पत्रकार सुरक्षा कानून: सिर्फ चुनावी जुमला?

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 558

27 मार्च 2025। पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग अब सरकार के लिए एक बड़ा सवाल बन गई है। तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 20 सितंबर 2023 को विधानसभा चुनाव से पहले इस समिति के गठन की घोषणा की थी। इसके बाद 25 सितंबर को सरकार द्वारा अधिसूचना जारी की गई, जिसमें अपर मुख्य सचिव (गृह) को समिति का अध्यक्ष बनाया गया। समिति में प्रमुख सचिव (विधि), सचिव जनसंपर्क विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के प्रतिनिधि और एक वरिष्ठ पत्रकार को सदस्य के रूप में शामिल किया गया था।

सरकार ने वरिष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव को भी समिति का सदस्य मनोनीत किया था। लेकिन, इसके गठन के बाद से अब तक समिति की मात्र एक ही बैठक हो पाई है, जो विधानसभा चुनाव से पहले आयोजित हुई थी। इसके बाद आचार संहिता लागू होते ही समिति को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। चुनाव समाप्त होने और आचार संहिता समाप्त होने के बावजूद सरकार ने इस समिति की कोई बैठक नहीं बुलाई और न ही किसी सदस्य से संपर्क किया गया। क्या यह सिर्फ चुनावी हथकंडा था?

◼ पत्रकारों पर हमले, सरकार की चुप्पी क्यों?
पत्रकारों पर लगातार बढ़ रहे हमलों ने इस कानून की मांग को और भी आवश्यक बना दिया है। हाल ही में मध्य प्रदेश के सीधी जिले में एक पत्रकार को पुलिस हिरासत में अपमानजनक व्यवहार का शिकार होना पड़ा। एक वायरल वीडियो में खनन अधिकारी को एक पत्रकार की पिटाई करते हुए देखा गया। वहीं, राजगढ़ में एक यूट्यूब रिपोर्टर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। क्या सरकार की चुप्पी अपराधियों को खुला लाइसेंस दे रही है?

◼ समिति का मज़ाक! न बैठक, न मसौदा!
महेश श्रीवास्तव के अनुसार, समिति की एकमात्र बैठक में यह सुझाव दिया गया था कि पत्रकार सुरक्षा कानून को लागू करने के लिए उन राज्यों का अध्ययन किया जाए जहां यह पहले से प्रभावी है। उन्होंने महाराष्ट्र में लागू अधिनियम की प्रति भी मांगी थी, ताकि मध्य प्रदेश में इसी तर्ज पर कानून का मसौदा तैयार किया जा सके। लेकिन, अब तक उन्हें वह प्रति प्राप्त नहीं हुई है। क्या सरकार खुद इस प्रक्रिया को लटकाना चाहती है?

◼ छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में पारित तो हुआ, लेकिन लागू कब होगा?
महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ ऐसे दो राज्य हैं जहां पत्रकार सुरक्षा अधिनियम पहले ही पारित हो चुका है। छत्तीसगढ़ में यह कानून विधानसभा चुनाव से पहले लागू किया गया था। पत्रकार संगठनों ने लंबे समय से इस कानून की मांग की थी ताकि पत्रकारों को कार्यस्थल पर सुरक्षा मिले और वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकें। हालांकि, छत्तीसगढ़ में यह केवल पारित हुआ है, लेकिन इसे पूरी तरह लागू करने की दिशा में कब कदम उठाए जाएंगे, यह अब भी स्पष्ट नहीं है।

◼ क्या सरकार सिर्फ वादों तक सीमित है?
अब सवाल यह उठता है कि मध्य प्रदेश सरकार इस दिशा में कब कदम उठाएगी? क्या यह समिति पुनः सक्रिय होगी या यह मांग केवल चुनावी जुमला बनकर रह जाएगी? अगर सरकार पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती, तो क्या उसे लोकतंत्र की चौथी स्तंभ की चिंता है?

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