
1 अप्रैल 2025। एम्स भोपाल ने आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत एक और बड़ी सफलता हासिल करते हुए आठवां सफल किडनी प्रत्यारोपण किया है। संस्थान के कार्यकारी निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह के नेतृत्व में, यह उपलब्धि एम्स भोपाल की उन्नत चिकित्सा सेवाओं और गुर्दे की अंतिम अवस्था की बीमारी से जूझ रहे मरीजों को नई उम्मीद देने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
25 वर्षीय मरीज, जो भोपाल के निवासी हैं, पिछले तीन साल से गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थे और पिछले डेढ़ साल से डायलिसिस पर थे। उनके 31 वर्षीय बड़े भाई ने उन्हें अपनी एक किडनी देकर नया जीवन दिया। डोनर की किडनी को लैप्रोस्कोपिक तकनीक से निकाला गया, जो एक न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है। इस तकनीक में पेट में केवल एक छोटा चीरा लगाया जाता है, जिससे ऑपरेशन के बाद दर्द कम होता है और रिकवरी तेजी से होती है। डोनर ऑपरेशन के अगले ही दिन चलने-फिरने में सक्षम हो गए।
यह पूरा प्रत्यारोपण आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत किया गया, जिससे मरीज को बिना किसी आर्थिक बोझ के उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सुविधा मिली।
प्रो. (डॉ.) अजय सिंह ने इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए चिकित्सा टीम को बधाई दी और कहा, "यह सफलता हमारी बहु-विषयक टीम के समर्पण और सामूहिक प्रयासों का परिणाम है। यह मानवीय करुणा की भावना को भी दर्शाती है, जहां एक भाई ने अपने भाई को नया जीवन दिया। एम्स भोपाल अपने मरीजों को सर्वोत्तम चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है, और आयुष्मान भारत योजना के तहत यह प्रत्यारोपण सुनिश्चित करता है कि वित्तीय बाधाएं जीवन रक्षक उपचार में कभी रुकावट न बनें। हमारा अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम आगे भी इसी तरह जारी रहेगा, और अधिक से अधिक मरीजों को आशा और स्वास्थ्य प्रदान करेगा।"
यह सफल प्रत्यारोपण एम्स भोपाल के विभिन्न विभागों के विशेषज्ञों की एक कुशल टीम द्वारा किया गया। नेफ्रोलॉजी विभाग से डॉ. महेंद्र अटलानी ने नेतृत्व किया, जबकि यूरोलॉजी विभाग की टीम में डॉ. देवाशीष कौशल, डॉ. कुमार माधवन, डॉ. केतन मेहरा और डॉ. निकिता श्रीवास्तव शामिल थे। एनेस्थीसिया विभाग में डॉ. वैशाली वेंडेसकर, डॉ. सुनैना तेजपाल कर्ण और डॉ. शिखा जैन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
एम्स भोपाल अपने अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम का विस्तार करते हुए उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के अपने मिशन को जारी रखेगा। इस तरह की पहल से संस्थान गुर्दे की अंतिम अवस्था की बीमारी से जूझ रहे मरीजों के लिए आशा और स्वास्थ्य का प्रतीक बना हुआ है।