Delhi: ईरान की राजधानी तेहरान में अधिकारियों और देश की मीडिया ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के नए एक्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर पर हैरानी और दुख़ जताया है.
ट्रंप ने शनिवार को ईरान समेत सात अन्य देशों के नागरिकों को अमरीका में आने के लिए रोकने के लिए एक्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर पर दस्तख़त किए थे.
ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी ने इस आदेश की आलोचना करते हुए कहा है कि ये वक्त देशों के बीच दीवारें बनाने का नहीं है. वो ट्रंप की एक अन्य विवादित योजना की ओर इशारा कर रहे थे, जिसके तहत अमरीका और मेक्सिको के बीच दीवार बनाई जानी है.
उन्होंने कहा, वो भूल गए हैं कि बर्लिन की दीवार सालों पहले टूट गई थी.... आज हमें ज़रूरत हैं शांति से साथ में रहने की, न कि देशों के बीच दूरियां बनाने की.
ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद ज़रीफ़ ने कई ट्वीट कर ट्रंप के इस आदेश की आलोचना की. उन्होंने रविवार सवेरे किए इन ट्वीट में #MuslimBan हैशटैग का इस्तेमाल किया.
उन्होंने लिखा, मुसलमानों पर लगे इस बैन को इतिहास में कट्टरपंथियों और उनके समर्थकों के लिए एक बड़े उपहार के रूप में याद किया जाएगा.
एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा, सभी को एक ही तराज़ू में तौलने और भेदभाव करने से चरमपंथी समूहों के नेताओं को इन कमज़ोरियों का फ़ायदा उठाने का मौक़ा मिलेगा.
उन्होंने लिखा, हम अमरीकी नागरिकों का सम्मान करते हैं. अमरीकियों और अमरीकी की शत्रुतापूर्ण नीतियों के बीच अंतर रखते हुए ईरान भी अपने नागरिकों को बचाने के लिए क़दम उठाएगा.
ईरान की संसद, मजलिस के स्पीकर अली लाजिरानी ने इस आदेश को डर की निशानी बताया. मजलिस में नेताओं के संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, इस कदम ने हमें बताया है कि अमरीका कितना डरा हुआ है.... इस आदेश ने गणतंत्र और मानवाधिकार के चोगे के नीचे छिपे अमरीका के हिंसक नस्लभेदी व्यवहार को दुनिया के सामने रख दिया है.
अख़बारों ने भी निकाला ग़ुस्सा
ईरान के अख़बारों ने भी ट्रंप के आदेश पर जमकर ग़ुस्सा निकाला और कई ने इसे नस्लभेदी कदम बताया. जावन अख़बार के पहले पन्ने पर बड़े हलफ़ों में लिखा गया, एक नस्लभेदी आदेश. अख़बार का कहना है कि ट्रंप के ताज़ा आदेश ने शुरू से ही उनकी नीतियों के नस्लभेदी होने के बारे में बता दिया है.
मध्यमार्गी अख़बार तिजारत ने शीर्षक लगाया हिटलर के बदले आए हैं ट्रंप. इसी अख़बार ने एक और लेख छापा जिसमें इसने कैप्शन दिया, ट्रंप एक ऐसा संकट हैं जो चरमपंथ से ज़्यादा ख़तरनाक है.
अख़बार के अनुसार अमरीकी रष्ट्रपति चुनाव के दौरान किए विवादित वादों को ट्रंप एक-एक कर हक़ीक़त की शक्ल दे रहे हैं. अख़बार ने बीते साल दिसंबर में किए ट्रंप के ट्वीट के बारे में लिखा इस तरह के ट्वीट चिंताजनक हैं.
उन्होंने कहा, ऐसा लगता है कि ट्रंप एक ख़तरा पैदा करना चाहते हैं जो दाएश (कथित इस्लामिक स्टेट), अल-नुस्रा फ्रंट, अल-क़ायदा और अन्य चरमपंथी और कट्टरपंथियों से भी बड़ा होगा. ऐसा लग रहा है कि ट्रंप एक तरह के संकट की रचना कर रहे हैं जो सभी चरमपंथियों से बड़ा होगा और उनसे ज़्यादा ख़तरनाक भी होगा.
कुछ अन्य अख़बारों ने आश्चर्य जताया है कि इस वीज़ा बैन की लिस्ट में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और पाकिस्तान को शामिल नहीं किया गया है जबकि 9/11 हमलों और चरमपंथी घटनाओं में इन देशों के नागरिकों शामिल थे.
रुढ़िवादी अख़बार हिमायत का कहना है, ट्रंप का आदेश में चरमपंथियों के ख़िलाफ़ लड़ाई का दिखावा मात्र है क्योंकि अमरीकी वीज़ा चरमपंथियों का पोषण करने वालों के दिया जा रहा है.
ख़ुरासन ने इन्हीं कारणों से ट्रंप के आदेश को विरोधाभासी बताया है.
-वेब और प्रिंट, टीवी, रेडियो, माध्यमों में प्रकाशित होने वाली ख़बरों पर रिपोर्टिंग
बैन लिस्ट में पाकिस्तान, सऊदी अरब क्यों नहीं?
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Delhi
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