×

कड़कनाथ को लेकर मप्र और छत्तीसगढ़ आमने सामने

Location: Bhopal                                                 👤Posted By: Admin                                                                         Views: 3721

Bhopal: दोनों राज्य मुर्गे को लेकर अपनी दावेदारी जता रहे. ...



28 मार्च 2018। यूं तो आपने अक्सर मुर्गों की लड़ाई के बारे में सुना होगा जहां दो मुर्गों की लड़ाई में हार जीत पर लोग पैसे लगाते हैं।लेकिन अगर किसी खास मुर्गे को लेकर अगर दो राज्यों के बीच लड़ाई हो जाये तो आप क्या कहेंगे। जी है अपने जायकेदार स्वाद के लिए जाने जाने वाले कड़कनाथ मुर्गे के जीआई टेग पर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लड़ाई चल रही है। यानी दोनों राज्यों का कहना है कि कड़कनाथ मुर्गा हमारा है।



..अपने लजीज और लाजवाब स्वाद के लिए पहचाने जाने वाला कड़कनाथ मुर्गा अब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच विवाद का केंद्र बन गया है।मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले ओर छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में पाया जाने वाला कड़कनाथ मुर्गा के मांस में आयरन और प्रोटीन बहुत ज्यादा पाया जाता है, 900 रुपये से 1500 रुपये किलो मिलने वाले इस कड़कनाथ मुर्गे पर अब इन दोनों राज्यों ने दावा ठोंक है कि इसके जीआई टैग यानी भौगोलिक संकेतक पर हमारा अधिकार है। दोनों राज्यों ने इस काले पंख वाले मुर्गे पर अपना दावा रखते हुए चेन्नई में मौजूद भौगोलिक संकेतक पंजीयन कार्यालय में आवेदन भी दिया है।



मध्य प्रदेश का दावा है कि कड़कनाथ प्रदेश के झाबुआ जिले से ही पैदा हुआ है। झाबुआ जिले के आदिवासी लंबे समय से ईस मुर्गे का प्रजनन करते आये हैं। इसके लिए झाबुआ के गरामीन विकास ट्रस्ट ने आदिवासी परिवारों की ओर से 2012 में ही जीआई टैग के लिए आवेदन दिया था।वहीं छत्तीसगढ़ का दावा है कि दंतेवाड़ा में इन मुर्गों को अनोखे तरीके से पाला जाता है और इसका ययहां उसका संरक्षण ओर प्राकर्तिक प्रजनन होता है। यहां के आदिवासियों को इन मुर्गों के प्रजनन से रोजगार देने के लिए सरकार ने बाकायदा एक कंपनी भी बनाई है जिसने जीआई टेग के लिए आवेदन दिया है।



दरअसल कड़कनाथ अपने काले रंग और काले खून के साथ अपने औषधीय गुणों के चलते दुनिया भर में जाना जाता है। कम फेट ओर प्रोटीन की मात्रा ज्याफ होने के चलते ठंड में इसकी मांग बहुत बढ़ जाती हैं।स्थानीय भाषा में इसे कालीमासी भी कहते है क्योंकि इसका मांस चोंच जुबान टांगे चमड़ी सब काला होता है। कहा जाता है कि डियाबिटीएस ओर दिल के रोगियों के लिए कड़कनाथ बेहतरीन दावा है। इसके अलावा इसमें बी1 बी2 बी6 बी12 भरपूर मात्रा में मिलता है साथ ही इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है। ईसके एक किलो मांस में 184 एमजी होती है जबकि दूसरे मुर्गों में 217 एमजी होती है। साथ ही इसमें 25 से 27 फीसदी प्रोटीन होता है जबकि दूसरे मुर्गों में 15 से 17 फीसदी।



कुछ दिनों पहले रसगुल्ले को लेकर पश्चिम बंगाल और ओडिसा में ऐसी ही दिलचस्प लड़ाई हुई थी जिसमे जीत बंगाल को मिली थी ऐसे में कड़कनाथ मुर्गा किसके यहां अंडे देगा और किस राज्य में बांग नही लगाएगा देखना दिलचस्प होगा।



पशुपालन मंत्री अंतर सिंह का कड़कनाथ मुर्गे को लेकर बयान "मुर्गे की चर्चा मीडिया और कैबिनेट में खूब हो रही है मुर्गा स्वादिष्ट और शक्तिवर्धक होता है। कड़कनाथ का पेटेंट मप्र को मिल गया है छत्तीसगढ़ की मांग को खारिज किया चेन्नई बोर्ड ने ।।"



- छत्तीसगढ़ के दावे को दरकिनार कर मध्यप्रदेश की पहचान कड़कनाथ मुर्गे को जीआई टैग मिल गया है .. छत्तीसगढ़ ने भी कड़कनाथ पर दावा पेश किया था, लेकिन जियोग्राफी इंडीकेशन्स ऑफिस, चेन्नई ने मध्यप्रदेश को जीआई टैग देने के लिए नोटिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जिसके बाद कड़कनाथ मुर्गे को जीआई टैग मिल जाएगा..."



क्या हैं मामला....?



कड़कनाथ आदिवासी जिले झाबुआ में पाया जाता है। ग्रामीण विकास ट्रस्ट झाबुआ ने सबसे पहले 8 फरवरी 2012 को जीआई टैग के लिए आवेदन किया था। 1 मई 2017 को पशुपालन विभाग ने रजिस्ट्री कार्यालय, चेन्नई को सह आवेदक बनाने के लिए पत्र भेजा। तभी से जीआई टैग के लिए कोशिश जारी थी..





- डॉ. नवीन जोशी

Related News

Latest News

Global News