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क्यों चीन के सामानों का बहिष्कार विफल हो जाएगा?

Location: नई दिल्ली                                                 👤Posted By: Digital Desk                                                                         Views: 17399

नई दिल्ली: 13 अक्टूबर, भारत में कुछ नेतागण आजकल चीनी सामानों के बहिष्कार का अभियान चला रहे हैं, लेकिन इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है कि क्यों चीनी सामानों का बहिष्कार सफल नहीं हो सकता।



गौरतलब है कि चीन, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है। भारत के कुल आयात का छठा हिस्सा चीन से आता है, जो साल 2011-12 के दौरान महज 10वां हिस्सा था। इसी दौरान भारत से चीन को होने वाला निर्यात घटकर आधा हो चुका है।



पिछले दो सालों में चीन से आयात में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि पिछले पांच सालों में यह पांच फीसदी बढ़कर 61 अरब डॉलर का हो चुका है।



इसमें पॉवर प्लांट से लेकर सेट टॉप बॉक्स और गणेश की मूर्तियां जैसी कई चीजें शामिल हैं। इसके अलावा तथ्य यह है कि भारत का कुल आयात पिछले पांच सालों में 490 अरब डॉलर से गिरकर 380 अरब डॉलर रह गया है, जिसका मुख्य कारण कच्चे तेल की कीमतों में आई वैश्विक गिरावट है।



भारत से चीन को होने वाला निर्यात वित्त वर्ष 2011-12 में 18 अरब डॉलर था, जो 2015-15 में घटकर 9 अरब डॉलर रह गया है। यहां से मुख्यत: कपास, कॉपर, पेट्रोलियम और इंडस्ट्रियल मशीनरी का निर्यात किया जाता है। भारत से चीन को काफी कम निर्यात होता है यानि जितना हम निर्यात करते हैं उससे छह गुना ज्यादा खरीदते हैं।



वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि चीन से भारत आने वाले सामानों में मुख्यत: मोबाइल फोन, लैपटॉप, सोलर सेल, उर्वरक, कीबोर्ड, डिस्प्ले, कम्युनिकेशन इक्विपमेंट, इयरफोन आदि शामिल हैं।



इसके अलावा चीन से तपेदिक और कुष्ठ रोग की दवाएं, एंटीबायोटिक दवाएं, बच्चों के खिलौने, इंडस्ट्रियल स्प्रिंग, बॉल बेयरिंग, एलसीडी और एलईडी डिस्प्ले, राउटर, टीवी रिमोट और सेट टॉप वाक्स का आयात किया जाता है।



इसके बावजूद बिहार के जनता दल (एकीकृत) के नेता शरद यादव, असम के नवनिर्वाचित वित्त मंत्री हिमंत विश्व शर्मा और हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने 'मेड इन चाइना' सामानों के बहिष्कार की अपील की है।



उदाहरण के लिए यादव ने हाल में ही कहा, "हमारे देश और चीन के बीच का व्यापार असंतुलित हो गया है जो हमारे घरेलू उद्योग के लिए हानिकारक और खतरनाक है।"



विज ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, "लोगों को चीनी सामान नहीं खरीदना चाहिए। इसकी बजाय भारतीय सामान प्रयोग करें। चीन के साथ व्यापार से हमारे देश का नुकसान है। चीन हमारा दोस्त नहीं है। चीन हमसे जो कमाई करता है उससे हथियार खरीदता है। वह हमारे दुश्मनों को भी वही हथियार दे सकता है। इसलिए हमें मेक इन इंडिया पर ध्यान देना चाहिए।"



भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनर और मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने फरवरी 2006 में एक शोध पत्र में चीन को दुनिया का मैनुफैक्चरिंग पॉवर हाउस बताया था। हालांकि भारत अपने इस पड़ोसी जितना विकास करने में नाकाम रहा है। इस शोध पत्र को अमेरिका स्थित नेशनल ब्यूरो ऑफ इकॉनमिक रिसर्च ने प्रकाशित किया है।



विनिर्माण क्षेत्र के सूचकांक से पता चलता है कि भारत अभी भी चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए संघर्ष कर रहा है। जबकि भारत में वित्त वर्ष 2015-16 में कुल रिकार्ड 55 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया, जबकि विनिर्माण क्षेत्र में निजी निवेश अभी भी सुस्त है।



इंडियास्पेंड ने मुंबई के बीचोबीच स्थित आयातित चीनी सामानों के केंद्र मनीष मार्केट का दौरा किया। यहां चीनी उत्पाद सस्ते, थोक में उपलब्ध, खरीदने में आसान और बेहतर तरीके से पैक थे।



एक लैंप वितरक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, "अगर मुझे भारत में बने हुए 50 तरह के एलईडी लैंप सस्ती दर पर मिले तो मैं भला चीनी सामान क्यों खरीदूं। अगर मैं यह सब भारत में खरीदता तो इसकी लागत दोगुनी पड़ती।"



चीन से आयात में बढ़ोतरी का एक कारण उनके बाजार तक पहुंच में आसानी के कारण भी है। उदाहरण के लिए सुमंत कासलीवाल जो मुंबई में कपड़ों का एक ई-कॉमर्स स्टार्टअप चलाते हैं। भारत में दो साल तक कपड़ों की खरीदारी करने के बाद उन्होंने दो साल पहले चीन का रूख किया और उसके बाद से उनकी बिक्री तीन गुना बढ़ गई है।



कासलीवाल कहते हैं चीन में बाजार और उत्पादों को ढूंढने में समय बर्बाद नहीं करना पड़ता। वे महज एक हफ्ते में तीन महीनों का माल खरीद लेते हैं, जिसमें आभूषण से लेकर कपड़े आदि शामिल हैं।



वे कहते हैं, "वाराणसी की आबादी जितना छोटा शहर यीवू में सभी उपभोक्ता सामानों का एक समर्पित बाजार है, जहां सभी तरह की लागत और गुणवत्ता के सामान एक ही जगह मिल जाते हैं। जबकि भारत में हमें बाजार से सामान की खरीदारी करने में हफ्तों लग जाते हैं।"



(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। यह इंडियास्पेंड का निजी विचार है)





-आईएएनएस

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