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भोपाल में भी बडी संख्या में प्रोस्टेट कैंसर के मरीज

Location: Bhopal                                                 👤Posted By: prativad correspondent                                                                         Views: 22052

Bhopal: भारत में हर साल 25 प्रतिशत बढ रहा है प्रॉस्टेट कैंसर



भोपाल 18 सितंबर 2016। आयु के बढ़ने के साथ प्रॉस्टेट कैंसर होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। दुनिया भर के 1.7 मिलियन प्रॉस्टेट कैंसर रोगियों में भारत के 2,88,000 रोगी हैं। प्रॉस्टेट कैंसर दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौतों का छठां सबसे बड़ा कारण है। दिल्ली, त्रिवेंद्रम, कोलकाता और पुणे में दूसरा सबसे कॉमन एवं मुंबई, बैंगलोर और चेन्नई में तीसरा सबसे कॉमन कैंसर प्रॉस्टेट कैंसर भारत में 2.5 प्रतिशत की चेतावनी भरी गति से बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश के इंदौर औार भोपाल में इस बीमारी के मरीजो की संख्या हजारों में है। इसलिए वर्ष 2016 के इस प्रॉस्टेट माह में प्रॉस्टेट के स्वास्थ्य पर चर्चा करना आवश्यक है।



एम के एम हॉस्पीटल के कंसलटेंट यूरोलाजिस्ट डॉ. पुनीत तिवारी ने वर्ल्ड प्रोस्टेट माह के मौके पर प्रोस्टेट कैंसर पर आयोजित सेमीनार को संबोधित करते हुए कही । उन्होने कहा बीपीएच के मामले आयु बढ़ने के साथ बढ़ते जाते हैं। 60 साल की आयु तक, 50 प्रतिषत से अधिकतर पुरूषों में बीपीएच विकसित होता है और 85 की आयु तक आते-आते, लगभग 90 प्रतिषत पुरूषों में बीपीएच की समस्या पाई जाती है।

यह जानना महत्वपूर्ण है कि बीपीएच प्रॉस्टेट कैंसर नहीं है। बीपीएच प्रॉस्टेट कैंसर नहीं बनता है, तब भी यदि इसका इलाज नहीं किया जाए। हालांकि, बीपीएच और प्रॉस्टेट कैंसर दोनों आयु के साथ एक साथ विकसित हो सकते हैं।



सामान्य से अधिक बार मूत्र त्याग, मूत्र त्याग के लिए रात में बार-बार जागना

अचानक मूत्र त्याग की आवश्यकता महसूस होना और इसे रोकने पर परेशानी महसूस करना, न चाहने पर भी मूत्र का निकल जाना, मूत्र त्याग के समय धरा का कमजोर होना, मूत्र धारा में बिखराव अथवा स्प्रेईंग, मूत्र धारा का बहाव शुरू हो कर बंद हो जाता है, मूत्र त्याग के दौरान कठिनाई होना आदि इसके लक्षण है।



यह लक्षण बेहद कष्टदायक होते हैं और सामाजिक जिंदगी, निजी संबंधों और यौन जीवन पर इनका नकारात्मक असर पड़ता है।

एम के एम हास्पीटल के कंसलटेंट यूरोलाजिस्ट डॉ. पुनीत तिवारी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि, "आपके चिकित्सा इतिहास की विस्तृत जानकारी, लक्षण और कुछ आसान से टेस्ट बीपीएच की पहचान करने में मदद कर सकते हैं। प्रॉस्टेट द्वारा स्रावित एंजाइम पीएसए (प्रॉस्टेट स्पेसिफिक एंटीजेन) की जांच करने के लिए साधारण ब्लड टेस्ट बीपीएच और प्रॉस्टेट कैंसर के बीच पहचान करने में सहायता कर सकता है।"



डॉ तिवारी ने यह भी बताया कि, "बीपीएच रोगी के लिए जीवनषैली में कुछ आसान से बदलाव बेहद लाभदायक हो सकते हैं। हालांकि, यदि बीपीएच का इलाज नहीं किया जाता है, तो समस्यायें और बढ़ सकती हैं। जैसे मूत्रमार्ग में संक्रमण, किडनी स्टोन्स आदि का सामना करना पड़ सकता है। अक्सर ऐसा होता है कि रोगी पेषाब करने में अक्षम हो जाता है। इस स्थिति को एक्यूट यूरिनरी रिटेंषन के रूप में जानते हैं।"

आयु के बढ़ने के साथ प्रॉस्टेट कैंसर होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। दुनिया भर के 1.7 मिलियन प्रॉस्टेट कैंसर रोगियों में भारत के 2,88,000 रोगी हैं। प्रॉस्टेट कैंसर दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौतों का छठां सबसे बड़ा कारण है। दिल्ली, त्रिवेंद्रम, कोलकाता और पुणे में दूसरा सबसे कॉमन एवं मुंबई, बैंगलोर और चेन्नई में तीसरा सबसे कॉमन कैंसर प्रॉस्टेट कैंसर भारत में 2.5 प्रतिशत की चेतावनी भरी गति से बढ़ रहा है, इसलिए वर्ष 2016 के इस प्रॉस्टेट माह में प्रॉस्टेट के स्वास्थ्य पर चर्चा करना आवश्यक है।

कार्यक्रम के दौरान बंसल हॉस्पीटल के युरोलॉजिस्ट कंसलटेंट डॉ. नंदकिषोर अरविंद ने कहा कि, "प्रॉस्टेट कैंसर की स्थिति ठीक उसी प्रकार की है, जैसे महिलाओं में स्तन कैंसर की है। इस पर खुली चर्चा और जागरुकता की आवश्यकता है। इस रोग के शुरुआत में पता लगाए जाने एवं सही समय पर सही उपचार से हमें प्रॉस्टेट के बेहतर स्वास्थ्य को प्रोत्साहित करने में पूरी सहायता मिल सकती है।"



उन्होने कहा कि, "प्रॉस्टेट से संबद्ध विभिन्न रोगों के लक्षण बहुत स्पष्ट होते हैं। इन्हें कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता। पुरुष की प्रॉस्टेट के स्वास्थ्य पर चर्चा करने की झिझक एवं लापरवाही और प्रॉस्टेट के बेहतर स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का अभाव इस रोग को और अधिक जटिल बनाने एवं जीवन की क्षति का कारण बनता है।"



प्रॉस्टेट कैंसर के लक्षणों में मूत्र का बार-बार होना, विशेषकर रात में, मूत्र त्याग के समय धार में कमी एवं अवरोध, लिंगस्तंभन में कमी एवं स्तंभन को बरकरार रख पाने में असमर्थता, मूत्र में रक्त का आना है। इन्हें नजरअंदाज करना ठीक नहीं है और इसके लिए चिकित्सक से संपर्क करना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त पीसीए लेवल की जांच के लिए एक रुटीन रक्त परीक्षण से प्रॉस्टेट कैंसर को शुरुआती अवस्था में पता लगाने में सहायता मिलती है। आयु और परिवार में पहले हुए कैंसर के मामले को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये दोनो प्रॉस्टेट कैंसर के जोखिम को बढ़ाने के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक हैं।



"फैमिली हिस्ट्री का पता लगाने से इस रोग का प्रारंभ में पता लगाने में सहायता मिलती है और जीवन शैली में सुधार कैंसर के उपचार में प्रमुख भूमिका निभा सकता है। एक अच्छा आहार, एक स्वस्थ मानसिक स्थिति, स्वस्थ भोजन, इत्यादि आप को निश्चित रुप से प्रॉस्टेट के बेहतर स्वास्थ्य को मेंटेंन करने में सहायता कर सकता है।"

कैंसर से मुकाबला करने के विषय में कुछ अतिरिक्त जानकारी उपलब्ध कराते हुए डॉ. तिवारी ने कहा कि, "इस विषय में जागरुकता सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, यदि आप समस्या एवं जटिलता के प्रति जागरुक हैं, तो इसकी रोक-थाम और उपचार काफी आसान हो जाता है। इस रोग का शुरु में पता लगाया जाना सफलता की कुंजी है और इससे चिकित्सा बिरादरी को रोगनिवारक उपचार की पेशकश करने में सहजता होती है।"



वर्ष 2001 के 61.97 वर्ष की अपेक्षा वर्ष 2011 में जहां जीवन की प्रत्याशा बढ़ कर 65.48 वर्ष हो गयी है, वहीं प्रॉस्टेट कैंसर के मामले प्रति वर्ष 1 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं, जिसे सही जानकारी के जरिए नियंत्रित कर काफी सीमित किया जा सकता है।

उपचारः प्रॉस्टेट कैंसर के उपचार के लिए सर्जरी, रेडिएशन थेरेपी और औषधीय उपचार जैसे अनेक उपचार विकल्प मौजूद हैं और उपचार का विकल्प रोग की अवस्था पर निर्भर करता है। जबकि बीपीएच का उपचार औषधियों से किया जा सकता है। लेकिन जटिल मामलों में सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है।



रोगी के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है कि वह चिकित्सकों एवं रोगियों के साथ व्यापक संवाद स्थापित करे। प्रॉस्टेट कैंसर के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श करना भी काफी आवश्यक है। यह भी समान रुप से महत्वपूर्ण है कि एक चिकित्सक प्रॉस्टेट कैंसर को शुरुआती स्तर पर पता लगाने में रोगी को आवश्यक परामर्श उपलब्ध कराए। पीएसए स्क्रीनिंग एवं बीपीएच शिविरों के आयोजन से इस रोग को शुरु में ही पता लगाने में सरलता हो सकती है तथा इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

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