
58 साल बाद हो सका संशोधन
15 सितंबर 2018। प्रदेश में अब तेल कंपनियों को पैट्रोल में ईथोनोल मिलाने का लायसेंस राज्य के आबकारी कार्यालय से नहीं लेना होगा। यही नहीं, तेल कंपनियों को ईथोनोल का आयात करने एवं परिवहन का भी कोई शुल्क आबकारी कार्यालय को भुगतान नहीं करना होगा।
इसके लिये राज्य सरकार ने मप्र आबकारी अधिनियम 1915 के तहत 58 साल पहले बने विप्रकृति (डिनेचर्ड) स्प्रिट नियम 1960 में संशोधन कर दिया है। दरअसल ईथोनोल एक प्रकार का अल्कोहल होता है जिसका उपयोग मदिरा निर्माण में होता है। यह बायो फयूल का भी काम करता है। इसे मानव के सेवन से रहित बनाकर पैट्रोल में मिलाने का काम किया जाता है। उक्त नियमों में वर्ष 2004 से प्रावधान किया गया था कि पैट्रोल में ईथोनोल को मिलाने के लिये मेनुफैक्चरिेंग तेल कंपनियों को इसका राज्य के आबकारी कार्यालय से लायसेंस लेना होगा तथा ईथोनोल के आयात एवं परिवहन पर भी निर्धारित आबकारी शुल्क का भुगतान करना होगा।
चूंकि अब देश में पैट्रोल निरन्तर मंहगा होता जा रहा है और बायो फ्यूल का ज्यादा से ज्यादा उपयोग कर पैट्रोल के दामों को कम करना है, इसलिये केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से आग्रह किया था कि वे ईथोनोल को पैट्रोल में मिक्स करने का लायसेंस लेने एवं इसके आयात व परिवहन पर शुल्क लेने की अनिवार्यता समाप्त करे ताकि बायो फ्यूल के उपयोग को प्रोत्साहन मिल सके।
इसी कारण अब राज्य सरकार ने उक्त नियमों में संशोधन कर ईथोनोल को पैट्रोल में मिलाने का लायसेंस लेने और इसके आयात व परिवहन पर आबकारी शुल्क देने की अनिवार्यता का प्रावधान खत्म कर दिया है। इससे राज्य की तेल कंपनियों को अब आगे से ईथोनोल को पैट्रोल में मिलाने का लायसेंस नहीं लेना पड़ेगा और इथोनोल के आयात व परिवहन करने पर आबकारी शुल्क भी नहीं देना होगा। ज्ञातव्य है कि ईथोनोल को पैट्रोल में मिक्स करने हेतु तेल कंपनियों को दस हजार रुपये सालाना एवं 50 हजार रुपये पांच साल हेतु लायसेंस फीहस देना पड़ रही थी और एक से तीन रुपये प्रति लीटर तक ईथोनोल के आयात एवं परिवहन का शुल्क देना पड़ रहा था।
विभागीय अधिकारी ने बताया कि केंद्र सरकार ने बायो फ्यूल के उपयोग को प्रोत्साहन देने के लिये कहा है। इसलिये ईथोनोल जोकि एक प्रकार का अल्कोहल होता है, को पैट्रोल में मिक्स करने का लायसेंस लेने एवं इसके आयात व परिवहन का शुल्क देने का प्रावधान खत्म कर दिया गया है।
- डॉ. नवीन जोशी