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मध्य प्रदेश के इन गांवों में रावण की होती हैं पूजा, कहीं दमाद तो कहीं बाबा मानते हैं लोग

Location: भोपाल                                                 👤Posted By: prativad                                                                         Views: 1461

भोपाल: 24 अक्टूबर 2023। विजयादशमी के दिन जहां पूरा देश रावण दहन के साथ ही बुराई पर अच्छाई की विजय का जश्न मनाता है, वहीं मध्य प्रदेश के कुछ गांवों में रावण की पूजा की जाती है। इन गांवों में रावण को दामाद, बाबा या देवता के रूप में पूजा जाता है।

विदिशा में रावण बाबा की पूजा
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के रावन गांव में रावण बाबा का मंदिर है। इस गांव में किसी के घर में शादी हो या कोई नए काम की शुरुआत, यहां सबसे पहले रावण बाबा की पूजा होती है। इस मंदिर में रावण की विशालकाय प्रतिमा है, जिसे परमार कालीन बताया जाता है। इस गांव के लोग दशहरे को उत्सव के रूप में मनाते हैं और रावण को पूजा जाता है।

मंदसौर में रावण को दामाद मानते हैं
मंदसौर जिले के खानपुरा गांव में रावण की 42 फिट की प्रतिमा है। इस गांव का नामदेव समाज रावण को दामाद मानता है। ऐसा कहा जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी नामदेव समाज की बेटी थी और वो मंदसौर की ही रहने वाली थी। जिसके चलते रावण को मंदसौर का दामाद का दर्जा दिया गया है। यहां समाज के लोग रावण के दाहिने पैर में लच्छा बांधकर रावण की पूजा करते हैं।

मालवा में रावण के सामने घूंघट करती हैं महिलाएं
मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में भी रावण को दामाद मानते हैं। यहां की महिलाएं रावण के सामने घूंघट करती हैं। ऐसा माना जाता है कि रावण का वध करने वाले भगवान राम ने भी रावण की पत्नी मंदोदरी का सम्मान किया था।

रावण की पूजा के पीछे मान्यताएं
रावण की पूजा के पीछे कई मान्यताएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि रावण एक महान विद्वान और योद्धा थे। उनके पास कई शक्तियां थीं। कुछ लोगों का मानना है कि रावण का वध करने वाले भगवान राम ने भी रावण की पत्नी मंदोदरी का सम्मान किया था।

रावण की पूजा से जुड़े कुछ रीति-रिवाज
विदिशा के रावन गांव में रावण बाबा की पूजा के दौरान आरती, कीर्तन और भजनों का आयोजन किया जाता है।
मंदसौर के खानपुरा गांव में रावण की प्रतिमा के सामने लच्छा बांधने की परंपरा है।
मालवा क्षेत्र में रावण के सामने घूंघट करने की परंपरा है।
रावण की पूजा एक विचित्र परंपरा है, लेकिन यह मध्य प्रदेश के कुछ गांवों में सदियों से चली आ रही है।



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