
2 फरवरी 2025। भोपाल साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन की शुरुआत एक हेरिटेज वॉक से हुई, जो कमला पार्क से आरंभ होकर कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों से गुजरी। इस यात्रा में प्राचीन जल निकाय, गोंड किला, इकबाल मैदान, सदर मंजिल और ताज-उल-मस्जिद जैसे प्रतिष्ठित स्थल शामिल थे। यह वॉक न केवल ऐतिहासिक स्थलों की समृद्धि को दर्शाती है, बल्कि भोपाल की सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवंत रूप से प्रस्तुत करती है।
रंगों और संस्कृति का संगम
यंगरंग में आयोजित चित्रकला प्रतियोगिता में छात्रों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अपनी रचनात्मकता का परिचय दिया। वहीं, आदिरंग हॉल में जनजातीय कला पर केंद्रित प्रदर्शनी आयोजित की गई, जिसमें गोंड और बैगा कलाकारों की उत्कृष्ट कृतियों को प्रदर्शित किया गया। इस प्रदर्शनी ने क्षेत्र की समृद्ध स्वदेशी विरासत को उजागर किया।
औपनिवेशिक भारत पर ऐतिहासिक चर्चा
प्रसिद्ध इतिहासकार शोनालीका कौल ने डॉ. रीमा हूजा के साथ भारत की औपनिवेशिक काल से पूर्व की ऐतिहासिक पहचान पर चर्चा की। उन्होंने भारत की "अनेकता में एकता" की अवधारणा को रेखांकित किया और बताया कि विभिन्न ऐतिहासिक ग्रंथों में भारत का उल्लेख किस प्रकार हुआ है। उन्होंने एक प्राचीन श्लोक उद्धृत किया:
"उत्तरं यत समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् |
वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र संततिः ||"
उन्होंने मेगस्थनीज, अल-बिरूनी और इल्तुतमिश जैसे इतिहासकारों के संदर्भ में भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान पर भी प्रकाश डाला।
प्रकृति लेखन और साहित्य पर चर्चा
रंगदर्शनी सभागार में अनुराधा कुमार जैन और जाह्नवीज शर्मा ने प्रकृति लेखन के महत्व पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि किस तरह प्रकृति और साहित्य का गहरा संबंध है। बच्चों की कल्पना शक्ति बादलों, तारों और चंद्रमा में कहानियों को देखने में सक्षम होती है, और यही कल्पनाशीलता साहित्य की आधारशिला बनती है।
'मैडम कमिश्नर' – पुलिसिंग की असलियत
वागर्थ सभागार में पूर्व आईपीएस अधिकारी मीरन चड्ढा बोरवनकर ने अपनी पुस्तक "मैडम कमिश्नर" पर चर्चा की। इस सत्र का संचालन पूर्व आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना ने किया। पुस्तक पुलिस विभाग की वास्तविकता को सामने लाती है और यह दर्शाती है कि पुलिसकर्मी भी समाज के प्रति गहरी संवेदनशीलता रखते हैं।
मध्य पूर्व संकट पर रणनीतिक विमर्श
'दि मिडल ईस्ट इन क्राइसेस' सत्र में लेफ्टिनेंट जनरल राज शुक्ला और वरिष्ठ पत्रकार एम.जे. अकबर ने मध्य पूर्व में जारी संकट पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने भू-राजनीतिक बदलावों, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और युद्धों के प्रभावों पर अपने विचार साझा किए।
शाही कुल चिह्नों की ऐतिहासिक प्रासंगिकता
इतिहासकार अनुज पक्वासा ने 'कुल चिह्न: शाही शक्ति के प्रतीक या अप्रचलित परंपरा?' विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने समझाया कि कैसे कुल चिह्न प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक सत्ता और पहचान का प्रतीक बने हुए हैं। उन्होंने सिंधिया वंश के सांप वाले कुल चिह्न का रोचक किस्सा भी साझा किया।
गुरुदत्त: सिनेमा और साहित्य का संगम
'गुरुदत्त, सिनेमा और साहित्य' विषय पर पंकज सक्सेना और पूनम सक्सेना ने गुरुदत्त के फिल्मी सफर और उनके सिनेमाई दृष्टिकोण पर चर्चा की। गुरुदत्त की फिल्मों जैसे 'प्यासा', 'कागज के फूल' और 'साहिब बीबी और गुलाम' को भारतीय सिनेमा में क्लासिक के रूप में मान्यता मिली है।
तिब्बत, भारत और चीन: भू-राजनीतिक विमर्श
अंतरंग सभागार में लेफ्टिनेंट जनरल पी.आर. शंकर, दिलीप सिन्हा और अनिल वाधवा ने तिब्बत के रणनीतिक महत्व पर चर्चा की। उन्होंने तिब्बत को भारत-चीन संबंधों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण 'बफर ज़ोन' के रूप में प्रस्तुत किया और इसके भविष्य के प्रभावों पर चर्चा की।
मांडू: प्रेम और इतिहास की गाथा
'मांडू: लिजेंड ऑफ रूपमती एंड बाज बहादुर' सत्र में लेखिका मालती रामचंद्रन ने मांडू की ऐतिहासिक धरोहर और प्रेम कहानी पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि कैसे यह छोटा सा शहर अपनी ऐतिहासिक प्रेम कहानी और स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है।
भोपाल साहित्य महोत्सव का यह दिन इतिहास, संस्कृति, कला और साहित्य के संगम के रूप में यादगार रहा।