15 दिसम्बर, 2017। लगभग 8 लाख करोड़ रूपयों की ऋण अदायगी न होने से बैंकों व वित्तीय संस्थानों की जहां एक ओर माली हालत खराब है तो वहीं दूसरी ओर लिक्विडिटी की कमी से देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। ऋण देने की प्रक्रिया में खामी, जोखिम का गलत आंकलन, निगरानी की कमी, प्राकृतिक आपदाएं, बीमार उद्योग, आर्थिक मंदी, न्यायालयीन व प्रशासकीय प्रक्रियाओं का आड़े आना आदि इस बुरी स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। स्टील व अधोसंरचना सहित कुछ प्रमुख क्षेत्रों की चंद कंपनियों में सबसे ज्यादा राशि फंसी हुई है।
उक्त जानकारी आज पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्रीज व भोपाल मैनेजमेंट एसोसिएशन द्वारा एनपीए मैनेजमेंट: चैलेंजेस एण्ड रेमेडीज विषय पर आयोजित कार्यशाला में वित्तीय जगत से आये विशेषज्ञों ने दी। इस कार्यशाला को पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्रीज के राज्य प्रमुख आर जी द्विवेदी, भारतीय रिजर्व बैंक के महाप्रबंधक राजेश जय कांथ, पंजाब नेशनल बैंक के डिप्टी जोनल मैनेजर एस के डोकानिया, चार्टर्ड अकाउंटेट नवीन सूद, इण्डस्ट्रियल कमेटी मध्यप्रदेश के चेयरमेन कुणाल ज्ञानी तथा वित्तीय विशेषज्ञ लाजपत राय श्रीवास्तव ने संबोधित किया।
श्री डोकानिया ने कहा कि चूंकि किसी भी ऋण में बैंकों की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत तक होती है अतएव कोई भी बैंक अपना पैसा बहुत सोच समझकर उधार देता है और उसका प्रयास होता है कि दिया हुआ ऋण प्रोडक्टिव बना रहे।
लाजपत राय श्रीवास्तव ने कहा कि आपसी समझौते, वसूली शिविर, एकमुश्त भुगतान योजना, छोटे ऋणों की माफी, जानबूझकर ऋण न चुकाने वालों के विरूद्ध न्यायालय की शरण व लोक अदालतों आदि के जरिए एनपीए में कमी लाई जा सकती है।
नवीन सूद ने दिवालिया कानून के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि इस कानून में 180 दिनों के भीतर सेटलमेंट करने का प्रावधान है जिसका प्रयोग किया जाना चाहिए।
पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स द्वारा एनपीए मैनेजमेंट पर कार्यशाला आयोजित
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