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गोल्ड कोस्ट में भारत की चमक

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Place: Bhopal                                                👤By: Admin                                                                Views: 15069

देश पर छाई विपरीत स्थितियों की धुंध को चीरते कॉमनवेल्थ गेम्स से आती रोशनी एवं भारतीय खिलाड़ियों के जज्बे ने ऐसे उजाले को फैलाया है कि हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा हो गया है। वहां से आ रही रोशनी के टुकड़े देशवासियों को प्रसन्नता का प्रकाश दे रहे हंै। संदेश दे रहे हैं कि देश का एक भी व्यक्ति अगर दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ने की ठान ले तो वह शिखर पर पहुंच सकता है। विश्व को बौना बना सकता है। पूरे देश के निवासियों का सिर ऊंचा कर सकता है। इन दिनों अखबारों के पहले पन्ने के शीर्ष में छप रहे समाचारों से सबको लगा कि ईक्कीसवें राष्ट्रमंडल खेलों में, कॉमनवेल्थ गेम्स में हमारे खिलाड़ियों ने जिस तरह से पदक जीते हैं, जो शारदार प्रदर्शन किया है, उससे देश का गौरव बढ़ा है।



गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत का प्रदर्शन शानदार रहा। भारत ने इन खेलों में 26 गोल्ड मेडल समेत कुल 66 (20 सिल्वर, 20 ब्रॉन्ज) पदक जीते। 2014 ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेस्म में जीते 64 पदकों से इस बार भारतीय दल का प्रदर्शन बेहतर कहा जा सकता है। गोल्ड कोस्ट में भारतीय दल ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बाद तीसरे पायदान पर रहा। यहां भारत ने 15 खेलों में हिस्सा लिया और 9 में मेडल जीते। बता दें कि भारत ने दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों में कुल 101 पदक जीते थे। वहीं 2002 के मैनचेस्टर खेलों में कुल 69 मेडल मिले थे। हमने इस बार ग्लास्गो से ज्यादा स्वर्ण पदक बटोरे लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि हर खिलाड़ी ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश की। ऐसे मुकाबलों में भी, जिसमें भारत का हाथ तंग माना जाता रहा है, हमने मेडल जीते और जिनमें पदक नहीं मिल सके उनमें कड़ी चुनौती पेश की। जैसे जेवलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा ने कमाल किया। वह कॉमनवेल्थ गेम्स में जेवलिन थ्रो में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय बन गए। बीस वर्षीय नीरज ने पहले ही थ्रो में क्वालीफाईंग आंकड़े को छूकर फाइनल में जगह पक्की कर ली थी।



नीरज चोपड़ा हो या टेबल टेनिस की मनिका बत्रा, मोहम्मद अनस हो या शूटर मनु भाकर इन और अन्य खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा एवं क्षमता का लौहा मनवाया है, सभी ने कठोर श्रम किया, बहुत कड़वे घूट पीया है तभी वे सफलता के सिरमौर बने हैं। वरना यहां तक पहुंचते-पहुंचते कईयों के घुटने घिस जाते हैं। एक बूंद अमृत पीने के लिए समुद्र पीना पड़ता है। पदक बहुतों को मिलते हैं पर सही खिलाड़ी को सही पदक मिलना खुशी देता है। यह देखने में ये कोरे पदक हंै पर इनकी नींव में लम्बा संघर्ष और दृढ़ संकल्प का मजबूत आधार छिपा है। राष्ट्रीयता की भावना एवं अपने देश के लिये कुछ अनूठा और विलक्षण करने के भाव ने ही अन्तर्राष्ट्रीय खेलों में भारत की साख को बढ़ाया है।



मोहम्मद अनस 400 मीटर दौड़ में भले ही ब्रॉन्ज से चूक गए पर उन्होंने सबका दिल जीत लिया। उन्होंने 45.31 सेकंड का समय निकाला और इस तरह एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया। हिमा दास 400 मीटर दौड़ के फाइनल तक पहुंचीं। इसी तरह और ऐथलीटों ने अच्छा प्रदर्शन कर यह आशा जगाई है कि भारत को जल्दी ही ऐथलेटिक्स में पदक मिलने लगेंगे। वैसे पूर्व भारतीय महिला ऐथलीट पीटी उषा का मानना है कि भारत ओलिंपिक 2024 में जरूर ऐथलेटिक्स में पदक हासिल करेगा। टेबल टेनिस जैसे खेल में भारत ने अपना दमखम दिखाया है। मनिका बत्रा ने टेबल टेनिस के अलग-अलग इवेंट में चार पदक जीतकर इतिहास रचा। कॉमनवेल्थ खेलों में ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय महिला टेबल टेनिस खिलाड़ी बनीं। 22 साल की मनिका ने न सिर्फ टेबल टेनिस के महिला सिंगल्स में गोल्ड जीता, बल्कि महिलाओं की टीम इवेंट में गोल्ड, महिला डबल्स मुकाबले में सिल्वर और मिक्स्ड डबल्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता। यानी उनकी झोली में दो गोल्ड, एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल आया। हॉकी में भले ही निराशा हाथ लगी हो।



भारत के लिए शूटिंग इवेंट काफी अच्छा रहा। शूटिंग में इस बार भारतीय निशानेबाजों ने 7 गोल्ड समेत कुल 16 मेडल जीते। अनीश भानवाला, मेहुली घोष और मनु भाकर जैसे युवा निशानेबाजों के अलावा हीना सिद्धू, जीतू राय और तेजस्विनी सावंत जैसी अनुभवी निशानेबाजों ने भी भारत के लिए पदक जीते। रेसलिंग में भारतीय खिलाड़ियों ने निराश नहीं किया और भारत ने 5 गोल्ड, तीन सिल्वर और चार ब्रॉन्ज समेत कुल 12 मेडल अपने नाम किए। बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, सुमित जैसे पहलवानों ने अपने-अपने भारवर्ग में भारत को पदक दिलाए। बैडमिंटन में भारत ने कुल 6 पदक जीते। भारत ने मिक्स्ड टीम इवेंट में गोल्ड मेडल जीता व साथ ही महिला एकल में भी साइना नेहवाल ने हमवतन पीवी सिंधु को हराकर सोना अपने नाम किया। पुरुष एकल मुकाबले में भारत के किदांबी श्रीकांत को फाइनल में ओलिंपिक सिल्वर मेडलिस्ट मलयेशिया के ली चेंग वेई से हार का सामना करना पड़ा। मीराबाई चानू, संजीता चानू ने वेटलिफ्टिंग में भारत को गोल्ड दिलाया। इसके अलावा पूनम यादव ने भी भारत के लिए सोने का तमगा हासिल किया। बॉक्सिंग में तीन गोल्ड, तीन सिल्वर और तीन ब्रॉन्ज मेडल जीते। मैरी कॉम ने गोल्ड जीतकर दिखा गया कि उम्र प्रतिभा की मोहताज नहीं होती।

निशानेबाजी में पिछले दिनों युवाओं की एक नई खेप सामने आई है जिसने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपना जलवा बिखेरा है। गोल्ड कोस्ट में उसका दमखम साफ नजर आया। कुश्ती, बॉक्सिंग और बैडमिंटन में भारत की स्थिति मजबूत रही है। इसलिए आशा के अनुरूप ही इसमें मेडल मिले। कॉमनवेल्थ की उपलब्धि दरअसल युवाओं की उपलब्धि है, युवाओं की आंखों में तैर रहे भारत को अव्वल बनाने के सपने की जीत है। भारतीय दल में युवाओं का दबदबा था। शूटिंग में गोल्ड जीतने वाले अनीश भानवाला मात्र 15 साल के हैं। शूटर मनु भाकर 16 की हैं। 16 से 20 की उम्र के कई खिलाड़ी हैं। खिलाड़ियों में कई महिलाएं हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करके अपना रास्ता बनाया। दरअसल समाज में खेल को लेकर धारणा बदल रही है। सरकार भी जागरूक हुई है। कई नई अकादमियां खुलीं हैं जिनका युवाओं को फायदा मिल रहा है। खेलों को प्रोत्साहन देने के प्रयासों में और गति लाने की जरूरत है। खेलों के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर देशभर में फैलाना होगा। नौकरशाही संबंधी बाधाएं दूर करनी होंगी, वास्तविक खिलाड़ियों के साथ होने वाले भेदभाव को रोकना होगा, खेल में राजनीति की घुसपैठ पर भी रोकना होगा, तभी एशियाई खेलों और ओलिंपिक में भी हमें झोली भरकर मेडल मिल सकेंगे।



हमारे देश में खेलों को प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है। जब हम विश्व गुरु बनने जा रहे हैं तो उसमें खेलों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। क्योंकि खेलों में ही वह सामथ्र्य है कि वह देश के सोये स्वाभिमान को जगा देता है, क्योंकि जब भी कोई अर्जुन धनुष उठाता है, निशाना बांधता है तो करोड़ों के मन में एक संकल्प, एक एकाग्रता का भाव जाग उठता है और कई अर्जुन पैदा होते हैं। अपने देश में हर बल्ला उठाने वाला अपने को सचिन तेंदूलकर समझता है, हर बाॅल पकड़ने वाला अपने को कपिल समझता है। हाॅकी की स्टिक पकड़ने वाला हर खिलाड़ी अपने को ध्यानचंद, हर टेनिस का रेकेट पकड़ने वाला अपने को रामानाथन कृष्णन समझता है। और भी कई नाम हैं, मिल्खा सिंह, पी.टी. उषा, प्रकाश पादुकोन, गीत सेठी, जो माप बन गये हैं खेलों की ऊंचाई के। कॉमनवेल्थ गेम्स में अनूठा प्रदर्शन करने वाले भारतीय खिलाड़ी भी आज माप बन गये हैं और जो माप बन जाता है वह मनुष्य के उत्थान और प्रगति की श्रेष्ठ स्थिति है। यह अनुकरणीय है। जो भी कोई मूल्य स्थापित करता है, जो भी कोई पात्रता पैदा करता है, जो भी कोई सृजन करता है, जो देश का गौरव बढ़ाता है, जो गीतों मंे गाया जाता है, उसे सलाम।



(ललित गर्ग)

दिल्ली-110051

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