
12 मार्च 2025। जबलपुर उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि कोई महिला यौन संबंध के लिए मौन सहमति देती है, तो उसे बलात्कार नहीं माना जा सकता है। यह निर्णय उस मामले के संबंध में आया है जहाँ एक पुरुष पर एक महिला के साथ बलात्कार का आरोप लगाया गया था, जिसके साथ उसके सहमति से यौन संबंध थे।
◼️ मामले के तथ्य:
शहडोल निवासी की याचिका:
यह मामला शहडोल जिले के बुढ़ार निवासी अजय चौधरी से संबंधित है, जिन्होंने जिला न्यायालय द्वारा बलात्कार के आरोप तय किए जाने को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में एक पुनरीक्षण याचिका दायर की थी।
अजय चौधरी एसईसीएल में गार्ड के पद पर कार्यरत है।
शिकायतकर्ता एक अतिथि शिक्षिका है।
◼️ प्रेम संबंध और सहमति:
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उनके और शिकायतकर्ता के बीच प्रेम संबंध थे, और यौन संबंध सहमति से थे।
वर्ष 2019 में याचिकाकर्ता, अतिथि शिक्षिका के संपर्क में आया था।
याचिकाकर्ता मार्च 2020 से फरवरी 2021 तक शिकायतकर्ता के घर कई बार गया और इस दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हुए।
इस दौरान शिकायतकर्ता की मां और दादी भी घर में थी।
पहली बार शारीरिक संबंध स्थापित होने पर युवती ने इस संबंध में परिजनों को बताया था। इस दौरान याचिकाकर्ता ने शादी करने की बात कही थी।
◼️ विवाह संबंधी विवाद:
दोनों पक्षों के परिवार शादी के लिए सहमत नहीं थे, जिसके कारण शिकायतकर्ता ने अजय चौधरी के खिलाफ बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई।
शिकायतकर्ता के माता-पिता मार्च 2021 में शादी की बात करने याचिकाकर्ता के घर गए थे। इस दौरान दोनों पक्षों में विवाद हो गया और शिकायतकर्ता ने अप्रैल 2021 में राजेन्द्र नगर थाने में रेप की एफआईआर दर्ज करवा दी थी।
◼️ उच्च न्यायालय का निर्णय:
न्यायमूर्ति एके पालीवाल की एकल पीठ:
न्यायमूर्ति एके पालीवाल की एकल पीठ ने जिला न्यायालय के आरोपों को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को राहत प्रदान की।
एकलपीठ ने कहा कि शारीरिक संबंध स्थापित करने के दौरान शिकायतकर्ता की मौन स्वीकृति थी।
बलात्कार का आरोप गठित करने में भौतिक तत्व होने चाहिये।
एकलपीठ ने इसे कानून की दृष्टि में गलत मानने हुए तय आरोपों को खारिज कर दिया।
◼️ मौन स्वीकृति की व्याख्या:
अदालत ने कहा कि "शिकायतकर्ता ने मनोवैज्ञानिक दबाव में शारीरिक संबंध बनाने की मौन स्वीकृति प्रदान की थी।"
"शारीरिक संबंध बनाने में मौन स्वीकृति के कारण प्रकरण में बलात्कार का आरोप गठित किये जाने के भौतिक साक्ष्यों का अभाव है।"
"शिकायतकर्ता ने शादी का झूठा प्रलोभन देकर उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित नहीं किए।"
◼️ आदेश का प्रभाव:
इस निर्णय के साथ, उच्च न्यायालय ने बलात्कार के आरोपों को रद्द कर दिया।