पाकिस्तान के हुक्मरानों, आईएसआई और आर्मी भारत के लिए जो बबूल के पेड़ बोये थे, उसके काँटे इन दिनों पलटकर उन्हें ही बुरी तरह चुभ रहे हैं। जैसे ही पाकिस्तान के नये आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने चार्ज संभाला, अफ़ग़ानिस्तान के चरमपंथी संगठन 'तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान' (टीटीपी) ने पाक आर्मी के साथ चल रहे सीज़फायर को तोड़कर अपने लड़ाकों के लिए हुक्म जारी कर दिया है कि वे शहर-दर शहर पूरे पाकिस्तान में हमले करें इसकी बानगी के तौर पर इसी दिन क्वेटा में पुलिस की गाड़ी के नज़दीक एक आतंकी ने खुद को बम से बांधकर उड़ा लिया।
इस आत्मघाती हमले में तीन पुलिसकर्मी मारे गए और कई बुरी तरह घायल हुए। टीटीपी ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक टीटीपी के लड़ाके आसिम मुनीर को आर्मी चीफ बनाए जाने के फैसले से नाराज थे। माना जा रहा है कि ये हमला उनकी नाराज़गी का इज़हार और आगे की जंग का बिगुल है। ये वही आसिम मुनीर हैं, जो बीते सालों में बतौर आईएसआई चीफ भारत के खिलाफ साजिशें रचते रहे हैं और पुलवामा हमले के मास्टरमाइंड माने जाते हैं।
टीटीपी और पाक आर्मी के बीच इस वर्ष जून में सशर्त युद्धविराम हुआ था। अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार के कुछ जिम्मेदार लोगों और इमरान सरकार के एक अधिकारी की मध्यस्थता में यह समझौता हो पाया था। वैसे भी टीटीपी को इमरान समर्थक माना जाता है। जाहिर है कि शाहबाज शरीफ का सत्ता में आना भी टीटीपी की नाराजगी की एक वजह है। टीटीपी के कुछ लीडरों का कहना है कि सीजफायर के बाद भी पाक आर्मी ने टीटीपी के कुछ लड़ाकों को मार गिराया है। इस बात को लेकर भी टीटीपी बुरी तरह चिढ़ा हुआ था।
इधर पाक आर्मी प्रचार करती रही है कि टीटीपी ने ही युद्धविराम का उल्लंघन करते हुए पुलिस और बेगुनाह नागरिकों पर हमले किए हैं। कुल मिलाकर अविश्वास की परतें दोनों तरफ नज़र आ रही हैं। पर अब यह साफ हो गया है कि टीटीपी के लड़ाकों ने लुकाछिपी छोड़कर सीधी मुठभेड़ का इरादा कर लिया है। टीटीपी के ऐलान- ए-जंग के बाद पाकिस्तान में हड़कंप मचा हुआ है। मुल्क के अंदरूनी हालात वैसे ही काफी खराब चल रहे हैं। चुनाव की माँग को लेकर इमरान के लांग मार्च में उमड़ती भीड़ शाहबाज़ शरीफ़ के लिए भारी परेशानी का सबब बनी हुई थी। ऐसे में टीटीपी की चुनौती शाहबाज़ सरकार के लिए एक नयी मुसीबत लेकर आई है। डैमेज कंट्रोल के लिए शाहबाज़ ने अपनी विदेश राज्यमंत्री हिना रब्बानी खार को फौरन काबुल रवाना किया। हिना रब्बानी को पाकिस्तान का सॉफ्ट चेहरा माना जाता है, पर उनकी काबुल यात्रा के नतीजे आने अभी बाकी हैं।
टीटीपी के पैदा होने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। पिछली सदी के नब्बे के दशक में जब अफगानिस्तान में सोवियत सेना मौजूद थी, उस वक्त उनका मुकाबला करने के लिए अमेरिका की मदद से पाकिस्तान में तालिबानी लड़ाकों को तैयार किया गया था । अफ़ग़ान सरहद से लगे कई इलाकों में पाक आर्मी ने मज़हबी जहर भरकर इन लड़ाकों को प्रशिक्षित किया और सोवियत आर्मी से गुरिल्ला युद्ध के लिए अफ़ग़ानिस्तान में उतार दिया। इन्हें नाम दिया गया-- अफ़ग़ानिस्तानी तालिबान
उस वक्त पाकिस्तान की पाँचों उँगलियाँ घी में थी । अमेरिका से उन्हें डॉलरों से भरे सूटकेस और मिठाइयों के डिब्बे मिल रहे थे। जब तालिबानी लड़ाकों ने सोवियत आर्मी को भगा दिया और अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी सरकार बन गई, तो पाकिस्तान ने इसे अपनी जीत माना था। इनमें से बहुत से तालिबानी पाकिस्तान में ही रह गए थे। पाकिस्तान ने इसका फायदा उठाते हुए इनमें से कुछ चरमपंथियों को पाक अधिकृत कश्मीर में उतारकर भारत पर भी दबाव बढ़ाने की कोशिश की थी। हम भूले नहीं हैं कि इन्हीं दिनों अकस्मात ही कश्मीर पर आतंकी हमले काफी बढ़ गए थे।
अफगानिस्तान में तालिबान के लौटने के बाद पाकिस्तान बहुत खुश था कि अब इनकी मदद से वह भारत पर दबाव बढ़ाने में कामयाब हो जाएगा। पर अब सारे हालात उलट चुके हैं। दोनों तालिबान संगठन पाकिस्तान को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मान रहे हैं। अफगानी सरकार तो भारत की मदद से चल रहे इन्फास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट पुनः शुरू कराने वाली है और इधर मुफलिस पाकिस्तान के दोनों हाथ खाली दिखाई दे यह सिलसिला पाकिस्तान को बेहद रास आ रहा रहे हैं। पाकिस्तान अपने ही बुने जाल में फंस गया है।
था। उसे बैठे बिठाए डॉलरों की सौगात मिल रही थी। तस्वीर का रुख 2001 में बदला, जब अल कायदा ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया और नतीजतन अमेरिका ने अफगानिस्तान में सेना उतार दी। तब अधिकांश तालिबानी पाकिस्तान में आ गए। जब पाकिस्तान की जमीन से अमेरिका ने तालिबानियों पर हमले किए, तो यही तालिबानी पाकिस्तान के दुश्मन बन गए। इनमें से कई चरमपंथी तालिबानी सँगठनों ने मिलकर 2007 में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीपीपी) का गठन किया था। दिलचस्प बात यह भी है कि टीटीपी पूरे पाकिस्तान को अपना हिस्सा मानते हुए यहां शरिया कानून लागू करना चाहता है। पाकिस्तान में हुए सैकड़ों आतंकी हमलों के लिए इसी संगठन को जिम्मेदार ठहराया जाता है और इसे ढँके-छुपे तौर पर तालिबान अफगानिस्तान का समर्थन भी प्राप्त है।
- नीरज मनजीत
लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के टिप्पणीकार है।
अपने ही बुने जाल में फंसा पाकिस्तान
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