3 नवंबर 2018। माना जा रहा है कि टिकटों में शिवराज की दखल के बाद मध्यप्रदेश में संघ की भूमिका भी स्पष्ट हो गई है. संघ का काम अब चुनाव प्रबंधन का होगा.
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में शिवराज सिंह चौहान की नई ब्रांडिंग करते हुए उन्हें देश का सबसे दयावान मुख्यमंत्री बताया था. जिस तरह से शिवराज ने संघ और तमाम एजेंसियों की सर्वे रिर्पोट्स को दरकिनार कर टिकटों के बंटवारे में दया दिखाई है, वो साबित कर रहा है कि वो प्रदेश की राजनीति में संघ ही नहीं, हाईकमान की टीम और उनकी ग्राउंड रिर्पोट्स सब पर भारी हैं. संघ और अन्य सर्वे रिपोर्ट्स इस बार पचास से साठ फीसदी तक टिकटों में बदलाव की सिफारिश कर रही थीं. लेकिन शिवराज ने सबको पूरी तरह नकार दिया.
177 टिकटों में से सिर्फ 33 विधायकों के टिकट बदले गए हैं. जो बता रहा है कि 2018 और 2019 का चुनाव शिवराज सिंह की ब्रांड वैल्यू पर ही लड़ा जाएगा.
शिवराज को फ्री हैंड
भाजपा के उच्च स्तरीय सूत्र बताते हैं कि टिकटों को लेकर जो राजनीतिक कयास लगाए जा रहे थे वो सारे गलत साबित हुए हैं. चौथी बार सरकार बनाने की तैयारी में लगी भाजपा ने उम्मीदवारी के मामले में शिवराज पर ही भरोसा किया है. इसकी एक बड़ी वजह उनकी लोकप्रियता है. तीन बार के मुख्यमंत्री होने के बाद भी एंटी इनकमबेंसी का कोई बड़ा फैक्टर मध्यप्रदेश में नहीं दिखाई दे रहा है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव कैंपेन शुरू करने से पहले कहा था कि इस बार भाजपा बिना चेहरे के मैदान में होगी. लेकिन ज़मीनी फीडबैक के बाद भाजपा को अपना यह नारा भी बदलना पड़ा. भाजपा हाईकमान को यह स्वीकार करना पड़ा कि मध्यप्रदेश में शिवराज का कोई विकल्प पार्टी में नहीं है. इसलिए इस बार भी शिवराजसिंह को फ्री हैंड दिया गया है
मोदी के 4 दिन
भाजपा की चुनाव प्रबंध समिति ने मध्यप्रदेश में प्रचार का जो स्वरूप तय किया है उससे भी यह बात साफ तौर पर दिखाई दे रही है कि भाजपा शिवराज के नाम पर ही चुनाव लड़ेगी. प्रधानमंत्री सिर्फ चार दिन मध्यप्रदेश में देंगे. उनकी सिर्फ 10 सभाएं होंगी. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह 7 दिन देंगे और 29 लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव सभाएं करेंगे. प्रदेश की पूरी 230 विधानसभा सीटों पर शिवराज ही चुनाव प्रचारक होंगे.
चुनाव समिति के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि शिवराज बड़ी संख्या में उम्मीदवारों के बदलाव के पक्ष में नहीं थे. इसका कारण यह है कि ? वो मानते हैं कि इस बार जनता से ज्यादा पार्टी कार्यकर्ताओं के असंतोष से निपटने का मामला बड़ा है. टिकटों में बदलाव करना भारी पड़ सकता था. उससे निपटना टिकट काटने से ज्यादा भारी पड़ जाता. चौंकाने वाली बात है कि शिवराज ने कई ऐसे विधायकों के टिकट नहीं कटने दिए, जो बहुत कम अंतर से जीते थे. अगर सर्वे और जीत के फार्मूले से टिकट तय होते तो धार से नीना वर्मा, दमोह से जयंत मलैया तक का टिकट खतरे में पड़ सकता था. इसी तरह कई सीनियर नेता बाहर हो जाते.
जनाधार वाले नेता नहीं
एक खबर यह भी आ रही है कि संघ के सर्वे में ऐसे नेताओं को टिकट देने की सिफारिश गई थी, जिनका जनाधार तो नहीं था लेकिन वे संघ की गुडबुक के नाम थे. ऐसे प्रत्याशियों को लेकर शिवराज सहमत नहीं थे. संघ पृष्ठभूमि के भाजपा के कुछ पूर्व पदाधिकारियों के नाम भी उसमे थे. खबरें आ रही हैं कि बची हुई पचास सीटों पर अब संघ समर्थक नेताओं की उम्मीदवारी तय करने का दबाव बन रहा है.
संघ का काम चुनाव प्रबंधन
माना जा रहा है कि टिकटों में शिवराज की दखल के बाद मध्यप्रदेश में संघ की भूमिका भी स्पष्ट हो गई है. संघ का काम अब चुनाव प्रबंधन का होगा. भाजपा प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुध्दे ने जिस तरह माइक्रो मैनेजमेंट का बड़ा ब्लू प्रिंट प्रदेश के हर जिला संगठन को दिया है उसे बूथ स्तर पर ले जाने का काम भाजपा और संघ का होगा.
सिक्का सिर्फ शिवराज का चला, संघ और सर्वे सब धरे रह गए
Place:
Bhopal 👤By: PDD Views: 3541
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