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350वाँ हिंदवी स्वराज्य स्थापना समारोह समिति का राष्ट्रीय कवि सम्मेलन सम्पन्न

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 975

16 अगस्त 2023। नई सदी का भारत है 62 वाला दौर नहीं : डॉ. हरिओम पंवार

हिंदवी स्वराज्य का केंद्रीय भाव आज भी प्रासंगिक : श्री हेमंत मुक्तिबोध

शिवाजी महाराज का जीवन ऐसा है कि हम उनकी जयंती और पुण्यतिथि की अपेक्षा उनके राज्याभिषेक दिवस को अधिक महत्व के साथ मनाते हैं। शिवाजी महाराज ने जिस हिंदी स्वराज्य की स्थापना की, वह 350 वर्ष बाद भी प्रासंगिक है। उन्होंने हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के साथ सोए हुए भारत में आत्मविश्वास को जगाया, उसे उसके 'स्व' से परिचित कराया। हिंदवी स्वराज्य की सभी व्यवस्थाएं भारत के 'स्व' पर आधारित थीं। यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य क्षेत्र के सह कार्यवाह हेमंत मुक्तिबोध ने हिंदवी स्वराज्य के 350वें स्थापना वर्ष के प्रसंग पर आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में व्यक्त किए। इस अवसर पर संस्कृति मंत्री श्रीमती ऊषा ठाकुर ने भी हिंदवी स्वराज्य की संकल्पना पर अपने विचार व्यक्त किए।

'हिंदवी स्वराज्य स्थापना समारोह समिति, भोपाल की ओर से राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता ब्रिगेडियर आर. विनायक ने और अध्यक्षता राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश मित्तल ने की।

इस अवसर पर पुणे से आए युवा कवि वैभव गुप्ता ने छत्रपति शिवाजी महाराज पर प्रेरणादाई कविता सुनाई? "जिनके नाम में शिव हो, उनको रोकेगा कौन भला। काल स्वयं भय खाता था, मावल के शेरों से। अटक से लेकर कटक तक फिर भगवे का विस्तार हुआ। कई सदियों में रत्न शिवराजे आते हैं"। वहीं, ओरछा से आए युवा कवि सुमित ओरछा ने राम पर कविता सुनाई। उन्होंने भगवान हनुमान और चन्द्रशेखर आजाद की तुलना करते हुए राष्ट्रीयता के स्वर से क्रांति का स्मरण कराया। "भगवान राम स्वयं हैं रूप धर्म का" इस भाव के साथ सुमित ओरछा ने राष्ट्र व राम की एकात्मता से ओतप्रोत काव्यपाठ किया। हरियाणा से आए कवि प्रो. अशोक बत्रा ने जहां पहले हास्य से श्रोताओं को गुदगुदाया। उसके बाद उन्होंने हास्य के संग देशभक्ति के भाव भी जगाए।

काश्मीर से सुदूर कन्याकुमारी तक, भारत का कण- कण ईश्वर वरदान है : डॉ. कीर्ति काले

दिल्ली से आईं डॉ. कीर्ति काले ने राष्ट्रभक्ति, ओज एवं राष्ट्रीयता के भावों को उकेरने वाली एक से बढ़कर एक कविताएं सुनाई। उनके काव्यपाठ के साथ पूरा सभागार एक स्वर में गाने लगा। नौजवानों को आह्वान करते हुए कीर्ति काले ने कहा ?
"भारत के नौजवान भारती पुकारती है
भेदभाव छोड़कर साथ- साथ आइए
दांव पर लगी है फिर भारती की लाज आज
सिंहनाद कर फिर से देश को जगाइए ।।"

वहीं पाकिस्तान को चेतावनी देने वाली कवियित्री की इन पंक्तियों को सुनते ही पूरा वातावरण एक सुर में उनके साथ दोनों हाथ उठाकर गाने लगा?
"अब के युद्ध हुआ तो ताशकंद न दोहराएंगे
पूरे पाकिस्तान में अब तीन रंग फहराएंगे
अब की आर पार होगा, न कोई भी माफी होगी
सिंह गर्जना ही चूहों के मरने के लिए काफी होगी"।

नई सदी का भारत है 62 वाला दौर नहीं है : डॉ. हरिओम पंवार
मेरठ से पधारे ओज के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. हरिओम पंवार, जिन्होंने अपने जीवन का एक पूरा समय ही राष्ट्रीयता के लिए खपा दिया। उन्होंने जब मंच पर काव्यपाठ के लिए माईक थामा तो पूरा सभागार फिर से राष्ट्रभक्ति में रंग गया। हरिओम पंवार ने तालिबान संकट को मानवता का संकट करार देते हुए एक से बढ़कर एक कविताएं पढ़ीं। हरिओम पंवार ने जब अपनी कविता की इन पंक्तियों को पढ़ा तो सारा सभागार करतल ध्वनियों से गूंज उठा

"नई सदी का भारत है 62 वाला दौर नहीं है
हम भी दुनिया के दादा हैं, दिल्ली हैं - लाहौर नहीं
दिल्ली के सिंहासन पर इक शेर बिठा रक्खा है
पाकिस्तान के कब्जे वाला काश्मीर वापस आने वाला है"।

आखिर में हरिओम पंवार ने सैनिकों के सम्मान में जब ये पंक्तियां पढ़ीं तो पूरा सभागार शांत चित्त होकर बलिदान की भावभूमि के साथ जुड़ गया?

"मैं केशव का पाञ्चजन्य भी गहन मौन में खोया हूँ
उन बेटों की आज कहानी लिखते-लिखते रोया हूँ
जिस माथे की कुमकुम बिन्दी वापस लौट नहीं पाई
चुटकी, झुमके, पायल ले गई कुर्बानी की अमराई।






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