फिर मिलेंगे के वादे के साथ भोपाल साहित्य एवं कला महोत्सव के 7वें संस्करण का हुआ समापन
2 फरवरी 2025। भोपाल साहित्य महोत्सव के 7वें संस्करण के तीसरे और अंतिम दिन की शुरुआत जनजातीय संग्रहालय की यात्रा और मध्य भारत की स्वदेशी जनजातियों की प्रस्तुति के साथ शुरू हुआ। इसके अलावा जनजातीय कला मेला, गोंड और बैगा कलाकार शिविर और प्रदर्शनी, पद्मश्री भूरी बाई की आधुनिक कला गैलरी प्रदर्शनी, और एक विशेष लाइव कविता पाठ प्रतियोगिता जैसे आयोजन पूरे दिन सत्रों के साथ जारी रहे। वहीं, समापन समारोह के दौरान पुरुस्कार व सम्मान वितरित किये गये। प्रसिद्ध लेखिका मंजुला पद्मनाभन के उपन्यास टैक्सी ने प्रतिष्ठित सुशीला देवी पुस्तक पुरस्कार जीता। भोपाल के वैरायटी बुकस्टोर को ज्ञान-प्रसारक पुरस्कार मिला। इसके अतिरिक्त बी एल एफ में पहली बार विमल कपुरिया मेमोरियल अवार्ड आरम्भ हुआ जो डॉ सीमा रायज़ादा को प्रदान किया गया। इसके बाद सोसाइटी के चेयरमैन श्री राघव चंद्रा ने सभी का आभार व्यक्त किया। साथ ही उन्होंने अगले साल फिर मिलेंगे के वादे के साथ भोपाल लिटरेचर एंड आर्ट फेस्टिवल के समापन की घोषणा की।
आज आयोजित सत्रों का विवरण
अंतरंग सभागार में लेखिका नीरजा चौधरी ने अपनी किताब How PMs Decide पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे भाग्यवश उन्हें नोट्स और मीडिया सहयोगियों के साथ संपर्क मिले, जिनसे उन्हें जानकारी जुटाने में मदद मिली। यह किताब कोविड के दौरान लिखी गई है और यह इस बात पर केंद्रित है कि शीर्ष स्तर पर निर्णय कैसे लिए जाते हैं। पुस्तक में देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत कामकाज के तरीके, विचारधारा और विश्वास प्रणाली को शामिल किया गया है। साथ ही, इसमें धार्मिक लॉबी पर उनके विचार, जिसमें उनके निर्णय लेने को प्रभावित करने वाले विदेशी पहलू भी शामिल हैं, का भी वर्णन है। लेखिका ने भारत के 6 प्रधानमंत्रियों और उनके 6 बड़े फैसलों को शामिल किया है, जिनमें इंदिरा गांधी ने 1977 में कैसे सबसे बड़ी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की, राजीव गांधी ने जातिवाद और सांप्रदायिकता से कैसे निपटा, वीपी सिंह का आरक्षण का फैसला, नरसिम्हा राव ने बाबरी मस्जिद का फैसला कैसे लिया, अटल बिहारी वाजपेयी परमाणु परीक्षण के फैसले पर कैसे गए, डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत-अमेरिका समझौते में कैसे अपना स्थिर पक्ष दिखाया, जिसमें उनके नए पहलू को दर्शाया गया है - जैसी रोचक कहानियाँ शामिल हैं। पुस्तक में विशेषकर वाजपेयी के बारे में वर्णन किया गया है, जो 1975 में आपातकाल के दौरान कैंसर से जूझ रहे थे। यह पुस्तक नेताओं के व्यक्तिगत संबंधों और कई आश्चर्यजनक तथ्यों से भरपूर है। लेखिका ने कहा कि इन नेताओं के सामूहिक योगदान ने लोकतंत्र को प्रभावित किए बिना देश को आगे बढ़ाया है।
• आइकॉनिक ट्रीज ऑफ इंडिया
20 से अधिक राज्यों मे भ्रमण कर 75 नेचुरल वंडर्स को शामिल किया आइकॉनिक ट्रीज ऑफ इंडिया में भोपाल लिटरेचर एंड आर्ट फेस्टिवल के अंतिम दिन रंगदर्शनी दीर्घा में आइकॉनिक ट्रीज ऑफ इंडिया पर एक विशेष सत्र रखा गया। इस सत्र ने प्रकृतिवादी और वनस्पतिशास्त्री एस नतेश ने अपनी किताब आइकॉनिक ट्रीज ऑफ इंडिया पर चर्चा की। इस सत्र का संचालन अभिलाष खांडेकर ने किया। इस दौरान एस नतेश ने कहा कि यह मेरी एक व्यक्तिगत यात्रा है जिसमें मैंने देश के कई राज्यों में विजिट किया और आइकोनिक ट्रीज के बारे में जानकारी प्राप्त कर उसे किताब का स्वरूप दिया। इसमें मध्यप्रदेश के कटनी जिले के दो पेड़ों को भी आइकोनिक ट्रीज में शामिल किया है। नतेश ने कहा कि जब मैं कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था तभी मैने निर्णय लिया था कि मुझे ट्री प्लांट विशेषज्ञ के रूप में अपना करियर बनाना है। पढ़ाई के बाद जब मैं नौकरी में आया तो एक विजिट के दौरान मैं एक बोटेनिकल कॉलेज में पहुंचा और मैने देखा कि वहां के प्रबंधन ने बहुत अच्छे ढंग से पेड़ों को लगाया है। उन्होंने न सिर्फ पेड़ लगाए बल्कि उसकी सम्पूर्ण जानकारी को भी सम्मिलित किया है। इसमें उन्होंने पेड़ का इतिहास, उसकी प्रजाति, उसके महत्व को शामिल किया। एस नतेश ने कहा कि विश्व में अगर हम सबसे पुराने पेड़ों की बात करें तो कैलिफोर्निया और चिली में आइकोनिक ट्रीज हैं। उन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से आइकोनिक ट्रीज वह है जो अपनी उम्र, डायमेंशन और बोटेनिकल इन्फोर्मेशन से बड़ा हो। मैने अपनी किताब में भी पेड़ों का वैज्ञानिक नाम और उनकी फैमिली के साथ यह बताया है कि वे कहां पर हैं। अपनी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए एस नतेश ने कहा कि यह किताब देश भर के नायाब पेड़ों से आपको परिचित कराती है। पुस्तक को प्रमुख रूप से दो भागों में बाँटा गया है। पहला हिस्सा पुस्तक का संदर्भ बताता है। नतेश ने बताया कि भारत के बीस से अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैले 75 ‘नेचुरल वंडर्स’ को उन्होंने चुना और उस पर कार्य करने का फैसला किया। इस पुस्तक में उन्होंने उत्तर में जम्मू और कश्मीर से लेकर दक्षिण में केरल तक और पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में असम और नागालैंड तक के प्रमुख पेड़ों की जानकारी को समाहित किया है। इसके साथ ही पुस्तक में उन्होंने उत्तरप्रदेश के बाराबंकी ज़िले में पारिजात के रूप में पूजे जाने वाले पेड़ का ज़िक्र किया है जिसकी उम्र 5,000 वर्ष बताई जाती है।
• "ज्यादा कला या दिल की बात?"—प्रायोगिक कविता पर संवाद
"ज्यादा कला या दिल की बात?" विषय पर वागर्थ सभागार में आयोजित एक विचारोत्तेजक चर्चा में मुख्य वक्ता संजय जाजू और जमशेद ने रचनात्मकता और अभिव्यक्ति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। इस सत्र का संचालन अस्मा रफत ने किया, जिसमें कविता के विभिन्न रूपों, व्यक्तिगत अनुभवों और समकालीन कविता के विकास पर चर्चा की गई।
जमशेद ने अपने सफर को याद करते हुए बताया कि उन्हें कविता से प्रेम कॉलेज के दिनों से ही हो3 गया था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कविता भावनाओं, विचारों और दार्शनिक चिंतन को व्यक्त करने का एक प्रमुख माध्यम है। उनकी पुस्तक स्याही समकालीन विषयों को दार्शनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती है।
संजय जाजू ने इस बात पर चर्चा की कि कला, विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच एक निरंतरता होती है, जो मिलकर कविता का निर्माण करती है। उन्होंने बताया कि उन्होंने पांच साल पहले कोविड-19 महामारी के दौरान कविता लिखना शुरू किया था। उनकी पहली रचना, एक गीत, उनके दिवंगत पिता के अधूरे कार्य से प्रेरित थी, जिसे उन्होंने "दिव्य प्रेरणा" के रूप में वर्णित किया।
इस दौरान संजय जाजू ने अपनी आध्यात्मिक कविता "मुझमें राम बसते हैं आज" का सजीव पाठ किया। इस कविता में उनके जीवन के अनुभवों और आस्था का समावेश था, जिसने श्रोताओं को गहराई से प्रभावित किया।
नए कवियों को सलाह देते हुए जाजू ने सुझाव दिया कि वे ग़ज़ल से शुरुआत करें, क्योंकि इसमें हर शेर अपने आप में पूर्ण होता है, जिससे कविता को सरलता से संजोया जा सकता है। उन्होंने हाइकु की बढ़ती प्रासंगिकता पर भी चर्चा की, विशेष रूप से मोबाइल और व्हाट्सएप मैसेजिंग के संदर्भ में। हाइकु, जो मात्र तीन पंक्तियों की कविता होती है,3 अंग्रेजी में 5-7-5 और हिंदी में 5-7-5 वर्ण संरचना का पालन करता है। जाजू ने अपनी कुछ हाइकु कविताओं का पाठ कर इसकी सुंदरता को समझाया।
जमशेद ने आगे प्रायोगिक लेखन के विभिन्न रूपों पर चर्चा की और एक-शब्द कविता का उदाहरण दिया। उन्होंने "सत्य हमेशा न्याय नहीं होता" नामक कविता का संदर्भ दिया, जिसमें संक्षिप्तता के माध्यम से गहरे अर्थ को दर्शाया गया। उन्होंने "नो मैक्सिमम रिटेल प्राइस" शीर्षक वाली कविता का भी उल्लेख किया, जो पूंजीवाद की सच्चाई को केवल एक वाक्य में उजागर करती है।
कविता के भविष्य पर चर्चा करते हुए, जमशेद ने विश्वास व्यक्त किया कि कविता हमेशा जीवित रहेगी, क्योंकि समकालीन मुद्दे हमेशा एक प्रमुख3 विषय बने रहेंगे। उन्होंने कहा, "जब तक समाज चुनौतियों से जूझता रहेगा, कविता अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनी रहेगी।"
इस सत्र का समापन इस विचार के साथ हुआ कि कविता आखिर अधिक कलात्मक होती है या दिल से जुड़ी हुई। चर्चा ने श्रोताओं को कविता की बदलती प्रवृत्तियों और उसकी पारंपरिकता व नवाचार के बीच के संतुलन को समझने का एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया।
• अंतरंग में आयोजित सत्र दुव्वुरी सुब्बाराव द्वारा लिखित पुस्तक जस्ट ए मर्सिनरी, मेमोयर्स ऑफ ए आरबीआई गवर्नर पर केंद्रित था। लेखक ने कोविड महामारी के दौरान पुस्तक के निर्माण और निर्माण पर अपने अनुभव साझा किए। लेखक ने पुस्तक को अपने जीवन के नोट्स बताया। पुस्तक में लेखक के जीवन का आत्मनिरीक्षण, उनके कार्य दिवसों का संस्मरण दर्शाया गया है। लेखक ने मज़ाकिया ढंग से अपने जीवन के मुख्य पहलुओं का उल्लेख किया जिसमें उनका यूपीएससी साक्षात्कार भी शामिल है, जो किसी तरह एक आपदा साबित हुआ। अपने अनुभवों से सीखे गए जीवन के सबक को साझा करते हुए, लेखक, जो आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र भी रह चुके हैं, ने पहली बार टैक्सी में बैठने के अपने अनुभव को साझा किया। लेखक ने जीवन की असफलताओं से सीखने और सफल होने के उत्साह को आगे बढ़ाने पर जोर दिया। अपने करियर से सीख के बारे में बात करते हुए और युवाओं को सुझाव देते हुए, लेखक ने अपनी नौकरी के शुरुआती वर्षों की यात्रा को साझा किया। जमीनी स्तर पर निर्णय लेने के बारे में बात करते हुए, श्री सुब्बाराव ने पुस्तक में उल्लिखित जीवन की अपनी सबसे दिलचस्प नौकरियों का वर्णन किया है।
• खेल और नेतृत्व: रंगदर्शिनी ऑडिटोरियम में एक सत्र पर नौकायन और पैरा-बैडमिंटन
रंगदर्शिनी ऑडिटोरियम में खेल और नेतृत्व पर एक आकर्षक सत्र आयोजित किया गया, जिसमें द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित कप्तान होमी मोतीवाला , जो एक पूर्व भारतीय नौकायन खिलाड़ी और कोच हैं, और पैरा-बैडमिंटन खिलाड़ी पलक कोहली ने भाग लिया। इस सत्र का संचालन अमृत माथुर ने किया और इसमें भारतीय खेल नेतृत्व पर विशेष चर्चा की गई, जिसमें नौकायन के तकनीकी पहलुओं और पैरा-बैडमिंटन में मानसिक दृढ़ता की आवश्यकता को समझाया गया।
कप्तान होमी मोतीवाला , जो भारतीय नौकायन में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं, ने नौकायन के तकनीकी पहलुओं के बारे में बताया। “नौकायन एक अत्यधिक तकनीकी खेल है। इसमें हर चीज़ मानकीकृत होती है, जिसमें नावें भी शामिल हैं,” मोतीवाला ने कहा। उन्होंने विस्तार से समझाया कि नावों को कैसे रेट किया जाता है और खिलाड़ियों को उनके अनुभव और कौशल के आधार पर रेटिंग मिलती है। एक बार रेटिंग मिल जाने के बाद, खिलाड़ी विभिन्न नौकायन प्रतियोगिताओं में भाग ले सकते हैं। मोतीवाला ने यह भी बताया कि अमेरिकी नावें इस खेल में तकनीकी चमत्कारी मानी जाती हैं।
उन्होंने इस खेल की चुनौतियों को स्वीकार किया, विशेष रूप से इसके उच्च लागत को, जो कई इच्छाशक्ति वाले खिलाड़ियों के लिए इसे अनुपलब्ध बना देती है। मोतीवाला ने बताया कि उनका नौकायन में सफर 10 साल की उम्र में तब शुरू हुआ जब वह समुद्र से आकर्षित हुए और उन्होंने सी कैडेट कोर जॉइन किया। उनका नौकायन के प्रति जुनून उन्हें राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) तक ले गया, जहां उन्होंने खेल में अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त किया। भारतीय सेना से मिली मदद पर उन्होंने कहा, "सेना नौकायन को समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक बार आप एक स्तर तक पहुँच जाते हैं, तो वे आपको अपने खेल को आगे बढ़ाने की स्वतंत्रता देते हैं।"
पारालंपिक बैडमिंटन खिलाड़ी पलक कोहली ने अपने सफर और सफलता में मानसिक मजबूती की भूमिका के बारे में बताया। लखनऊ में स्थित पहले राष्ट्रीय दिव्यांग अकादमी में प्रशिक्षण ले रही कोहली ने पैरा-खेलों में शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण दोनों की महत्वता पर जोर दिया। "जीतने की आपकी मानसिकता, शारीरिक प्रशिक्षण जितनी महत्वपूर्ण है, उतनी ही मानसिक प्रशिक्षण भी," कोहली ने समझाया। उन्होंने यह भी साझा किया कि मानसिक कौशल पैरा-खिलाड़ियों के प्रशिक्षण का एक अहम हिस्सा हैं, जो उन्हें फोकस्ड और प्रेरित रखने में मदद करता है।
पलक ने पैरा-बैडमिंटन में रैंकिंग प्रणाली के बारे में भी बताया, जहां खिलाड़ियों को पैरा ओलंपिक्स में चयनित होने के लिए शीर्ष 5 में होना जरूरी होता है। "पैरा ओलंपिक्स के लिए चयन होने के लिए आपको रैंकिंग में शीर्ष 5 में होना चाहिए," कोहली ने कहा। पैरा-खेलों के भविष्य पर उन्होंने आशावाद व्यक्त करते हुए कहा, "आगामी 5 वर्षों में हमें मानसिकता में बदलाव और पैरा-खिलाड़ियों के लिए अधिक पहचान देखने को मिलेगी। वातावरण अब बहुत सकारात्मक होता जा रहा है।"
दोनों वक्ताओं ने सत्र के अंत में भारतीय खेलों के भविष्य के लिए आशा और उत्साह व्यक्त किया। उन्होंने विभिन्न खेलों में खिलाड़ियों की बढ़ती पहचान और विविध पृष्ठभूमि से आने वाले एथलीटों की सफलता की ओर इशारा किया। जैसे-जैसे खेलों में नेतृत्व अधिक समावेशी और सहयोगात्मक होता जा रहा है, भारतीय खेलों का भविष्य और पैरा-खेलों का विकास सुनिश्चित है।
यह सत्र भारतीय खेलों में विभिन्न एथलेटिक अनुशासन के विकास को दिशा देने वाले खेल नेतृत्व पर एक गहन संवाद था, जिसमें खिलाड़ियों को सफलता पाने और अगली पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए एक सकारात्मक वातावरण बनाने की दिशा में विचार किए गए। वक्ताओं के अनुभव और दृष्टिकोण ने दृढ़ता, मानसिक ताकत, और खेलों में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका पर महत्वपूर्ण सीख दी।
• कला आसान नहीं है, कला के लिए साहस चाहिए
अंतरंग सभागार में आयोजित सत्र "108, द अर्टिस्टिक पॉवर एंड मिस्टीक ऑफ इंडिया" बी एल एफ के संस्थापक और अध्यक्ष राघव चंद्रा और डॉ अलका पांडे के बीच रहा। यह सत्र मुख्यतः उक्त पुस्तक पर आधारित रहा। लेखिका डॉ. अलका पांडे, बास्केटबॉल की राष्ट्रीय खिलाड़ी भी रह चुकी हैं और रेडियो और टेलीविजन के लिए भी काम कर चुकी हैं। उन्होंने इतिहास में दो बार एम ए किया जो इतिहास के प्रति उनके प्यार को दर्शाता है। उन्होंने नैनीताल से मुंबई और फिर एक ब्यूरोक्रेट् से शादी के बाद चंडीगढ़ तक की अपनी जीवन यात्रा के उदाहरण साझा किए। लेखिका चंडीगढ़ में अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकल गईं, जहाँ उन्हें पंजाबी भाषा भी नहीं आती थी। 1999 के दौरान, लंदन के गोल्डस्मिथ विश्वविद्यालय ने उनकी जिंदगी बदल दी जहाँ उन्होंने कला की भाषा सीखी। उन्होंने भारतीय कला के इतिहास को 4 चरणों/खंडों में विभाजित किया। लेखिका ने विभिन्न भारतीय दर्शनों जैसे कामसूत्र पर अपने विचारों को साझा किया और धर्म, कर्म, काम और मोक्ष की भारतीय कंसेप्ट को शामिल करते हुए भारतीय पौराणिक कथाओं पर भी प्रकाश डाला। लेखिका ने अपने लेखन और कलाकृतियों के प्रेरणादायक पहलुओं के बारे में भी बताया। उनके अनुसार, क्रॉस-कल्चरल आर्ट बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे भारतीय कला ने पश्चिमी कला को प्रभावित किया है। लेखिका ने कला के व्यवसायीकरण पर अपने विचार साझा किए, उन्होंने कहा- यह दुखद है कि आज कला बाजार द्वारा संचालित हो रही है।
• भारत की रक्षा तैयारी: विशेषज्ञों ने मजबूतियों और चुनौतियों पर की चर्चा
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल पी.आर. शंकर, लेफ्टिनेंट जनरल राज शुक्ला और राजदूत अनिल वाधवा के बीच चर्चा में भारत की सैन्य तैयारियों और रक्षा क्षमताओं का गहन विश्लेषण किया गया। लेफ्टिनेंट जनरल शंकर ने कहा कि भारत की सुरक्षा कभी समझौता नहीं हुई, सिवाय 1962 के, लेकिन "सुरक्षित" और "सुसज्जित" होने में अंतर है, और भारत को अभी भी बेहतर सैन्य उपकरणों की आवश्यकता है। लेफ्टिनेंट जनरल राज शुक्ला ने कहा कि मौजूदा सरकार ने भारत-चीन सीमा पर सुधार लाने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति दिखाई है। बातचीत में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की भी चर्चा हुई। उदाहरण के लिए, भारत सेमी ने भारतीय सेना से पहला ऑर्डर प्राप्त किया था और अब वह नासा जैसी शीर्ष संस्थाओं को सेवा प्रदान कर रहा है, जिससे स्वदेशी तकनीक की क्षमता उजागर होती है।
चीन की सैन्य क्षमताओं पर चर्चा करते हुए लेफ्टिनेंट जनरल शंकर ने कहा कि चीन को लेकर कई भ्रांतियाँ हैं, जो उसकी वास्तविक शक्ति से अधिक आंकने का कारण बनती हैं। उन्होंने भारत के रक्षा बजट में वित्तीय चुनौतियों की ओर भी इशारा किया। हालांकि, उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि भारत ने आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। 2020 में भारत को रूस से गोला-बारूद आयात करना पड़ा था, लेकिन आज घरेलू उत्पादन इस जरूरत को पूरा कर रहा है।वर्ष 2025 में भारत में बड़े सैन्य सुधारों की उम्मीद है, जिससे देश की रक्षा क्षमताएँ और मजबूत होंगी।
• अर्बन बायोडाइवर्सिटी एंड बर्ड्स पर चर्चा
अर्बन बायोडाइवर्सिटी एंड बर्ड्स पर चर्चा करते हुए आर श्रीनिवास मूर्ति ने कहा कि प्रशासन अकादमी में तकरीबन 4 साल रहा हूं। साथ ही भोपाल के सारे तापमान में से वहां के तापमान में 4 से 5 डिग्री का अंतर होता है। क्लाइमेट चैंज में हो रहे बदलाव को भी महसूस किया जा रहा है। अगर हम जब तक लोकल एक्शन नहीं लेंगे तब तक परेशानियां झेलनी पड़ सकती है। अर्बन बायोडाइवर्सिटी और बर्ड्स के आसपास ही जीवन बसा हुआ है , जो यह बताता है कि आके इलाके में कैसे रह रहे हैं। इस मौके पर अभिलाष खांडेकर ने कहा कि चिड़िया, चंद्रमा और आकाश देखने का समय नहीं है। किताबों का जो महत्व है उसमें बर्ड्स ऑफ भोपाल के बाद बर्ड्स ऑफ इंदौर का भी अच्छा काम करेगी। पैरेडाइस फ्लाइकैचर मप्र का राज्य पक्षी है। मैं इस किताब के जरिए मैं यहीं बताना चाहाता हूं कि इस किताब के जरिए उन लोगों में जागरुकता लाना चाहता हूं, जो पक्षी और बायोडाइवर्सिटी पर बात नहीं कर रहे हैं। क्योंकि बिना पेड़, बिना बाघ और बिना वॉटर वेटलैंड्स के हमारी जिंदगी बहुत अधूरी हो जाएगी। भोपाल में भी प्रशासन अकादमी और चार इमली जैसे इलाके हैं जहां घने पेड़ लगे हैं और तापमान को मैंटेन करे हुए है लेकिन लोग आज भी एयर कंडिशन वाली जगहों पर जाना चाहते हैं, जो सही नहीं है। संजय कुमास शुक्ला ने इस सत्र में कहा मैं इंदौर में मुंसिपल कमीश्नर था साल 1999 में और बहुत यंग था। मुझे अभिलाष जी ने वहीं सिरपुर तालाब से परिचय कराया था। कुछ आंकड़े जो याद रखने में आसान है कि हमारे देश में सभी शहरो की टोटल क्षेत्रफल 6 लाख स्क्वायर किमी। यह पूरे देश के क्षेत्रफल का 2 प्रतिशत से थोड़ा कम है। मप्र में ये रेश्यो सवा से देढ़ प्रतिशत ही है। 10 लाख की आबादी 14 से 15 किमी की आबादी में रहते हैं। अधिकांश शहर 2 लाख के भी है। शहरों में इतना शोर, प्रदूषण और शोर होने लगा है कि इनसे पक्षी कितने परेशान है। अब सवाल यह है कि हम चिंता क्यों कर रहे हैं? उनके स्पेक्ट्रम में हम इंसानों ने उनका जीना मुश्किल कर दिया है। इसलिए जरूरी है कि हम उनकी भी चिंता भी करनी चाहिए। इससे शहर में जो हम नुकसान कर रहे हैं वो कम हो जाएंगे।
• 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है
मेजर चंद्रकांत सिंह ने ब्रिगेडियर संजय अग्रवाल से चर्चा की। इस दौरान मेजर चंद्रकांत ने वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की। मेजर चंद्रकांत ने कहा कि वर्ष मैं वर्ष 1963 में सेना में कमीशन हुआ। मुझे बहुत अच्छे से याद है कि वर्ष 1971 के भारत पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में मेरी तैनाती मिजो हिल्स पर थी। तत्कालीन पाकिस्तान दो हिस्सों में डिवाइड था। ईस्ट और वेस्ट। 1971 में युद्ध के बाद भारत ने पाकिस्तान हराया और उसके बाद बांग्लादेश का निर्माण हुआ। मेजर चंद्रकांत ने कहा कि 16 दिसंबर 1971, एशियाई इतिहास में एक निर्णायक क्षण था और आज भी है। इसी दिन पाकिस्तान ने अपना आधा देश और पूर्वी थिएटर में अपनी सेना खो दी थी और उसे ढाका में भारतीयों के सामने सार्वजनिक रूप से आत्मसमर्पण करना पड़ा था। 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है। दुनिया के सबसे कठिन नदी क्षेत्रों में से एक पर 12 दिनों के भीतर भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया पाकिस्तानी कैदियों को बंदी बना लिया और बांग्लादेश के 75 मिलियन पीड़ित लोगों को उनकी आज़ादी दिलाई। 12 दिसंबर, 1971 को लंदन के संडे टाइम्स ने लिखा, भारतीय सेना को ढाका तक पहुंचने में केवल 12 दिन लगे, यह उपलब्धि 1940 में फ्रांस में जर्मन बमबारी की याद दिलाती है। मेजर चंद्रकांत ने बताया कि बांग्लादेश को आजाद कराने के लिए भारत ने जो युद्ध लड़ा, वह शायद पहला ऐसा युद्ध था जिसमें तीनों सेनाओं ने एक साथ लड़ाई लड़ी थी। वास्तव में, मिग-21 विमानन इतिहास का शायद एकमात्र ऐसा विमान है जिसने किसी देश को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया। इसका एक उदाहरण भारतीय वायुसेना द्वारा इमारत पर किया गया हमला था जिसमें पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर छिपे हुए थे।
• स्वैलोइंग द सन किताब पर चर्चा
स्वैलोइंग द सन किताब पर अंबरीन खान के साथ चर्चा करते हुए लेखिका लक्ष्मी पूरी ने बताया कि जब मैंने यह किताब जब लॉन्च की थी उस समय जब क्रिएटिव शेयर किया था वह एक किताब को पकड़े हुए था। किसी ने मुझे कहा कि बहुत वूमनली सा लग रहा है। मेरे लिए यह इमोशनल मोमेंट था। मेरा मानना है कि कोई भी कहानी आपके मन में हो और वह कहानी लोगों को बतानी चाहिए। मेरे लिए यादगार लम्हा है जब मेरी यह किताब सबसे खास है। मेरी किताब एक हिस्टोरिक फिक्शन है और कई लोगों ने मुझसे कहा भी कि यह लोग पसंद नहीं करेंगे। लेकिन मेरी किताब की सक्सेस ने उन्हें जवाब दिया है। 'स्वैलोइंग द सन' महाराष्ट्र में पली-बढ़ी एक युवा लड़की मालती की कहानी बताती है, जो स्वतंत्रता आंदोलन के उत्साह में फंस गई थी, और वह कैसे भाईचारे, दोस्ती और क्रांति का मार्ग प्रशस्त करती है। लक्ष्मी ने किताब पर चर्चा के दौरान कहा कि यह मेैं साफतौर से बता देना चाहती हूं कि यह किसी भी तरह से कोई बायोग्राफी नहीं है। लेकिन कुछ सच बताने के लिए फिक्शन लिखना सबसे अच्छा तरीका होता है जब आप कहानी के माध्यम से सच बता सकते हैं।
• कुछ हटकर सोचो
यह सत्र, जिसका संचालन रश्मि भार्गव ने किया, हर्ष पमनानी और सतीश झा के साथ बातचीत पर केंद्रित था। यह चर्चा श्री हर्ष पमनानी द्वारा लिखित पुस्तक "ब्रांडिंग एंड स्केलिंग अप ऑफ स्टार्ट-अप्स" पर आधारित थी। श्री झा ने नए भारत में स्टार्ट-अप्स के उदय का उल्लेख करते हुए सत्र की शुरुआत की। उन्होंने हाल ही के वार्षिक बजट में स्टार्ट-अप्स पर ध्यान केंद्रित करने की बात कहते हुए कहा कि देश को और अधिक स्टार्ट-अप्स की जरूरत है और स्थापित स्टार्ट-अप्स अभी शुरुआती दौर में हैं। उन्होंने आगे कहा कि हमें विदेशी स्थापित व्यावसायिक विचारों से प्रेरित होने के बजाय अपने स्टार्ट-अप्स में नए और अनोखे विचारों को शामिल करने की जरूरत है। हमें कुछ ऐसा चाहिए जिसके आसपास हम पले-बढ़े हों। श्री हर्ष ने कंप्यूटर इंजीनियर से ब्रांडिंग के विशेषज्ञ बनने तक की अपनी यात्रा साझा की, जिसमें उन्होंने किसी न किसी तरह भारत के प्रमुख ब्रांडों जैसे बिग बास्केट, बुक माई शो, पेपरबोट और अन्य में योगदान दिया। श्री हर्ष ने ब्रांडिंग चुनौतियों पर नए और नवीन विचार प्राप्त करने के लिए अपनी अनुसंधान रणनीति बताई। इसके अतिरिक्त, उन्होंने भारतीय और अमेरिकी बाजार के परिदृश्यों के बीच अंतर और भारतीय शिक्षा प्रणाली द्वारा केवल वैश्विक ब्रांडों को साहित्य के रूप में चित्रित करने के तरीके का उल्लेख किया। उन्होंने एप्पल को एक बिल्कुल नए वैश्विक ब्रांड के रूप में उदाहरण दिया और लीक से हटकर होने के तथ्य को बताया।
• देविका रानी के अनसुने संघर्ष
यह सत्र किश्वर देसाई द्वारा लिखित पुस्तक 'द लॉन्गेस्ट किस' पर केंद्रित था, जो देविका रानी के जीवन और समय के बारे में है। लेखिका किश्वर देसाई, डॉ. सीमा रायज़ादा के साथ बातचीत कर रही थीं। लेखिका एक पत्रकार थीं, जिसने उनकी कहानी लेखन में गहराई प्रदान की। शुरुआत में, उन्होंने जेंडर आधारित सामाजिक मुद्दों को कवर किया और उन्हें एक उपन्यास के रूप में शामिल किया। लेखिका ने विभिन्न शैलियों में लिखा है और एक पूर्व पत्रकार होने के नाते उन्हें इससे बहुत मदद मिली। देविका रानी के बारे में लिखना वास्तव में एक कठिन काम था और इसके लिए पूरी लेखन प्रक्रिया के दौरान व्यापक शोध की आवश्यकता थी। लगभग एक दशक पहले, उन्होंने नरगिस के बारे में शोध करना शुरू किया और तब उन्हें खजाने की तरह संग्रहीत अभिलेखीय फुटेज के बारे में जानकारी मिली। लेखिका को देविका रानी के पहले पति हिमांशु राय के अभिलेखागार मिले। लेखिका ने देविका रानी की मुंबई से विदेश और फिर वापस बॉलीवुड तक की यात्रा का अध्ययन और विश्लेषण किया। यह पुस्तक देविका रानी के जीवन और उनके करियर और व्यक्तिगत संबंधों के अनसुने पहलुओं का वर्णन है। लेखिका देविका के संघर्षों और उनके जीवन के चौंकाने वाले तथ्यों से चकित थीं। लेखिका ने पुस्तक में देविका रानी के अनसुने प्रेम संबंध का खुलासा किया, जब वह 40 साल की उम्र में विधवा थीं। इसके अलावा, पुस्तक में देविका रानी के विवाहित जीवन में दुर्व्यवहार और संघर्ष के उदाहरणों को भी शामिल किया गया है।
• "भोपाल 92" पर चर्चा: सांप्रदायिक दंगों और जज़्बे की कहानी
उपन्यास भोपाल 92 पर चर्चा के दौरान लेखक अनुपम श्रीवास्तव ने वर्तुल सिंह से बातचीत में अपनी पुस्तक की अंतर्दृष्टि साझा की। उन्होंने अपने अनुभव को याद करते हुए बताया कि जब बाबरी मस्जिद दंगों के दौरान भोपाल में सांप्रदायिक अशांति फैली, तब वह एक युवा डिविजनल इंजीनियर थे। यह वह दौर था जब शहर को पहली बार इस तरह की हिंसा का सामना करना पड़ा, जबकि इसके पहले, यहां आज़ादी के समय भी सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए थे।यह उपन्यास उस समय की घटनाओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत करता है और भोपाल के लोगों की सहनशक्ति व जज़्बे को उजागर करता है। हालांकि इसकी कहानी सच्ची घटनाओं पर आधारित है, लेकिन पात्रों के नाम बदले गए हैं ताकि गोपनीयता बनाए रखते हुए घटनाओं की प्रामाणिकता को बरकरार रखा जा सके। भोपाल 92 के माध्यम से श्रीवास्तव ने विपरीत परिस्थितियों में मानव आत्मा की ताकत को दर्शाने की कोशिश की है, जिससे यह उपन्यास शहर के सबसे अशांत समय की एक मार्मिक कहानी बन जाता है। अपनी रचनात्मक प्रक्रिया पर बात करते हुए श्रीवास्तव ने स्वीकार किया कि लिखते समय कई बार उन्हें यह समझने में कठिनाई हुई कि कहीं वह कहानी को ज़रूरत से ज़्यादा खींच तो नहीं रहे, या फिर बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि, बाद में उन्होंने खुद ही सही संतुलन स्थापित कर लिया। इस उपन्यास में भोपाल के ऐतिहासिक स्थलों से जुड़ी कहानियां भी शामिल हैं, जिनमें कर्फ्यू वाली माता का मंदिर का उल्लेख किया गया है, जिससे कहानी को सांस्कृतिक और ऐतिहासिक गहराई मिलती है।
• वैश्विक मुद्रा के रूप में ऊर्जा
इस विचारोत्तेजक सत्र में, 'Women in the Wild' पुस्तक की लेखिका अनीता मणि ने शिशिर प्रियदर्शी और अविनाश महांती (डेटा साइंटिस्ट) के साथ बातचीत की, जिसका संचालन भारती चतुर्वेदी ने किया। चर्चा का केंद्र जलवायु परिवर्तन और इसके कारण होने वाले बदलावों पर था।
वक्ताओं ने जलवायु परिवर्तन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की, यह बताते हुए कि कैसे बढ़ते तापमान विभिन्न शहरों को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे हमारी और प्रकृति दोनों की उत्पादकता में गिरावट और महासागरों तथा भूमि में गर्मी का बढ़ता संचय हो रहा है। उन्होंने प्रकृति और जैव-विविधता को समझने के महत्व को रेखांकित किया, यह बताते हुए कि मानव गतिविधियाँ पारिस्थितिकी तंत्र को अपरिवर्तनीय क्षति की ओर धकेल रही हैं।
नवीकरणीय ऊर्जा को एक जिम्मेदार ऊर्जा विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिसमें गर्मी प्रबंधन (Heat Management) प्रवृत्तियों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जो वैश्विक तापमान को कम करने में मदद कर सकती हैं।
सत्र का एक भावनात्मक क्षण तब आया जब वक्ताओं ने गौरैयों के विलुप्त होने पर अपने विचार प्रस्तुत किए, जिससे जैव विविधता में तेजी से आ रही गिरावट की ओर ध्यान आकर्षित हुआ। उन्होंने e-Birds साइट का भी उल्लेख किया, जो डेटा संग्रह के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है और शोधकर्ताओं तथा पर्यावरणविदों को पक्षियों की आबादी और पारिस्थितिक परिवर्तनों को ट्रैक करने में सहायता कर सकता है।
• Boundary Lab – The All-Around Impact of Sports
नंदन कमाथ के साथ खेलों के प्रभाव को समझें
इस सत्र में, 'Boundary Lab' पुस्तक के लेखक नंदन कमाथ ने अमृत माथुर और श्लोक चंद्रा के साथ बातचीत की, जिसमें खेलों के राजनीति, व्यापार और समाज पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा हुई।
वक्ताओं ने भारत में खेलों के बदलते परिदृश्य का विश्लेषण किया, उन नीतियों और चुनौतियों पर प्रकाश डाला जो इस क्षेत्र को आकार दे रही हैं। टिकट वापसी प्रणाली, खेल संगठनों को नियंत्रित करने वाले नियम और एथलीट्स द्वारा स्थापित किए जा रहे नए मानदंडों पर चर्चा की गई।
तकनीकी पहलुओं जैसे खेलों की मीडिया कवरेज और कैमरा स्टाइलिंग को भी छुआ गया, जिससे खेलों की प्रस्तुति में आए बदलावों की झलक मिली। सत्र का एक महत्वपूर्ण विषय था खेलों में महिलाओं की वेशभूषा और इससे जुड़ी नीतियाँ, जो समाज में उनकी सार्वजनिक छवि को प्रभावित करती हैं। बीच वॉलीबॉल जैसे खेलों में ड्रेस कोड और लैंगिक अपेक्षाओं पर विचार-विमर्श किया गया।
इसके अलावा, खेलों में यौन उत्पीड़न की गंभीर समस्या पर चर्चा हुई, जिसमें एथलीट्स के लिए सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करने के लिए सख्त नीतियों की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
• Untamed Poetry
"कविता सिर्फ मेरे अभिनय करियर से नहीं, बल्कि मेरे जीवन के हर महत्वपूर्ण अनुभव से प्रेरित है।" – संध्या मृदुल
इस गहरे भावनात्मक सत्र में, अभिनेत्री, लेखिका और कवयित्री संध्या मृदुल ने डॉ. नेहा जैन (IAS) के साथ बातचीत की। संध्या मृदुल ने अपनी पुस्तक 'Untamed Poetry' के बारे में खुलकर बात की और बताया कि कविता उनके लिए कभी एक सचेत निर्णय नहीं था, बल्कि यह स्वाभाविक रूप से उनके जीवन का हिस्सा बन गई।
उन्होंने इस पुस्तक को अपने जीवन की यात्रा का प्रतिबिंब बताया, जिसमें शोक, विकास और स्वतंत्रता के विषय प्रमुख रूप से उभरते हैं।
प्रेम और दुःख को लेकर उनके विचार विशेष रूप से प्रभावशाली थे। उन्होंने कहा कि "जो प्रेम आप चाहते हैं, वह केवल आप ही स्वयं को दे सकते हैं।" उन्होंने अपने भाई को एक वर्ष पूर्व खोने की बात साझा की, जिससे उनकी कविताओं को गहराई मिली और यह उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बनी।
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भोपाल 👤By: prativad Views: 287
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