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ओलंपिक मुक्केबाजी विवाद: लिंग परिवर्तन नया डोपिंग है?

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 870

क्या एथलीटों के लिंग का पता लगाने के लिए डीएनए और अन्य परीक्षणों को ड्रग परीक्षणों जितना ही महत्वपूर्ण बनाना चाहिए?

5 अगस्त 2024। ओलंपिक मुक्केबाजी में हुए हालिया विवाद ने खेल जगत को एक नई चुनौती के सामने खड़ा कर दिया है। एक ओर जहां एक महिला मुक्केबाज़ ने अपने पुरुष प्रतिद्वंद्वी को आसानी से हराकर सनसनी फैलाई, वहीं दूसरी ओर, इस जीत की वैधता पर सवाल उठने लगे। मुक्केबाज़ के लिंग परीक्षण में विफल होने के बाद यह मामला और भी पेचीदा हो गया है।

इस विवाद के बीच, अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (IBA) के फैसले को 'अचानक और मनमाना' करार दिया है। IOC का कहना है कि पिछली ओलंपिक मुक्केबाजी प्रतियोगिताओं की तरह इस बार भी एथलीटों का लिंग और उम्र उनके पासपोर्ट के आधार पर तय किया गया था। लेकिन यह तर्क भी कमजोर पड़ता है, क्योंकि कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में लोग अपने पासपोर्ट पर लिंग स्वयं चुन सकते हैं।

इस पूरे मामले पर सबसे संतुलित राय ओलंपिक दशमलक विजेता कैटलिन जेनर की आई है। उन्होंने कहा कि उन्होंने पुरुष होने के नाते ही ये पदक जीते थे और उन्होंने कभी महिला वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश नहीं की। जेनर ने इस मामले में महिलाओं के खेल की अखंडता की रक्षा करने की IOC की जिम्मेदारी पर जोर दिया है।

दूसरी तरफ, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि एक व्यक्ति में पुरुष गुणसूत्र (XY) होने के बावजूद महिला के शारीरिक लक्षण हो सकते हैं। डेनमार्क स्थित नोवो नॉर्डिस्क फाउंडेशन के अनुसार, 15,000 में से एक पुरुष का जन्म लड़की के रूप में होता है और उन्हें किशोरावस्था तक पता नहीं चलता। कुछ मामलों में तो लोगों को 30 साल की उम्र तक पता नहीं चलता कि वे आनुवंशिक रूप से पुरुष हैं।

यह मामला खेल जगत के लिए एक नई चुनौती है। क्या लिंग परीक्षण को ड्रग परीक्षण जितना ही महत्वपूर्ण बनाना चाहिए? या फिर खेल में सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की जरूरत है? इन सवालों के जवाब ढूंढना आसान नहीं होगा।

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