07 अगस्त 2018। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के जे.के. हॉस्पिटल एवं एल.एन. मेडिकल कॉलेज व रिसर्च सेन्टर में 1 से 7 अगस्त तक इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के सहयोग से ब्रेस्ट फीडिंग वीक का आयोजन किया गया। इस दौरान विभिन्न जागरुकता कार्यक्रमों के माध्यम से ब्रेस्ट फीडिंग यानि स्तनपान के महत्व और इसकी जरूरत के बारे में जानकारी दी गई। पूरे सप्ताह चलने वाली विभिन्न गतिविधियों में जानकारी दी गई कि मां का दूध बच्चे के लिए सबसे बेहतरीन आहार है। यह बच्चे को सम्पूर्ण पोषण उपलब्ध कराता है। यह बच्चे के आहार का सबसे प्राकृतिक तरीका है, क्योंकि इसे प्रकृति ने इसी रूप में बनाया है। कोलोस्ट्रम यानी बच्चे के जन्म के बाद मां का पहला दूध ऐसे ऐंटिबॉडीज और प्रोटीन से भरपूर होता है जो संक्रमण से लड़ने में बेहद महत्वपूर्ण है।
जे.के. हॉस्पिटल की पीडियाट्रिक विभागाध्यक्ष डॉ. रश्मि द्विवेदी ने बताया कि ब्रेस्टफीडिंग से बच्चे को गैस्ट्रोइंटराइटिस, कान के संक्रमण, डायरिया आदि से सुरक्षा मिलती है जो फॉर्म्युला मिल्क से संभव नहीं है। ब्रेस्टफीडिंग के जरिए मां और बच्चे के बीच रिश्ता और बेहतर होता है। जो बच्चे स्तनपान करते हैं उनका मानसिक विकास बेहतर होता है और आगे चलकर ऐसे बच्चों को ऐलर्जी का खतरा कम रहता है। स्तनपान के दौरान तमाम ऐंटीबॉडीज और जर्म्स से लड़ने वाले दूसरे तत्व मां से बच्चे तक पहुंचते हैं और बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
वहीं एल.एन.सी.टी. ग्रुप के चेयरमैन अनुपम चौकसे ने बताया हर साल अगस्त महीने की पहली तारीख से शुरू होकर पूरे एक हफ्ते तक ब्रेस्ट फीडिंग वीक के तौर पर मनाया जाता है। इस खास सप्ताह को मनाने के पीछे महिलाओं को ब्रेस्ट फीडिंग के लिए जागरूक करना है। ब्रेस्टफीडिंग शिशु के साथ-साथ मां की सेहत के लिए भी फायदेमंद होती है. लेकिन 21वीं सदी में ब्रेस्टफीडिंग अपने निचले स्तर पर पहुंच गई है। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, ज्यादातर देशों में शिशु के जन्म के शुरुआती 6 महीनों में स्तनपान कराने की दर 50 फीसदी से भी नीचे है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सहयोग से चलने वाले इस हफ्ते भर के कार्यक्रम में हेल्थ एक्सपर्ट्स ने बताया कि शिशु के पैदा होने से लेकर उसके दूसरे जन्मदिन तक स्तनपान प्रारंभिक पोषण का एक आवश्यक हिस्सा होता है क्योंकि मां का दूध पोषक तत्वों और बायोएक्टिव निर्माण कारकों का एक बहुआयामी मिश्रण है। यह एक नवजात शिशु के जीवन के शुरुआती 6 महीनों में जरूरी होता है।
इसके अलावा हेल्थ एक्सपर्ट्स ने यह भी बताया कि मां का दूध मैक्रोन्यूट्रिएंट्स, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स, बायोएक्टिव घटकों, वृद्धि के कारकों और रोग प्रतिरोधक घटकों का एक मिश्रण होता है। यह मिश्रण एक जैविक द्रव पदार्थ होता है जिससे शारीरिक और मानसिक वृद्धि में मदद मिलती है। साथ ही बाद के समय में शिशु में मेटाबॉलिज्म से जुड़ी बीमारी की आशंका भी खत्म हो जाती है।
जे.के. हॉस्पिटल एंड एल.एन. मेडिकल कॉलेज में ब्रेस्ट फीडिंग वीक का आयोजन
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Bhopal 👤By: Admin Views: 1874
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