
18 मार्च 2025। वैश्विक स्तर पर देखें तो ग्लूकोमा एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती है, जो दृष्टि हानि का प्रमुख कारण बन रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य अध्ययनों के अनुसार, 2020 में लगभग 76 मिलियन लोग ग्लूकोमा से प्रभावित थे, और यह संख्या 2040 तक बढ़कर 111.8 मिलियन तक पहुंचने का अनुमान है। इसमें से लगभग 60% मामले एशिया में हैं, जहां स्क्रीन का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है।
डिजिटल युग में लोग काम, मनोरंजन और संचार के लिए स्क्रीन पर तेजी से निर्भर हो रहे हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश में विश्व ग्लूकोमा दिवस के मौके पर की गई जांच में पता चला कि 36% मरीज ग्लूकोमा के शुरुआती चरण में थे। डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि यह बीमारी अक्सर बाद के चरणों तक पहचानी नहीं जाती और इसके बढ़ते मामलों का कारण टेलीविजन, कंप्यूटर और मोबाइल फोन जैसी डिजिटल स्क्रीनों का लंबे समय तक इस्तेमाल माना जा रहा है। वैश्विक अनुमानों के अनुसार, प्राइमरी ओपन-एंगल ग्लूकोमा (POAG) की व्यापकता अफ्रीका में सबसे अधिक (4.2%) है, जबकि प्राइमरी एंगल-क्लोजर ग्लूकोमा (PACG) एशिया में सबसे ज्यादा (1.09%) देखा जाता है। हालांकि ये उपकरण रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं, लेकिन ये आंखों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा भी पैदा कर रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, अत्यधिक स्क्रीन टाइम से ग्लूकोमा का जोखिम बढ़ रहा है। जब आंखों का दबाव (इंट्राओकुलर प्रेशर या IOP) 16 mmHg या उससे ऊपर पहुंच जाता है, तो इसे प्राथमिक ग्लूकोमा का शुरुआती संकेत माना जाता है। अगर इसका इलाज न किया जाए, तो बढ़ा हुआ IOP या ऑक्यूलर हाइपरटेंशन दृष्टि हानि का कारण बन सकता है।
शहडोल के मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) डॉ. ए.के. लाल ने बताया कि ग्लूकोमा के शुरुआती लक्षण तब दिखाई देते हैं जब आंखों का दबाव 16 mmHg तक पहुंचता है, लेकिन मरीज अक्सर इन संकेतों को नजरअंदाज कर देते हैं। अगले कुछ वर्षों में यह दबाव 19 mmHg तक बढ़ सकता है, जिससे स्थिति धीरे-धीरे बिगड़ सकती है। वैश्विक डेटा के अनुसार, ग्लूकोमा से पीड़ित लोगों में पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक प्रभावित होती हैं, खासकर PACG के मामले में। डॉ. लाल ने सरकार से ग्लूकोमा के प्रति जागरूकता अभियान शुरू करने की मांग की और जिनके परिवार में आंखों की बीमारियों का इतिहास है, उन्हें नियमित जांच और सावधानी बरतने की सलाह दी।
बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज, सागर के डॉ. सुमित रावत ने कहा कि ग्लूकोमा के लक्षण शुरुआती चरणों में अक्सर नजरअंदाज हो जाते हैं, इसलिए समय पर पता लगाने के लिए नियमित नेत्र जांच जरूरी है। वैश्विक अध्ययनों से पता चलता है कि 40-80 आयु वर्ग में ग्लूकोमा की व्यापकता 3.54% है, जो उम्र के साथ बढ़ती है। उन्होंने बताया कि डॉक्टर दृष्टि हानि को रोकने या धीमा करने के लिए दवाएं, लेजर ट्रीटमेंट और सर्जरी का सहारा लेते हैं। साथ ही, लंबे समय तक स्क्रीन के इस्तेमाल से कंप्यूटर विजन सिंड्रोम (CVS) हो सकता है, जिसमें आंखों में तनाव, सिरदर्द, धुंधली दृष्टि, सूखी आंखें और गर्दन या कंधे में दर्द जैसी समस्याएं शामिल हैं।
श्याम शाह मेडिकल कॉलेज (रीवा) के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ. शशि जैन ने कहा, "ग्लूकोमा के मामले खतरनाक रूप से बढ़ रहे हैं। एक परिवार के 75% सदस्य भी इससे प्रभावित पाए गए हैं। इसलिए, अगर किसी एक सदस्य में ग्लूकोमा के लक्षण दिखते हैं, तो हम पूरे परिवार की जांच करते हैं। आंखों के दबाव के अलावा, नसों का सूखापन भी ग्लूकोमा का बड़ा कारण है।" वैश्विक स्तर पर देखें तो 2019 तक ग्लूकोमा से प्रभावित लोगों की संख्या 7.47 मिलियन थी, जिसमें अफ्रीका और एशिया में सबसे अधिक बोझ देखा गया। आने वाले वर्षों में यह चुनौती और गंभीर हो सकती है, खासकर डिजिटल स्क्रीन के बढ़ते उपयोग के साथ।