
21 मार्च 2025। वैश्विक खुशहाली को मापने वाली वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2025 जारी कर दी गई है, जिसमें भारत को 118वां स्थान मिला है। यह रिपोर्ट एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है, क्योंकि इसमें भारत से अधिक रैंकिंग ऐसे देशों को मिली है जो आतंकवाद, युद्ध और गंभीर आर्थिक संकटों से जूझ रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान 109वें स्थान पर है, यानी वह भारत से 9 पायदान ऊपर है। इसके अलावा, फिलिस्तीन, यूक्रेन, ईरान, इराक, मोजाम्बिक, कांगो, युगांडा, गाम्बिया और वेनेजुएला जैसे देश भी भारत से अधिक खुशहाल बताए गए हैं। इस स्थिति ने एक बार फिर इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता को लेकर बहस छेड़ दी है।
😁 फिनलैंड फिर बना दुनिया का सबसे खुशहाल देश
वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में इस साल भी फिनलैंड को पहला स्थान मिला है, जो लगातार कई वर्षों से दुनिया का सबसे खुशहाल देश बना हुआ है। टॉप-5 देशों में शामिल अन्य देशों में डेनमार्क (2), आइसलैंड (3), स्वीडन (4) और नीदरलैंड (5) शामिल हैं।
😁 सबसे कम खुशहाल देश
अगर सबसे कम खुशहाल देशों की बात करें, तो इस साल भी अफगानिस्तान सबसे निचले स्थान (147वें) पर है। इसके बाद सिएरा लियोन (146), लेबनान (145), मालावी (144) और जिम्बाब्वे (143) का स्थान है।
😁 भारत की गिरती रैंकिंग चिंता का विषय
भारत की रैंकिंग बीते वर्षों में लगातार गिरती गई है। हालांकि, 2022 में भारत पहली बार टॉप-100 में शामिल हुआ था, लेकिन इसके बाद स्थिति बिगड़ती चली गई। इस साल भारत को 118वां स्थान मिला है, जो कि कई सवाल खड़े करता है।
😁 ब्रिटेन और अमेरिका भी पिछड़े
पश्चिमी देशों की बात करें, तो ब्रिटेन को 23वां और अमेरिका को 24वां स्थान मिला है। इससे साफ है कि वहां की जनता की खुशहाली भी हाल के वर्षों में प्रभावित हुई है।
😁 क्या है वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट?
यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र (UN) समर्थित एक अध्ययन है, जो देशों को उनकी जीवन संतुष्टि, आर्थिक स्थिति, सामाजिक समर्थन, जीवन प्रत्याशा, स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार जैसे विभिन्न मानकों पर आंकता है। हालांकि, रिपोर्ट के मापदंडों को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं, क्योंकि कई बार नतीजे वास्तविक हालात से मेल नहीं खाते।
😁 क्या रिपोर्ट के मानकों पर दोबारा विचार करने की जरूरत?
रिपोर्ट के नतीजों पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि इसमें ऐसे देशों की रैंकिंग भारत से बेहतर बताई गई है, जहां युद्ध, आतंकवाद, राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट चरम पर हैं। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह रिपोर्ट वास्तविकता को सही तरीके से दर्शाती है, या फिर इसके मापदंडों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है?