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रूस में फिर नंबर-1 बनी पुतिन की पार्टी, हासिल किए 51 फीसदी वोट

Location: Delhi                                                 👤Posted By: Digital Desk                                                                         Views: 18259

Delhi:

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यूनाइटेड रशिया पार्टी और उनके सहयोगी दलों ने सोमवार को आए संसदीय चुनाव के नतीजों में लगभग जीत हासिल कर ली है. रूस के सेंट्रल इलेक्शन कमीशन के शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक सत्तारूढ़ यूनाइटेड रशिया पार्टी ने 51 फीसदी वोट पाए हैं. इन नतीजों से पुतिन की पार्टी का संसद के निचले सदन में प्रभुत्व बढ़ेगा.



बाकी दलों से काफी आगे हैं पुतिन

आंकड़ों के मुताबिक राष्ट्रवादी मानी जाने वाली लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ रशिया (एलडीपीआर) 15.1 फीसदी वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर, कम्युनिस्ट पार्टी 14.9 फीसदी वोट के साथ तीसरे स्थान पर और रसिया पार्टी 6.4 फीसदी वोट के साथ चौथे स्थान पर है. उदारवादी विपक्षी दलों के हाथ कुछ चुनावी क्षेत्रों में जीत लग सकती है.



दिखे एंटी इनकंबेंसी के संकेत

दूसरी ओर कम संख्या में हुई वोटिंग से पता चलता है कि अगले राष्ट्रपति चुनाव से 18 महीने पहले सत्तारूढ़ पार्टी के लिए लोगों के उत्साह में कमी आई है. इसे एंटी इनकंबेंसी से जोड़कर देखा जा रहा है. इस बीच पुतिन ने पार्टी के प्रचार से जुड़े लोगों से कहा कि यह जीत दिखाती है कि यूक्रेन पर पश्चिमी देशों की पाबंदियों से खराब हुई अर्थव्यवस्था के बावजूद वोटर्स को नेतृत्व पर भरोसा है.



पुतिन ने ही बनाई थी यूनाइटेड रशिया पार्टी

पुतिन ने ही यूनाइटेड रशिया पार्टी की स्थापना की थी. उनके सहयोगी इन नतीजों का इस्तेमाल 2018 के चुनाव प्रचार अभियान में करेंगे. पुतिन ने फिलहाल यह बात नहीं कही है कि वह दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ेंगे. रूस के प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेव के साथ पार्टी मुख्यालय पहुंचे पुतिन ने कहा, 'हम निश्चित तौर पर यह कह सकते हैं कि पार्टी ने अच्छे परिणाम हासिल किए है. वह जीत गई है.'



क्रीमिया में पहली बार संसदीय चुनाव

रूस की ओर से क्रीमिया में पहली बार संसदीय चुनाव कराए गए हैं. साल 2014 में क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर रूस ने अपना हिस्सा बना लिया था. उस घटना की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी आलोचना की गई थी. ड्यूमा में अगले पांच साल के लिए 450 सांसदों को चुना जाएगा. रूस में पांच साल पहले संसदीय चुनाव हुए थे. उस चुनाव में धांधली का पता चलने के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए गए थे.

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