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कोरोना वायरस की दवा: डेक्सामेथासोन जान बचाने वाली पहली दवा साबित हुई

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Place: Bhopal                                                👤By: DD                                                                Views: 22755

सस्ती और हर जगह मिलने वाली दवा डेक्सामेथासोन कोरोना वायरस से संक्रमित गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों की जान बचाने में मदद कर सकती है.

ब्रिटेन के विशेषज्ञों का कहना है कि कम मात्रा में इस दवा का उपयोग कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में एक बड़ी कामयाबी की तरह सामने आया है.

जिन मरीज़ों को गंभीर रूप से बीमार पड़ने की वजह से वेंटिलेटर का सहारा लेना पड़ रहा है, उनके मरने का जोखिम क़रीब एक तिहाई इस दवा की वजह से कम हो जाता है. जिन्हें ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ रही है, उनमें पांचवें हिस्से के बराबर मरने का जोखिम कम हो जाता है.

डेक्सामेथासोन 1960 के दशक से गठिया और अस्थमा के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा है. कोरोना के जिन मरीज़ों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ रही है, उनमें से आधे नहीं बच पा रहे हैं इसलिए इस जोखिम को एक तिहाई तक कम कर देना वाक़ में काफ़ी बड़ी कामयाबी है.

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि अगर इस दवा का इस्तेमाल ब्रिटेन में संक्रमण के शुरुआती दौर से ही किया जाता तो फिर क़रीब पाँच हज़ार लोगों की जान बचाई जा सकती थी. चूंकि यह दवा सस्ती भी है, इसलिए ग़रीब देशों के लिए भी काफ़ी फ़ायदेमंद साबित हो सकती है.

यह दवा उस परीक्षण का भी हिस्सा है जो मौजूदा दवाइयों को लेकर यह जांचने के लिए किया जा रहा है कि कहीं ये दवाइयाँ कोरोना पर भी तो असरदार नहीं.
कोरोन के क़रीब 20 मरीज़ों में से 19 मरीज़ बिना अस्पताल में भर्ती हुए ठीक हो रहे हैं. जो मरीज़ अस्पताल में भर्ती भी हो रहे हैं, उनमें से भी ज्यादातर ठीक हो रहे हैं लेकिन कुछ ऐसे मरीज़ हैं जिन्हें ऑक्सीजन या फिर वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ रही है. यह दवा ऐसे ही अधिक जोखिम वाले मरीज़ों को मदद पहुँचाती है.

इस दवा का इस्तेमाल पहले से ही सूजन को कम करने में किया जाता रहा है और अब ऐसा लगता है कि यह कोरोना वायरस से लड़ने में शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली को मदद पहुँचाने वाली है. जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अधिक सक्रियता के साथ प्रतिक्रिया करती है तब वैसे हालात को साइटोकिन स्टॉर्म कहा जाता है यह जानलेवा हो सकता है.

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के एक दल ने अस्पतालों में भर्ती 2000 मरीज़ों को यह दवा दी और उसके बाद इसका तुलनात्मक अध्ययन उन 4000 हज़ार मरीज़ों से की जिन्हें दवा नहीं दी गई थी.

वेंटिलेटर के सहारे जो मरीज़ जीवित थे उनमें इस दवा के असर से 40 फ़ीसदी से लेकर 28 फ़ीसदी तक मरने का जोखिम कम हो गया और जिन्हें ऑक्सीजन की ज़रूरत थी उनमें 25 फ़ीसदी से 20 फ़ीसदी तक मरने की संभावना कम हो गई.

इस दल के मुख्य अध्ययनकर्ता प्रोफ़ेसर पीटर हॉर्बी ने कहा, "यह एकमात्र ऐसी दवा है अब तक जिसके असर से मृत्यु दर में कमी देखी गई है और यह कमी इतनी है जो कि काफ़ी अहम मात्रा में है. यह एक बड़ी कामयाबी है."

एक अन्य शोधकर्ता प्रोफ़ेसर मार्टिन लैंड्रे का कहना है कि इस दवा की मदद से आप वेंटिलेटर के सहारे जीवित हर आठ में से एक की ज़िंदगी बचा सकते हैं. और जिन मरीज़ों को ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ रही है, उनमें से क़रीब हर 20-25 मरीजों पर आप एक मरीज़ बचा सकते हैं.

वो कहते हैं, "यह साफ़ तौर पर मदद पहुँचाने वाली दवा है. डेक्सामेथासोन के दस दिन के इलाज का ख़र्च एक मरीज़ पर क़रीब मात्र पाँच सौ रूपया पड़ता है. इसलिए क़रीब महज़ साढ़े तीन हज़ार रुपये में एक मरीज़ की जान बचाई जा सकती है और यह दवा हर जगह मिलती है."

हालांकि कोरोना के जिन मरीज़ों में हल्के लक्षण हैं, उनको यह दवा कोई मदद नहीं पहुँचा पाती है.

इसलिए प्रोफ़ेसर लैंड्रे कहते है कि जब ज़रूरत पड़े तो अस्पताल में भर्ती मरीज़ों को ही यह दवा देनी चाहिए और लोगों को यह दवा बाज़ार से ख़रीद कर अपने घरों पर रखने की ज़रूरत नहीं है.

जिन दवाओं पर ट्रायल चल रहा है उनमें मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन भी एक थी लेकिन इसकी वजह से हृदय संबंधी समस्या बढ़ने और जान जाने का ख़तरा रहता है.

एक दूसरी दवा रेमडेसिवियर है जिसकी मदद से देखा गया है कि यह लोगों को कोरोना संक्रमण से जल्दी ठीक होने में मदद पहुंचा रही है.

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