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परिवार ही दे सकता है ब्लू व्हेल को चुनौती - राहुल कोठारी

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Place: Bhopal                                                👤By: PDD                                                                Views: 18319

देश में ब्लू व्हेल पर पहली बार जुटे विशेषज्ञ



8 सितंबर 2017। वर्तमान समय में परिवार अपने काम-काज में इतने व्यस्त हैं कि वे अपने बच्चों को समय नहीं दे पा रहे। यही वजह है कि बच्चे अकेलापन महसूस कर रहे हैं। यही अकेलपान बच्चों को ब्लू व्हेल जैसे खतरनाक गेम खेलने को मजबूर कर रहा है। ऐसे में माता-पिता और स्कूल के शिक्षक किशोर-किशोरियों पर ध्यान रखें कि वे कौन-कौन सी गतिविधि कर रहे हैं। यह बातें सरोकार समिति के अध्यक्ष एवं कार्यशाला के आयोजक राहुल कोठारी ने ब्लू व्हेल पर आयोजित कार्यशाला में कहीं। इस कार्यशाला में ब्लू व्हेल गेम से बचने के उपायों पर अनेक विशेषज्ञों ने सुझाव दिए। सरोकार के अध्यक्ष राहुल कोठारी ने बताया कि कार्यशाला के सुझावों को प्रदेश के स्कूलों में प्रचारित किया जायेगा। वालंटियर्स का ग्रुप जागरुकता के लिये अन्य गतिविधियां भी संचालित करेगा। इस पूरे दृष्टि पत्र को मध्यप्रदेश और केन्द्र सरकार को सौंपकर ऐसी घटनाओं की रोकथाम के उपाए किए जायेंगे।

भोपाल में आयोजित इस कार्यशाला में आईटी विशेषज्ञ, साइबर क्राइम विशेषज्ञ, मनोचिकित्सक, बच्चों के काउंसलर, कला विशेषज्ञ, योग विशेषज्ञ, शिक्षा विभाग, खेल विभाग, अभिभावकों एवं छात्रों ने ब्लू व्हेल की चुनौती और समाधान की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।

इस अवसर पर मध्यप्रदेश बाल आयोग के पूर्व सदस्य श्री विभांशुु जोशी ने बताया कि ब्लू व्हेल एक डिजिटल डिजास्टर है और इससे बचाने के लिए भारत सरकार को नई डिजिटल सेफ्टी गाइड लाइन बनाकर बच्चों को सुरक्षा प्रदान कर इसे नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एथारिटी के कार्यक्रम में शामिल करना चाहिए।

बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर डॉ. रामप्रसाद ने बताया कि जब हमारे बच्चे हाइवे पर गाड़ी चलाते हैं तो हम उन्हें यातायात के नियम समझाते हैं। ऐसे में आज इंटरनेट एक सुपर हाइवे बन गया है, बच्चों को तकनीक के नियम भी पालकों को ही समझाने होंगे ताकि वे सही निर्णय ले सकें।

मंदार एंड नो मोर मिशन के संस्थापक एवं कार्यक्रम के सह आयोजक श्री विश्वास घुषे ने बताया कि यदि आपका बच्चा गुमसुम रहने लगा है, छिपकर इंटरनेट का इस्तेमाल करता है, सुबह 4 बजे उठकर और देर रात तक इंटरनेट चलाता है, बच्चों के शरीर पर चोट के निशान दिखने शुरू हो जाते हैं, इंटरनेट का इस्तेमाल न कर पाने के कारण उनका चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है तो बच्चों पर ध्यान देना अति आवश्यक है।

प्राचार्या श्रीमती मेघा मुक्तिबोध ने बताया कि परिवार अपनी जिम्मेदारी से पीछे न हटे। क्योंकि बच्चे एवं युवा शैक्षणिक संस्थान से ज्यादा समय घर पर बिताते है। उनकी सुरक्षा की नैतिक जिम्मेदारी परिवार की ज्यादा है। आईटी विशेषज्ञ राजेश नायर ने कहा- ब्लू व्हेल गेम नहीं है। यह कुछ लोगों के समूह द्वारा निर्देशित कंटेंट है जो बच्चों को निर्देश देता है। हमारे किशोर सोशल मीडिया में क्या-क्या करते हैं, परिजनों को इस पर नजर बनाए रखना चाहिए।

साइकोलॉजिस्ट अदिति सक्सेना ने बताया- बच्चों को अकेला न छोड़ें। माता-पिता बच्चों से बातें करते रहें। बच्चों को टोकने और निर्देश देना ठीक नहीं होता इसलिए उनके साथ खुद भी बच्चे बन जाएं और उन्हें समझाएं। जिला खेल अधिकारी जोस चाको ने बताया कि इंटरनेट पर ऐसे खेलों को सरकार प्रतिबंधित करे ताकि बच्चे उन खेलो को खेल ही न सकें। सरकार के पास ऐसे कानून हैं जिनसे यह खेल रोके जा सकते हैं।

संगीत विशेषज्ञ बृजेश रावत ने कहा कि बच्चों को तनाव में न जीने दें। उन्हें संगीत भरा माहौल प्रदान करें ताकि वे खुशनुमा माहौल में जी सकें। वे खुश रहेंगे तो ब्लू व्हेल जैसे खेल खेलने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर श्री अमिताभ सक्सेना ने कहा कि बच्चों केे आधुनिकता भरे माहौल पर ध्यान रखना चाहिए। पब जैसी संस्कृति में बच्चे क्या-क्या करते हैं, उन पर ध्यान रखा जाये।

कानून की छात्रा ऐश्वर्य गुरु ने बताया कि एकल परिवारों के चलते बच्चे अब बाहर खुले में खेल नहीं पाते। ऐसे में माता-पिता उन्हें स्मार्टफोन दे देते है, इससे बच्चे ऑनलाइन गेम खेलने लगते हैं, इससे ही ब्लू व्हेल जैसे गेम खतरे का कारण बन जाते हैं। बच्चों को खुले में खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाये।

आरजे पीहू ने कहा कि घरों में आपसी बातचीत का वातावरण बनाएं ताकि बच्चे जब स्कूल, कॉलेज से घर आएं तो उन्हें अच्छा महसूस हो। ऐसे में बच्चों में डिप्रेशन का सवाल ही पैदा नहीं होता।

जिला शिक्षा अधिकारी धर्मेन्द शर्मा ने कहा कि बच्चों को स्मार्ट बनाना है तो स्मार्ट फोन तो देना ही होगा, बेहतर होगा कि उनमें अच्छे संस्कार डाले जाए। उनसे बातें करें, ब्लू व्हेल से बचने का यही कारगार तरीका है।

कार्यशाला में शिक्षाविद रश्मि वबेजा, कार्टूनिस्ट हरिओम तिवारी, असिस्टेंट डॉयरेक्टर श्रुति सिंह, बाल अधिकार विशेषज्ञ मनोज पांडे, स्काउटर प्रकाश दिसौरिया, प्राचार्य रश्मि बवेजा, वीरेन्द्र ओसवाल, डॉ. निशांत नम्बिशन एवं अनेक युवाओं, अभिभावकों एवं विशेषज्ञों ने अपने सुझाव दिए।



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