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यहां अंग्रेजों के खिलाफ बनी थी पहली सरकार, 356 क्रांतिकारियों की रोंगटे खड़े करने वाली कहानी

Location: Bhopal                                                 👤Posted By: PDD                                                                         Views: 17583

Bhopal: आजादी के आंदोलन में जलियावालां बाग हत्याकांड को सबसे बड़ा नरसंहार माना जाता हैं. इतिहास के काले अध्याय के रूप में दर्ज जलिययावालां बाग जैसे नरसंहार को देश के दूसरे इलाकों में भी अंजाम दिया गया था.



एक ऐसा ही नरसंहार मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पास सीहोर जिले में 14 जनवरी 1858 को हुआ था. 1857 में अंग्रेजों से बगावत कर सबसे पहली सरकार यहां ही बनी थीं. अंग्रेजों ने इस बगावत का बदला 356 कैदियों का कत्लेआम कर लिया था.



मध्य प्रदेश शासन द्वारा प्रकाशित कराई गई किताब 'सिपाही बहादुर' में इस ऐतिहासिक बगावत का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया गया है. दरअसल, मई 1857 में जो सशस्त्र बगावत हुई थी उसके बाद सीहोर-भोपाल रियासत में बगावत की तैयारी होने लगी थी. एक जुलाई 1857 को इंदौर और आसपास भी बगावत का झंडा बुलंद होने के कुछ ही समय बाद सीहोर अंदर ही अंदर विद्रोह की आग से सुलग रहा था.



हालांकि, भोपाल की तत्कालीन नवाब सिकंदर बेगम की अंग्रेजों की प्रति भक्ति थीं. इस वजह से अंग्रेजों को भरोसा था कि भोपाल रियासत में बगावत को थामना उसके लिए कोई मुश्किल नहीं होगा.



ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक 11 जुलाई 1857 को सीहोर के कुछ सिपाहियों ने ये शिकायत की थी कि फौज को सप्लाई की जा रही घी और शक्कर में मिलावट की जा रही है. सिपाही मिलावट के लिये सरकार को दोषी मान रहे हैं. मिलावट की जांच 6 अगस्त 1857 को सीहोर के रामलीला मैदान में हुई. जांच में शकर में मिलावट पाई गई. जांच के निष्कर्ष सामने आते ही सिपाहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ खुली बगावत कर दी.



सिपाही बहादुर सरकार

8 अगस्त को सिपाही बहादुर सरकार की स्थापना की गई और बागियों की सरकार दर्शाने के लिये दो झण्डे निशाने मोहम्मदी और निशाने महावीर लगाये गये. इसका मुखिया महावीर कोठ हवलदार को बनाया गया। इसलिए यह कौंसिल महावीर कौंसिल के नाम से मशहूर हुई. सीहोर में दो अदालतें बनाई गईं. एक के मुखिया वली शाह थे. दूसरे के महावीर.



14 जनवरी को कत्लेआम

अंग्रेजों के खिलाफ देश की पहली समांनतर सरकार ने 8 अगस्त 1857 को काम संभाल लिया. अंग्रेजों के लिए ये बगावत आंख की किरकिरी बन गईं. अंग्रेजों ने जनरल रोज के नेतृत्व में विशाल सेना को मुंबई से सीहोर रवाना किया. ये सेना 8 जनवरी 1858 को सीहोर में दाखिल हुई.



जनरल रोज की सेना ने क्रांतिकारियों को पकड़ लिया और उनसे माफी मांगने के लिए कहा गया, लेकिन क्रांतिकारियों ने माफी मांगने से इंकार कर दिया. अंतत: 14 जनवरी 1858 को सैकड़ो क्रांतिकारियों को सैकड़ाखेड़ी स्थित चांदमारी के मैदान पर एकत्र कर गोलियों से भून दिया गया. भोपाल स्टेट गजेटियर के पृष्ठ क्रमांक 122 के अनुसार इन शहीदों की संख्या 356 से अधिक थी.



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