तीन पत्रकारों को किया गया सम्मानित
"सार्थक मीडिया और सफल मीडिया का अंतर्द्वंद विषय पर हुआ विमर्श"
15 मई 2017। वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय ने कहा कि सफलता का पैमाना यदि वही है जो सार्थक होने का है तो फिर जो सार्थक है वही सफ़ल है। लेकिन वर्तमान में मीडिया ही नहीं अन्य जगत में भी सफलता के पैमाने बदल गए हैं। मीडिया में वर्तमान में सार्थकता और सफलता का अंतर्द्वंद नहीं बल्कि भारतीय और अभारतीय का द्वन्द है। कुछ लोग ऐसे हैं जो अभारतीय विचारों और चीजों को श्रेष्ठ मानते हैं। मीडिया को सकारात्मक चिंतन को आगे बढ़ाना चाहिए।
श्री उपाध्याय विश्व संवाद केंद्र भोपाल द्वारा आयोजित देवर्षि नारद जयंती पर "सार्थक मीडिया और सफल मीडिया का अंतर्द्वंद" विषय पर आयोजित विमर्श को संबोधित कर रहे थे l इस अवसर पर पत्रकारिता में रचनात्मक लेखन के लिए प्रदेश के तीन पत्रकारों क्रांति चतुर्वेदी, अनिल सिरवैया, गिरीश उपाध्याय को देवर्षि नारद सम्मान-2017 से सम्मानित किया गया।
श्री उपाध्याय ने कहा कि मीडिया में नकारात्मक चीजों को भी सकारात्मक दृष्टि से प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि समाज में सुधार हो लेकिन कुछ लोग सिर्फ नकारात्मकता को ही बढ़ावा देते हैं उनका एजेंडा कुछ और है। हर देश में मीडिया उस देश के हितों को आगे बढाने का काम करता है लेकिन हमारे यहाँ मीडिया में कुछ लोग ऐसे है जो उन देशों के हितों को आगे बढ़ा रहे हैं जिनसे उन्हें लाभ मिलता है। उन्होंने कहा कि आचार्य भरत मुनि ने सकारात्मक विचारों को पैदा करने के लिए 6 रस बताये और तीन रस नकारात्मक भाव को लेकर प्रस्तुत किये।
मीडिया में इनमे संतुलन नहीं है। जब तक संतुलन नहीं होगा तब तक पूर्ण संचार नहीं होगा। सभी रसों को सामान रूप से जगह दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि विश्व संवाद केंद्र का प्रयास सराहनीय है और इससे भारतीय परमंपरा को यहाँ की चिंतन धारा से जोड़ने में मदद मिलेगी, जो सार्थक होता है समाज दीर्घ रूप से उसे ही सफल मानता है।
उन्होंने रामचरितमानस के हनुमान-विभीषण प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि सार्थक पत्रकार दांतों के बीच जीभ की तरह होता है। उन्होंने कहा कि मीडिया में व्यवसायिकता टी.आर.पी. और प्रसार की होड़, यश-कीर्ति की चाह और दूसरों से आगे निकलने की होड़ के कारण सफलता के पैमाने बदल गए हैं।
वरिष्ठ पत्रकार सुमित अवस्थी ने विमर्श को संबोधित करते हुए कहा कि सार्थक और सफलता का अंतर्द्वंद आज़ादी के पहले भी रहा है। जब हम असफल नहीं कहलाना चाहते हैं तो कुछ न कुछ करना पड़ता है। सार्थक होने का रास्ता कठिन है, हौसले डगमगा सकते हैं। ऐसा लगेगा कि कुछ लोग हमसे आगे निकल गए। आज समय की आवश्यकता है कि सार्थक प्रयास करने वालों का सम्मान किया जाये और उन्हें अहमियत दी जाये।
सोशल मीडिया पर खुद सम्पादक बने
श्री अवस्थी ने कहा कि सोशल मीडिया पर लोगों को पता ही नहीं लगता कि कब वे मार्केटिंग रणनीति का हिस्सा बन जाते हैं और ऐसे संदेशों को आगे बढ़ाते हैं जो समाज-देशहित में नहीं हैं और गलत सूचना देते हैं। उन्होने कहा कि सोशल मीडिया में लोगों को खुद सम्पादक बनना चाहिए और इस तरह के संदेशों को रोकना चाहिए।
हस्तक्षेप सत्र में डॉ सुभाष, सतीश चतुर्वेदी, डॉ विवेक कान्हेरे, ब्रिगेडियर विनायक ने हस्तक्षेप कर संबोधन पर अपनी राय रखी।
कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता एवं नारद जी के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुआ। कार्यक्रम में पधारे अतिथियों का स्वागत राधेश्याम मालवीय एवं मुकेश अवस्थी ने किया। मंच संचालन मयंक चतुर्वेदी ने किया।
कार्यक्रम में माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के कुलपति बृजकिशोर कुठियाला, कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य हस्तीनामल जी, वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय, शिव अनुराग पटेरिया, विजय मनोहर तिवारी, अशोक त्रिपाठी सहित कई वरिष्ठ पत्रकार उपस्थित थे। आभार प्रदर्शन विश्व संवाद केंद्र के अध्यक्ष लक्ष्मेन्द्र माहेश्वरी ने किया।
सार्थक-सफलता का नहीं, भारतीय-अभारतीय का द्वन्द है मीडिया में ? उमेश उपाध्याय
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Bhopal 👤By: DD Views: 18142
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