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किताबें फूल की तरह होती हैं जो अपनी प्रशंसा चाहती हैं भोपाल साहित्य एवं कला महोत्सव किताबो की प्रशंसा करता है- संजीव चोपड़ा

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Place: Bhopal                                                👤By: DD                                                                Views: 1729


? मैं अपने 3 साल के बेटे के लिए रोज रात कहानियां पढ़ता हूं- जयवर्धन सिंह
? बीएलएफ के बाद भी लिखते पढ़ते रहना कभी अलविदा ना कहना -राघव चंद्रा
? भारत भवन में तीन दिवसीय भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल का समापन

भारत भवन में आयोजित तीन दिवसीय भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे और आखिरी दिन विभिन्न विषयों पर अलग-अलग लेखकों के 20 समानांतर सत्र आयोजित किए गए। अंतरंग, वागर्थ और अभिरंग सभागार में आयोजित में इन सत्रों में देश भर से आए लेखकों ने अपनी बात रखी। वहीं महोत्सव के समापन सत्र पर मुख्य अतिथि रहे जयवर्धन सिंह ने कहा कि यह मेरे लिए गर्व की बात है बीएलएफ के समापन सत्र पर मुख्य अतिथि के तौर पर मुझे आमंत्रित किया गया। बीएलएफ मध्य प्रदेश की एक ऐसी ऊर्जा है जो विविधताओं को एक प्रखर मंच प्रदान करती है। हम इसके निरंतर प्रगति के लिए प्रयासरत रहेंगे। मध्य प्रदेश की धरती साहित्य एवं कला की जननी है और भोपाल को संस्कृति की राजधानी की संज्ञा भी दी गई है। बीएलएफ के माध्यम से हम साहित्य और कला को पोषित करते हैं और उनकी सेवा करते है। समापन समारोह में आए बच्चों से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि किताबें पढ़ना बहुत जरूरी है। मैं अपने 3 साल के बेटे के लिए रोज रात में सिंड्रेला और अन्य की कहानियां पढ़ता हूं। बीएलएफ के अगले संस्करण के लिए शुभकामनाएं दी।
समापन सत्र के दौरान किताबों का विमोचन जयवर्धन सिंह के द्वारा किया गया। जिसमें भोपालनामा वर्तुल सिंह, व्हेन आई मेट माय सेल्फ श्रेयांश दीक्षित, प्री इंडिपेंडेंस इंडिया रीमा आहूजा, मर्डर एट मूनलाइट कैफे इशावस्यम दास, 3एस एन आवर हेल्थ रघुराज राजेंद्र, पोस्ट मिलेनियल टेल्स भव्या एंड नव्या सिंह का विमोचन किया गया। 1500 शब्द सीमा के अंतर्गत कहानी प्रतियोगिता के विजेताओं को भी 5000 की प्रोत्साहन राशि मोमेंटो, गिफ्ट हैंपर्स के द्वारा सम्मानित किया गया।
बीएलएफ के बाद भी पढ़ते लिखते रहना कभी अलविदा ना कहना
समापन सत्र में भोपाल साहित्य एवं कला महोत्सव के निदेशक राघव चंद्रा ने कहा बीएलएफ के बाद भी पढ़ते लिखते रहना कभी अलविदा ना कहना। इसके साथ ही उन्होंने 56 सत्रों में आमंत्रित वक्ताओं, लेखकों, कवियों को और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहायक रहे सभी लोगों के साथ साथ दर्शक श्रोताओं को आभार ज्ञापित किया। समापन सत्र में मंच पर राघव चंद्रा, मंत्री जयवर्धन सिंह, अभिलाष खांडेकर, संजीव चोपड़ा और ब्रिगेडियर अग्रवाल मुख्य रूप से मौजूद रहे।

पुरुषवादी बॉक्स ऑफिस की पहली महिला सुपरस्टार थी श्रीदेवी
'श्रीदेवी एंड एटर्नल इंस्पिरेशन' किताब पर चर्चा करते हुए लेखक सत्यार्थ नायक ने कहा कि श्रीदेवी पुरुषवादी बॉक्स ऑफिस की पहली महिला सुपरस्टार थी। जिन्होंने साउथ इंडस्ट्री से लेकर बॉलीवुड तक बहुचर्चित अभिनेता कमल हासन, रजनीकांत अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना आदि को पछाड़ दिया था। उन्होंने बताया की 80 के दशक में अभिनेत्रियों को केवल मनोरंजन साधन के रूप में देखा जाता था। उस समय 1983 में हिम्मतवाला से श्रीदेवी बॉलीवुड में कदम रखती हैं और एक प्रतिष्ठित स्क्रीन की देवी की संज्ञा हासिल कर भारतीय सिनेमा में अभिनेत्रियों की परिभाषा ही बदल देती हैं। श्रीदेवी कॉमेडी, डांस, अभिनय हर क्षेत्र में निपुण थी। श्रीदेवी अपने नाम एवं अहमियत को लेकर बहुत सजग रहती थी। जिसके लिए एक समय पर अमिताभ बच्चन जैसे बड़े अभिनेता के साथ काम करने को मना कर दिया था। उन्होंने बॉलीवुड के पृतसत्तात्मक एवं पुरुषवादी विचारधारा को तोड़कर अभिनेत्रियों की अहमियत और उनके वर्चस्व का मानक तय किया था। सत्यार्थ नायक ने बताया की श्रीदेवी के जीवन में दोस्तों की बहुत कमी थी इसलिए वह कैमरे को अपना सबसे अच्छा दोस्त मानती थी। फलस्वरूप स्वरुप उनकी सारी ऊर्जा कैमरे के सामने उनके अभिनय के रूप में परिलक्षित होती थी। श्रीदेवी अपनी निजी जिंदगी में बहुत शर्मीली थी। लेकिन जैसे ही कैमरे का स्विच ऑन होता था, वह बोल्ड और तेज रूप में दिखाई देती थी। इसलिए आलोचकों ने उन्हें 'स्विच ऑन स्विच ऑफ' अभिनेत्री का की संज्ञा भी दी है। इंग्लिश विंगलिश फिल्म के द्वारा जबरदस्त कम बैक का कारण बताते हुए सत्यार्थ ने कहा कि श्रीदेवी विश्व सिनेमा को बहुत पसंद करती थी। इसीलिए वह बहुत ज्यादा अपडेट रहती थी जिसके कारण उन्हें पता था कि अब अभिनय और तकनीक दोनों परिवर्तित हो रहे हैं। अपनी किताब के बारे में बताते हुए सत्यार्थ कहते हैं कि यह उस बाल कलाकार की कहानी है जो 50 साल में 5 भाषाओं की 300 फिल्मों में अभिनय कर एक दिग्गज और अनंत कलाकार बन जाती है। हमें ऐसे व्यक्तित्व के ऊपर काम करते हुए बहुत सजग और समृद्ध होने की आवश्यकता है।

जैनिस पैरेट सीमा रायजादा
जैनिस पैरेट ने अपनी किताब "द नाइन चेम्बरेड हार्ट" पर चर्चा करते हुए कहा कि ये पुस्तक प्रेम पर आधारित है जिसमे कुछ ऐसे पुरुष है जो महिलाओं का नाम लिए बिना प्रेम व्यक्त कर रहे है साथ ही इसमें उन पुरुषों के बारे में बताया गया है कि वे प्रेम के प्रति क्या सोचते है कि उनकी सोच उनके संबंध उनका व्यवहार महिला के प्रति दिखाया है वही सत्र की अध्यक्षता कर रही सीमा रायजादा ने पूछा कि आपके लिए प्रेम क्या है जवाब में लेखिका ने कहा कि स्वयं से प्रेम ही सबसे बड़ा प्रेम है वही मंच पर बैठे राघव चंद्रा ने पूछा कि आप अपनी जॉब के साथ अपनी लेखकी को बरकरार रख सकते हो तो लेखिका ने कहा ही अगर आप जॉब कर रहे हो तो आप अपनी लेखिकी या अपने किसी भी कला को मरने नही देते और आप सही तौर पे अपने कला को जस्टिफाई कर सकते हो

परिवर्तन के सूत्रधार होते हैं आईएएस ऑफिसर - दीपक गुप्ता
'द स्टील फ्रेम हिस्ट्री ऑफ एन आई ए एस ऑफिसर' किताब पर चर्चा करते हुए आईएएस अधिकारियों के भविष्य को लेकर बातचीत हुई इस दौरान संघ लोक सेवा के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ आईएएस अधिकारी दीपक गुप्ता ने कहा कि भारत मैं होने वाले परिवर्तनों का सूत्रधार एक आईएएस अधिकारी ही होता है। सरदार पटेल के पंक्तियों को याद करते हुए दीपक गुप्ता ने कहा कि अगर आप किसी देश में अच्छी व्यवस्था चाहते हैं तो वहां का शासन प्रशासन भी अच्छा होना चाहिए। दीपक गुप्ता का मानना है कि एक आईएएस अधिकारी विविधताओं से भरा होता है यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां विभिन्न क्षेत्रों के शिक्षित अभ्यर्थी अपनी सेवाएं देते हैं। एक आईएएस अधिकारी में एक कुशल प्रशासक के साथ-साथ एक निपुण प्रबंधक का भी गुण होना आवश्यक है, क्योंकि अच्छे प्रबंधन के अभाव में प्रशासन सुचारू रूप से कार्य नहीं कर सकता। इसके साथ ही उन्होंने माना की एक कुशल प्रशासक तभी कार्य कर सकता है जब वह अपनी निजी जिंदगी में एक व्यक्ति एक बेहतर इंसान हो। इस चर्चा में संजीव चोपड़ा ने मंच साझा किया

आज के राजनेता साहित्य नहीं पढ़ते- राजेश जोशी
साहित्य और राजनीति पर चर्चा के लिए आमंत्रित वरिष्ठ लेखक राजेश जोशी ने कहा कि आज के राजनेता साहित्य पढ़ते ही नहीं है और आज के इतने अनपढ़ राजनेता हिंदुस्तान के इतिहास में नहीं हुए हैं। राजनीति और साहित्य के संबंधों को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि, साहित्य राजनीति का दिशादर्शन का साधन है और संस्कृत साहित्य ने भारतीय राजनीति को एक प्रखर दिशा प्रदान की है। शाकुंतलम् का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कालिदास ने शिव दर्शन और दुष्यंत के अनछुए पहलुओं को व्यक्त किया। राजेश जोशी का मानना है कि साहित्य व्यवहारिक राजनीति और मूल राजनीति दोनों को ही मुख्य रूप से संचालित करता है। इसके संदर्भ में उन्होंने कहा कि गांधी के हरिजन उत्थान, छुआछूत के विरोध आदि आंदोलनों का प्रभाव मैथिलीशरण गुप्त की कविता 'एक फूल की चाह' में देखने को मिलती है। साहित्य और राजनीति के वर्तमान संबंधों पर बताते हुए राजेश जोशी यह कहते हैं कि आज के राजनेताओं का जुड़ाव साहित्य से नाममात्र का है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण दौर है जिसमें पुरस्कार वापसी जैसी घटनाओं देखने को मिली। उनका मानना है कि भारतीय राजनीति का दक्षिण पंथ बौद्धिक रूप से बहुत विपन्न है। जो बौद्धिकता, साहित्य, संस्कृति को गाली देता है। इस बातचीत में राजेंद्र शर्मा और डॉ. अविचल गौतम ने मंच साझा किया।

मादा की बढ़ती मृत्यु दर बाघों के लिए खतरा- रघु चुंडावत
अपनी किताब 'द राइज एंड फॉल ऑफ एमरल्ड टाइगर' पर चर्चा करते हुए रघु चुंडावत ने कहा कि वर्तमान में टाइगर रिजर्व के अंदर मादाओं की बढ़ती मृत्यु दर बाघ संरक्षण का सबसे बड़ा खतरा है। आज आज हम विश्व को यह कह रहे हैं कि हमने बाघों की संख्या दोगुनी कर दी है। हम संख्याओं पर उत्सव मना रहे हैं लेकिन सच्चाई तो यह है कि, व्यवस्थित प्रयासों के अभाव में बाघ पर खतरा मंडरा रहा है। आज वन विभाग बाघों के संरक्षण पर ध्यान ना देकर केवल उन पर बातें करना पसंद करता है। रघु चुंदावत ने ये किताब पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में 10 साल के शोध कार्य के बाद लिखी है। बाघ के वैश्विक परिदृश्य पर बात करते हुए उन्होंने आगे बताया की यह सच्चाई है कि पूरे विश्व में भारत एक ऐसा देश है जो बाघ संरक्षण के लिए प्रयत्नशील है। इस बातचीत के दौरान देश दीप सक्सेना और अभिलाष खांडेकर ने मंच साझा किया।

मधुबनी पेंटिंग्स में खुद को प्रदर्शित करता है कलाकार - विनीता सिन्हा
मधुबनी के लोक कला पर चर्चा करते हुए विनीता सिन्हा ने कहा कि मधुबनी की चित्रकला पूरे विश्व में चर्चित है। क्योंकि कलाकार अपनी कृतियों में खुद को प्रदर्शित करता है। इन पेंटिंग्स में लोकनृत्य, गीत, कथा वाचन और लोक को प्रथाओं का वर्णन किया जाता है। मधुबनी चित्रकला के प्रारंभ के बारे में बताते हुए विनीता सिन्हा ने कहा कि प्रारंभ में यह कलाकृतियां जमीन पर सिंदूर के माध्यम से बनाई जाती थी। जिसमें कलाकार तांत्रिक चिन्हों को बनाया करते थे। धीरे धीरे यह कलाकृतियां दीवारों पर पहुंची और उसके बाद कागजों पर भी अंकित होने लगी। मधुबनी की पेंटिंग्स के वैश्विक पहुंच पर बात करते हुए विनीता सिन्हा ने बताया कि यह पेंटिंग्स अमेरिका में बेची जाती हैं जिसके जरिए मधुबनी की कला और कलाकार का प्रचार प्रसार पूरे विश्व में होता है। इस चर्चा के दौरान पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से चुनिंदा चित्रकला ओं का भी प्रदर्शन किया गया।
विवेकानंद एक रॉकस्टार थे और रहेंगे
"द मॉर्डन मोंक" में बोला की जैसे ही देश का बटवारा हुआ वैसे ही हमने हमारे हीरो भी बांट लिए हैं, जैसे रविन्द्र नाथ टैगोर हैं तो वो बंगाली हो गए विवेकानंद है तो वो हिन्दू हो गए। विवेकानंद ने कहा कि सब के अंदर भगवान है लेकिन समाज का हर आदमी भगवान ढूंढने में निकल चुका है लेकिन कर्म नही कर रहा है मेरा मानना है कि इंसान को कर्म पर ध्यान देना चाहिए ईश्वर एक न एक दिन मिल ही जाएगा। स्वामी विवेकानंद भी गांधीजी की तरह अपनी गलतियां भी मानते थे और उनको सुधार कर आगे बढ़ते रहे। वे अपना जीवन को खूब ऊमंग से मस्ती से जीते उनका जीवन किसी संत महात्मा की तरह नही था वो एक साधारण आदमी की तरह ही जीवन व्यापन करते और वो भोजन के बहुत शौकीन थे। वे साथ मे आने एक डायरी रखते और जहां जाते वहां के प्रसिद्ध भोजन के बारे में लिखते थे। हिंडोल सेनगुप्ता का मानना है कि विवेकानंद एक रॉकस्टार थे और रहेंगे।

जाति, रोमांस, सिविल सर्विसेज की कहानी है कालीज डॉटर
जाति और वर्ग आज के दौर में भी किसी की संभावनाओं और भविष्य को कैसे प्रभावित कर सकते हैं, इस पर प्रकाश डालते हुए राघव चंद्रा ने अपनी किताब कालीज़ डॉटर के बारे में बात की जो एक दलित महिला की कहानी है। पुस्तक के बारे में, चंद्रा ने बताया कि लोग हमेशा दलितों पर हिंसा और शारीरिक दर्द का सामना करने के बारे में बात करते हैं लेकिन किसी ने भी उनके जीवन के शहरी चेहरे का वर्णन नहीं किया है जहां वे मानसिक पीड़ा के साथ बढ़ रहे हैं और कालीज़ डॉटर उस तरफ दिखाने का प्रयास है। पुस्तक लिखने के बारे में पूछने पर चंद्रा ने कहा कि एक दलित महिला की परेशानियों को समझना और उसके बारे में लिखना मुश्किल रहा, क्योंकि चरित्र को उसके मानस के साथ न्यायोचित बनाने की जरूरत थी। चर्चा के साथ ही चंद्रा ने अपनी किताब के कुछ हिस्सों को भी पढ़ा।

जलवायु परिवर्तन आज का मुद्दा है, मृदुला रमेश
"द क्लाइमेट सॉल्यूशन: इंडियाज़ क्लाइमेट-चेंज क्राइसिस" एंड व्हाट वी कैन डो अबाउट इट", के लेखिका मृदुला रमेश ने भारत में वर्तमान जलवायु परिवर्तनों के बारे में बात की। वह दीपक तिवारी और महेश रंगराजन के साथ बातचीत में थी। रमेश ने जलवायु परिवर्तन के बारे में कुछ आवश्यक मुद्दों को रखा जहां उन्होंने कहा कि यह भविष्य की परेशानी नहीं है इसलिए हमें आज समाधान के बारे में सोचने की जरूरत है। रमेश ने चेन्नई बाढ़ से अपनी पुस्तक शुरू की और उल्लेख किया कि प्रकृति को बचाने के लिए स्वदेशी विचार अधिक सहायक हो सकते हैं क्योंकि वे प्रकृति को अच्छी तरह समझते हुए उपाय में लाये गए हैं। जलवायु परिवर्तन पर राजनीतिक हित के बारे में, रमेश ने कहा कि भारत का प्रमुख हिस्सा इस बात की परवाह नहीं करता है कि अगले सप्ताह क्या होगा, इसीलिए राजनेता भी इस विषय के आधार पर मतदाताओं से नहीं पूछते हैं, हालांकि यह एक सवाल अगले दशक में परिभाषित करने के लिए हमारे सामने

न्यूडिटी इस ओरिजिनालिटी, मिहिर श्रीवास्तव"
जब आप न्यूड होते हैं, तो आप किसी भी पहचान के साथ मूल होते हैं ऐसा कहना है लेखक मिहिर श्रीवास्तव का, जो बैरकेड प्रलव के लेखक है और न्यूड स्केचेस बनाने में माहिर हैं| वह दीपक तिवारी के साथ सत्र में बातचीत कर रहे थे और इस असामान्य कला के बारे में अपने विचार साझा कर रहे थे। श्रीवास्तव ने कहा कि मुझे न्यूड स्केच बनाना पसंद है क्योंकि जब लोग न्यूड होते हैं तो वे मूल होते हैं और लिंग और उनकी पहचान को अनदेखा करके अपने दिल से बोलते हैं&#

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