारों का युद्ध में प्रयोग करने और मानव को ख़त्म करने की वजह से एक नया शब्द इजाद हुआ है, जिसे 'लीथल ऑटोनोमस वेपन सिस्टम' कहा जा रहा है.



हथियारों के इस घातक स्वायत्त सिस्टम पर हाल के दिनों में काफ़ी चर्चा हुई है, इन हथियारों के निर्माण को रोकने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय अभियान भी चलाया गया है. साथ ही संयुक्त राष्ट्र में इन हथियारों के इस्तेमाल पर पिछले साल चर्चा भी हो चुकी है.



इन हथियारों के प्रयोग पर रोक की मांग करने वालों ने इसके दो कारण बताए हैं, एक कानूनी और दूसरा नैतिक.



जहां तक कानूनी कारण का सवाल है तो वह ज़िम्मेदारीपर निर्भर करता है.



फ़िलहाल, मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानून और युद्ध नियमों के अनुसार अगर कोई सैनिक युद्ध के दौरान किसी तरह का अपराध करता है तो इसकी ज़िम्मेदारी उस सैनिक पर या उसके अधिकारी की होती है.



लेकिन अगर किसी मशीन को मनुष्य पर हमला करने के लिए छोड़ दिया जाए और फिर वह मशीन अपने अनुसार अपने लक्ष्य निर्धारित करने लगे तो यहां ज़िम्मेदारी का अभाव पैदा हो जाएगा.



युद्ध के मैदान पर होने वाले किसी भी अपराध या अन्य अनैतिक गतिविधि के लिए एक मशीन को ज़िम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है?



यही वो सवाल है जिसका कोई सटीक जवाब अभी तक किसी के पास नहीं है और इसीलिए इन हथियारों पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी ज़ोर पकड़ रही है.



वहीं दूसरी तरफ़ अगर नैतिक कारणों की बात करें तो यह एक कदम और आगे की बात होगी. दरअसल, युद्ध के मैदान में एक मनुष्य ही दूसरे मनुष्य की हत्या कर सकता है लेकिन एआई के प्रयोग से एक मशीन जब मनुष्य की हत्या करने लगेगी तो यह मनुष्य की गरिमा के ख़िलाफ़ होगा.



क्या बनेगा ड्राइवरलेस टैंक?

इन दोनों कारणों को साथ में देखने पर यह बात निकलकर आती है कि ये घातक हथियार मनुष्यों पर अपना नियंत्रण बनाने लगेंगे. यही पूरे विवाद की जड़ भी है और इसी प्रमुख विषय पर संयुक्त राष्ट्र में चर्चा जारी है.



इन तमाम चर्चाओं और बहसों से यही निकलकर आएगा कि आख़िरकार इन हथियारों को युद्ध के मैदान में उतारा जाए या नहीं.



हालांकि, इन चर्चाओं के बीच भी दुनिया की बड़ी सैन्य ताकतें लगातार एआई सिस्टम को मज़बूत बनाने पर ज़ोर दे रही हैं.



अमरीका का ही उदाहरण लें तो उन्होंने 'प्रोजेक्ट मैवेन' नाम का प्रोग्राम शुरू किया है जो आईएसआईएस के ख़िलाफ़ अमरीकी सेना को बहुत से वीडियो में से संबंधित और ज़रूरी सूचनाएं निकालकर देगा.



इसके अलावा एआई का इस्तेमाल असैन्य क्षेत्रों में भी बहुत हो रहा है और इनका प्रयोग बाद में सेना के ज़रिए भी किया जा सकता है. जैसे ड्राइवरलेस कार का प्रयोग बाद में ड्राइवरलेस टैंक के रूप में किया जा सकता है.



इस तरह यह तय कर पाना बड़ा मुश्किल होगा कि रक्षा क्षेत्र में कहां तक एआई के प्रयोग को नियंत्रित किया जाए.



वहीं, कई देश रक्षा क्षेत्र में एआई का प्रयोग कर उनके सैन्य कौशल में सुधार की गुंजाइशें भी तलाश रहे हैं.



जैसे चीन अपनी सेना को अमरीका के समक्ष मजबूत बनाने के लिए एआई को प्रमुख हथियार के रूप में देखता है. हो सकता है कि आने वाले वक्त में वह इस क्षेत्र में अमरीका से भी आगे निकल जाए.



इसी तरह भारत के रक्षा मंत्रालय ने भी राष्ट्रीय सुरक्षा और भारतीय सेना में एआई के संभावित प्रयोग के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है.



सैन्य ताकतों के बीच लगातार बढ़ती एआई की मांग को देखते हुए कई विशेषज्ञ यह अनुमान लगा रहे हैं कि आने वाले वक़्त में युद्ध के मैदान पर मनुष्य की जगह मशीनें ही लड़ती हुई दिखाई देंगी.



यह देखना होगा कि यह सब कितना जल्दी होता है लेकिन इतना तो तय है कि आने वाले वक़्त में युद्ध का स्वरूप पूरी तरह बदलने वाला है.



- बीबीसी हिन्दी

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