बाइनरी ब्लैक होल सिस्टम से एक्स-रे में आयरन लाइन्स की खोज: खगोल विज्ञान में नई उपलब्धि

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 112

10 जनवरी 2025। पृथ्वी से 750 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर स्थित रेडियो आकाशगंगा 4C+37.11 के प्रसिद्ध बाइनरी ब्लैक होल सिस्टम में एक्स-रे के माध्यम से आयरन लाइन्स की खोज की गई है। यह खोज खगोलविदों को इन ब्लैक होल्स के गुणों और उनके आसपास के वातावरण को बेहतर ढंग से समझने का मार्ग प्रशस्त करती है। पहली बार एक्स-रे में ऐसी रेखाएं किसी बाइनरी सिस्टम में पाई गई हैं।

खोज के प्रमुख बिंदु
यह खोज भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) के खगोलविदों द्वारा चंद्रा स्पेस टेलीस्कोप से प्राप्त डेटा का उपयोग करके की गई।
आयरन परमाणुओं से उत्पन्न एक्स-रे स्पेक्ट्रा में "एफईके उत्सर्जन रेखाएं" बाइनरी ब्लैक होल सिस्टम के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
इन रेखाओं के माध्यम से ब्लैक होल्स के आसपास की गैस की भौतिक स्थितियों, जैसे तापमान, घनत्व, और आयनीकरण अवस्था का अध्ययन किया जा सकता है।
4C+37.11: एक अनोखा बाइनरी सिस्टम
4C+37.11 एक बाइनरी एक्टिव गैलेक्टिक न्यूक्लियस (BAGN) है, जिसमें दो सुपरमैसिव ब्लैक होल (SMBH) शामिल हैं। ये ब्लैक होल केवल 23 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित हैं और पृथ्वी से 750 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर हैं।
2004 में खोजे गए इस सिस्टम में एसएमबीएच की निकटता इसे खगोलविदों के लिए एक दुर्लभ और मूल्यवान अध्ययन का विषय बनाती है।

अध्ययन के परिणाम
इस खोज में पाया गया कि एक्स-रे उत्सर्जन इन ब्लैक होल्स के चारों ओर अभिवृद्धि डिस्क और टकराव से आयनित प्लाज्मा के संयुक्त प्रभाव से उत्पन्न होता है।
टीम ने बाइनरी ब्लैक होल्स के कुल द्रव्यमान को सूर्य के 15 बिलियन गुना के बराबर और उनके मध्यम या निम्न स्पिन (0.8 से कम) के साथ निर्धारित किया।

वैज्ञानिकों के विचार
डॉ. शांतनु मोंडल, IIA के रामानुजम फेलो और अध्ययन के प्रमुख लेखक ने कहा:
"हमने पहली बार 4C+37.11 में आयनित आयरन की एफईके रेखाएं खोजी हैं। यह खोज ब्लैक होल्स के गुणों और उनके विलय से जुड़ी प्रक्रियाओं को समझने में मदद कर सकती है।"


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चित्र कैप्शन: 4C+37.11 के कोर की चंद्रा एक्स-रे छवि। लाल वृत्त वह क्षेत्र है जिसे वर्णक्रमीय विश्लेषण के लिए माना जाता है।


डॉ. मौसमी दास, सह-लेखिका, ने बताया:
"एफईके उत्सर्जन रेखाएं ब्लैक होल्स के द्रव्यमान और स्पिन का अनुमान लगाने के साथ-साथ उनके आसपास के पदार्थ और विकिरण के व्यवहार को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।"

अंतरराष्ट्रीय योगदान
इस अध्ययन में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के वैज्ञानिकों के साथ-साथ नॉर्वे, अमेरिका और न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भी योगदान दिया।
अध्ययन के परिणाम प्रतिष्ठित पत्रिका "एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स" में प्रकाशित किए गए हैं।

महत्व और भविष्य की संभावनाएं
यह खोज न केवल बाइनरी ब्लैक होल सिस्टम के अध्ययन को नई दिशा देती है, बल्कि खगोल विज्ञान में नई संभावनाओं का द्वार भी खोलती है। यह समझने में मदद करती है कि ब्लैक होल्स के विलय के दौरान गुरुत्वाकर्षण तरंगें कैसे उत्पन्न होती हैं और उनके आसपास के वातावरण में क्या परिवर्तन होते हैं।

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