20 मार्च, 2018। डाउन सिंड्रोम कोई बीमारी नहीं है बल्कि यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है। यह डिसऑर्डर न केवल पीड़ित बच्चे को बल्कि उसके पेरेंट्स जीवनपर्यन्त परेशान करता है। थोड़े से प्रोत्साहन व प्रशिक्षण से इससे पीड़ित बच्चे स्पोर्ट्स, आर्ट व म्यूजिक सहित अनेक क्षेत्रों में शानदार प्रदर्शन करते हैं। ज्यादातर पेरेंट्स - खासतौर पर कम पढ़े लिखे - यह जान ही नहीं पाते कि उनका बच्चा डाउन सिंड्रोम से ग्रसित है और व उसकी तुलना सामान्य बच्चों से कर उसे उसकी धीमी प्रोग्रेस को लेकर प्रताड़ित करते हैं।
उक्त बात शहर के जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. आर के यादव ने कही। वे सीआईआई यंग इंडियन्स व वी केयर चिल्ड्रन हॉस्पिटल द्वारा आरंभ किये गए जागरूकता अभियान के अवसर पर आज आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति में क्रोमोसोम के कुल 23 जोड़ों में क्रोमोसोम 21 की पूरी या एक्स्ट्रा उपस्थिति इस डिसऑर्डर का कारण बनती है। चपटा चेहरा, छोटी गर्दन व कान, कम मांसपेशियां, आंखों की पुतलियां उपर उठी होना, शरीर छोटा रह जाना व औसत से कम बुद्धि का होना इस डिसऑर्डर के कुछ लक्षण होते हैं। प्रति 800 में से एक बच्चे को इस डिसऑर्डर के होने की संभावना होती है।
सीआईई यंग इंडियन्स के भोपाल चैप्टर के चेयर सौरभ शर्मा ने कहा कि डाउन सिंड्रोम को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां मौजूद हैं। इन्हीं में से कुुछ भ्रांतियां हैं कि इससे पीड़ित बच्चे जल्दी मर जाते हैं या फिर वे भावनाओं को नहीं समझते। पेरेंट्स और समाज की उपेक्षा से ऐसे बच्चे दोहरी मार सहते हैं। सामाजिक व आर्थिक कारणों से अभिभावक ऐसे बच्चों को उनके हाल पर छोड़ देते हैं। समाज से यह स्थिति दूर होनी चाहिए।
सीआईआई यंग इंडियन्स के को-चेयर अपूर्व मालवीय ने कहा कि इस अभियान के तहत डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के अभिभावकों व स्कूली शिक्षकों को तो शिक्षित करने का करेगा साथ ही भविष्य में माता-पिता बनने जा रहे कपल्स को प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली जांच के बारे में भी बताएगा ताकि जन्म के पूर्व ही इस डिसऑर्डर का पता लगाया जा सके। प्रेग्नेंसी के 11वे से 13वे सप्ताह दौरान किये जाने वाले ब्लड टेस्ट व अल्ट्रासाउंड से 90 प्रतिशत तक इसका पता लगाया जा सकता है।
यंग पेरेंट्स को डाउन सिंड्रोम के बारे में एजूकेट करेगा यंग इंडियन्स
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Bhopal 👤By: Admin Views: 2445
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