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17 फरवरी 2025। गिद्ध संरक्षण पर बड़ा कदम: गिद्ध गणना से पहले वन कर्मचारियों को मिले एंड्रॉयड मोबाइल, पवई में हुई विशेष कार्यशाला
पन्ना: मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के पवई वन परिक्षेत्र में गिद्ध संरक्षण को लेकर एक बड़ा कदम उठाया गया है। हर साल की तरह इस वर्ष भी शीतकालीन गिद्ध गणना की शुरुआत 17 फरवरी से होने जा रही है। लेकिन इस बार, गणना से पहले ही वन विभाग ने तकनीकी दक्षता बढ़ाने के लिए कर्मचारियों को एंड्रॉयड मोबाइल वितरित किए, जिससे वे अधिक सटीक और प्रभावी तरीके से गिद्धों की गणना कर सकें।
गिद्ध गणना से पहले जागरूकता कार्यशाला
गिद्धों के संरक्षण और उनकी सटीक गणना सुनिश्चित करने के लिए पन्ना दक्षिण वन मंडल ने रविवार को पवई वन परिक्षेत्र में एक विशेष कार्यशाला आयोजित की। इस कार्यशाला में वनकर्मियों को गिद्धों की पहचान, गणना की प्रक्रिया, और गिद्धों के पारिस्थितिकीय महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया।
गिद्धों के महत्व पर विशेषज्ञों की राय
कार्यशाला में मुख्य वन संरक्षक नरेश यादव ने गिद्धों की भूमिका और उनकी घटती संख्या पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कर्मचारियों को गिद्ध गणना की सटीकता और इसकी गंभीरता के बारे में जागरूक किया।
सीडीओ वन डॉ. कल्पना तिवारी ने बताया कि पर्यावरण प्रदूषण, कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग और अवैध शिकार गिद्धों की संख्या में गिरावट के प्रमुख कारण हैं। उन्होंने कहा कि यदि समय रहते गिद्धों को संरक्षित नहीं किया गया, तो इससे इकोसिस्टम पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
परिक्षेत्र अधिकारी नीतेश पटेल ने गिद्धों की प्रजातियों की पहचान और उनके व्यवहार से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ साझा कीं।
गिद्धों की संख्या और संरक्षण प्रयास
परिक्षेत्र पवई, पन्ना जिले में गिद्धों की आबादी के लिहाज से सबसे समृद्ध स्थलों में से एक है। यहाँ पिछले कई वर्षों में 7 प्रजातियों के 500 से अधिक गिद्ध देखे गए हैं। यह क्षेत्र गिद्धों के प्रजनन और उनके प्राकृतिक आवास के लिए उपयुक्त माना जाता है।
गिद्धों के महत्व को देखते हुए छतरपुर रेंज के वन संरक्षक ने कर्मचारियों को तकनीकी रूप से दक्ष बनाने के लिए एंड्रॉयड मोबाइल फोन वितरित किए। इन मोबाइल्स की मदद से गणना अधिक सटीक और वैज्ञानिक तरीके से हो सकेगी। कार्यशाला में वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा पूरी रेंज का वन अमला मौजूद रहा।
गिद्धों की घटती संख्या: खतरे की घंटी
गिद्ध शिकारी पक्षी होते हैं, लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) में उनकी भूमिका स्वच्छता बनाए रखने और मृत पशुओं को तेजी से नष्ट करने में महत्वपूर्ण होती है।
हाल ही में अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन जर्नल (2024) में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट के कारण मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
✅ गिद्धों की अनुपस्थिति में मृत पशुओं के अवशेष सड़ने से हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस हवा-पानी में फैलते हैं, जिससे खतरनाक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
✅ अध्ययन के अनुसार, गिद्धों की संख्या में गिरावट से पिछले 5 वर्षों में करीब 5 लाख लोगों की मौत इन संक्रमणों से हो चुकी है।
✅ गिद्धों की कमी से आवारा कुत्तों और चूहों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिससे रेबीज और प्लेग जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ा है।
क्या सरकार उठाएगी ठोस कदम?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि गिद्धों के संरक्षण के लिए ठोस नीति नहीं बनाई गई, तो आने वाले वर्षों में यह संकट और गहरा सकता है। वन विभाग द्वारा इस बार उठाया गया यह तकनीकी कदम निश्चित रूप से गिद्ध गणना को अधिक प्रभावी और वैज्ञानिक बनाएगा, लेकिन इसके साथ ही सरकार को गिद्धों के प्राकृतिक आवास, भोजन और दवाओं से होने वाले खतरों पर भी ध्यान देना होगा।
गिद्धों का संरक्षण केवल वन्यजीवों के लिए ही नहीं, बल्कि मानव जीवन और स्वास्थ्य के लिए भी बेहद जरूरी है। आगामी गिद्ध गणना 2025 से उम्मीद की जा रही है कि इससे गिद्धों की वास्तविक स्थिति और उनके संरक्षण के लिए आवश्यक कदमों को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकेगा।