नौकरी में इस्तेमाल होने वाला जाति प्रमाणपत्र निजी दस्तावेज नहीं, छिपाना गलत: सूचना आयुक्त

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 1392

19 फरवरी 2024। मध्य प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा है कि जिस जाति प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी और प्रमोशन मिलता है, उसे व्यक्तिगत या निजी दस्तावेज बताकर छिपाना अवैध है। उन्होंने कहा कि यह जानकारी सार्वजनिक है और इसे RTI के तहत मांगा जा सकता है।

यह टिप्पणी सहकारिता विभाग के एक मामले में आई है, जिसमें एक महिला कर्मचारी ने अपनी सहयोगी की जानकारी RTI में मांगी थी। सहयोगी ने जानकारी देने का विरोध करते हुए कहा कि यह निजी है और जाति प्रमाणपत्र भी निजी दस्तावेज है।

इस पर सूचना आयुक्त ने कहा कि जाति प्रमाणपत्र निजी दस्तावेज नहीं है, क्योंकि यह नौकरी और प्रमोशन के लिए इस्तेमाल होता है। यह जानकारी विभाग में सभी के संज्ञान में होती है, इसलिए इसे व्यक्तिगत नहीं माना जा सकता।

उन्होंने कहा कि फर्जी जाति प्रमाणपत्र के रैकेट प्रदेश में उजागर होते रहे हैं, ऐसे में RTI के तहत प्रमाणपत्रों देने से इनकी प्रमाणिकता की पारदर्शी व्यवस्था सुनिश्चित होगी। साथ ही भर्ती प्रक्रिया में जवाबदेही भी सुनिश्चित होगी।

सूचना आयुक्त ने सहकारिता आयुक्त को जबलपुर की आरटीआई आवेदिका को क्षतिपूर्ति राशि अदा करने के आदेश भी जारी किए हैं।

सूचना आयुक्त का निर्णय:
सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने जबलपुर हाईकोर्ट के फैसले को इस मामले पर लागू नहीं होने का आधार बताते हुए महिला की दलील को खारिज कर दिया।
उन्होंने कहा कि शासकीय नौकरी में नियुक्ति के समय लगाए गए जाति प्रमाणपत्र सूचना के अधिकार अधिनियम (RTI Act) की धारा 2 के तहत सार्वजनिक दस्तावेज (public document) हैं।
उन्होंने कहा कि फर्जी जाति प्रमाणपत्रों के रैकेट को उजागर करने में RTI महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

मुख्य बातें:
नौकरी में इस्तेमाल होने वाला जाति प्रमाणपत्र निजी दस्तावेज नहीं है।
इसे RTI के तहत मांगा जा सकता है।
यह जानकारी सार्वजनिक है और इसे छिपाना अवैध है।
फर्जी जाति प्रमाणपत्रों के रैकेट को रोकने में RTI महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।



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