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शिक्षा का अधिकार अधिनियमः मध्यप्रदेश में खाली रह गई 70 प्रतिशत सीटें

Location: Bhopal                                                 👤Posted By: Digital Desk                                                                         Views: 17333

Bhopal: 24 अक्तूबर 2016, मध्य प्रदेश में केंद्र सरकार की शिक्षा का अधिकार नीति का बेहद खराब रुझान देखने को मिल रहा है. वंचित समूह एवं कमजोर वर्ग के बच्चों को निजी और केंद्रीय स्कूल में प्रवेश दिलाने की इस योजना के तहत प्रदेश में 70 फीसदी सीटें खाली रह गई.

'शिक्षा का अधिकार' के अंतर्गत निजी स्कूलों तथा केन्द्रीय विद्यालयों में न्यूनतम 25 प्रतिशत सीटों पर वंचित समूह एवं कमजोर वर्ग के बच्चों को निःशुल्क प्रवेश देना अनिवार्य है.



'शिक्षा का अधिकार' के तहत हर साल जनवरी में प्रवेश प्रकिया शुरू होती है. करीब 10 महीने गुजरने के बावजूद प्रदेश में अब तक केवल एक लाख 70 हजार बच्चों ने इस स्कीम के तहत निजी स्कूलों में प्रवेश लिया है.



यह आंकड़ा चौंकाने वाला इसलिए है क्योंकि प्रदेश में 'शिक्षा का अधिकार' के तहत स्कूलों में सवा चार लाख से ज्यादा सीट रिजर्व की गई है.

बच्चों के परिजन इसके लिए राज्य सरकार की ऑनलाइन प्रकिया को दोषी ठहरा रहे है. सरकार ने इस साल से सीटों के अलॉटमेंट के लिए ऑनलाइन योजना शुरू की है.



परिजन बताते हैं, 'इस साल ऑनलाइन प्रकिया के तहत सीटों का आवंटन किया गया. पहले ब्लॉक ऑफिस स्तर पर फॉर्म को जमा किया जाता था. अब काफी बड़ा फॉर्म ऑनलाइन भरना होता है. साथ ही दस्तावेजों को भी ऑनलाइन अटैच करना होता है. आरटीई के तहत सिलेक्शन होने के बाद मिले मैसेज के बाद ही दस्तावेजों का वेरीफिकेशन होता है. पूरी प्रकिया काफी जटिल हो गई है.'



हालांकि, सरकार का इस पर अपना तर्क है. एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में शिक्षा विभाग के बड़े अफसर केपीएस तोमर ने बताया कि, परिजन कुछ चुनिंदा स्कूलों में ही प्रवेश चाहते हैं. इस वजह से बड़ी संख्या में सीट खाली रह गई.



राज्य शिक्षा केंद्र के मुताबिक, इस साल मैन्युअल प्रकिया के तहत काफी गड़बड़ियों की शिकायतें मिली थीं. इस वजह से राज्य सरकार ने पारदर्शिता लाने के लिए ऑनलाइन प्रकिया को अपनाया है.



हैरानी वाली बात यह है कि निजी स्कूलों में जुलाई से कक्षाएं संचालित की जा रही हैं. जबकि 'शिक्षा का अधिकार' में स्कूलों में प्रवेश के लिए दूसरे चरण में ही काफी विलंब हुआ है. अब यदि बच्चों को प्रवेश भी मिलता है तो पढ़ाई में हुए उनके नुकसान की भरपाई कैसे होगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है.

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