'क्राइम बीट' रिव्यू: दमदार परफॉर्मेंस के बावजूद भावनात्मक गहराई की कमी

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 3399

21 फरवरी 2025। सबा आज़ाद और साकिब सलीम स्टारर क्राइम बीट एक क्राइम थ्रिलर है जो अपराध, मीडिया और सत्ता के खेल को उजागर करती है। सुधीर मिश्रा और संजीव कौल के निर्देशन में बनी यह सीरीज सोमनाथ बटाब्याल की किताब द प्राइस यू पे पर आधारित है। हालांकि इसमें प्रभावशाली अभिनय और सधी हुई सिनेमैटोग्राफी है, लेकिन यह भावनात्मक रूप से जुड़ने में असफल रहती है।

कहानी और प्रस्तुतिकरण
दिल्ली के अंडरवर्ल्ड के इर्द-गिर्द घूमती यह आठ-एपिसोड की सीरीज महत्वाकांक्षी रिपोर्टर अभिषेक सिन्हा (साकिब सलीम) की नजर से अपराध की दुनिया को दिखाती है। शो की कहानी नॉन-लीनियर फॉर्मेट में आगे बढ़ती है और अंत में गैंगस्टर बिन्नी चौधरी (राहुल भट) की हत्या के साथ खत्म होती है। बिन्नी को एक आधुनिक रॉबिन हुड के रूप में पेश किया गया है, जो अपराध के जरिये समाज की मदद करने का दावा करता है।

सीरीज अपराध, पुलिस, और मीडिया के जटिल रिश्तों को दिखाने की कोशिश करती है। यह दर्शाती है कि न्यूज़रूम की राजनीति, पुलिस की रणनीति और अपराध की दुनिया एक-दूसरे से किस तरह जुड़े हुए हैं। हालांकि इसकी पृष्ठभूमि दिलचस्प है, लेकिन यह कहानी में कोई नई गहराई जोड़ने में नाकाम रहती है।

अभिनय और किरदार
साकिब सलीम: अभिषेक सिन्हा के रूप में उनका अभिनय प्रभावी है। वह एक ईमानदार पत्रकार की भूमिका में जंचते हैं, लेकिन उनका बदलाव एक सख्त पत्रकार में पूरी तरह विश्वसनीय नहीं लगता।
सबा आज़ाद: माया माथुर के रूप में उनका प्रदर्शन सधा हुआ है, लेकिन उनके किरदार को पूरी तरह विकसित नहीं किया गया है।
राहुल भट: गैंगस्टर बिन्नी चौधरी के रूप में उनकी मौजूदगी प्रभावी है, लेकिन कुछ जगहों पर स्टाइलिंग और लुक के कारण उनका किरदार कमजोर पड़ जाता है।
दानिश हुसैन: अनुभवी संपादक आमिर अख्तर की भूमिका में वे हमेशा की तरह विश्वसनीय लगते हैं।
राजेश तैलंग: डीसीपी उदय के रूप में उनका किरदार दिल्ली पुलिस के एक सख्त अधिकारी को दर्शाता है, जो कानून से ज्यादा बंदूक पर भरोसा करता है।
सई ताम्हणकर: गैंगस्टर की प्रेमिका अर्चना पांडे के रूप में उनका अभिनय बेहतरीन है। उन्होंने अपने किरदार में सही संतुलन बनाए रखा है।

तकनीकी पक्ष
सीरीज की सिनेमैटोग्राफी (सविता सिंह और अरविंद कृष्णन) शानदार है। हर सीन को बारीकी से फिल्माया गया है, जो सीरीज को एकदम वास्तविक एहसास देता है। प्रोडक्शन डिज़ाइन भी इसे प्रामाणिक बनाता है। लेकिन जहां यह सीरीज कमजोर पड़ती है, वह है इसकी पटकथा। कहानी दिलचस्प होते हुए भी कई जगह कमजोर महसूस होती है और किरदारों की जटिलता उभरकर सामने नहीं आती।

फाइनल वर्डिक्ट
क्राइम बीट एक अच्छी तरह बनाई गई सीरीज है, जिसमें मजबूत अभिनय और बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी है। लेकिन इसकी कहानी दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ने में विफल रहती है। यह एक कुशल क्राइम ड्रामा है, जिसे आप देख सकते हैं, लेकिन यह कोई गहरी छाप छोड़ने में नाकाम रहती है—बिल्कुल एक खबर की तरह, जिसे आप पढ़ते हैं, सिर हिलाते हैं, और फिर भूल जाते हैं।

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