29 जुलाई 2017। मप्र उच्च न्यायालय ने सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत मध्यस्थता के लिये न्यायालय के बाहर विवाद का समाधान करने के संबंध में सिविल प्रोसीजर मेडिएशन रुल्स 2006 को समाप्त कर उसके स्थान पर नवीन मप्र मध्यस्थता नियम 2017 का प्रारुप जारी किया है। आगामी माह 6 अगस्त के बाद इन नवीन नियमों को प्रभावशील कर दिया जायेगा।
नये नियमों के अनुसार न्यायालय इन मध्यस्थों की नियुक्ति करेगा तथा ये मध्यस्थ सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज, रिटायर्ड जिला एवं सत्र न्यायाधीश या समतुल्य हैसियत के रिटायर्ड जज, उच्चतर न्यायिक सेवा के न्यायिक अधिकारी, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट या जिला न्यायालय या समतुल्य हैसियत के स्तर पर कम से कम दस साल तक स्थायी विधि व्यवसाय करने वाला व्यक्ति, कम से कम पन्द्रह वर्षों तक स्थायी रुप से कार्य करने वाले विशेषज्ञ अथवा अन्य व्यवसायी या सेवानिवृत्त वरिष्ठ नौकरशाह या सेवानिवृत्त वरिष्ठ कार्यपालक हो सकेगा।
मध्यस्थों को मिलेगा यह मानदेय :
नवीन नियमों में नियुक्त मध्यस्थों का मानदेय भी निर्धारित किया गया है। कैटेगरी एक के अंतर्गत वैवाहिक मामले जिनमें इससे आपराधिक मामले भी शामिल रहेंगे, अभिरक्षा, संरक्षकत्व, प्रोबेट, विभाजन और कब्जे के संबंध में मध्यस्थता के माध्यम से समझौता होने पर 3 हजार रुपये प्रति प्रकरण तथा दो या अधिक संबध्द मामलों में अधिकतम 4 हजार रुपये मानदेय दिया जायेगा। कैटेगरी दो के अंतर्गत समस्त अन्य मामलों में 2 हजार रुपये प्रति प्रकरण तथा दो या अधिक संबध्द मामलों में अधिकतम 3 हजार रुपये मानदेय दिया जायेगा। कैटेगरी तीन के अंतर्गत संबध्द प्रकरण में 500 रुपये प्रति प्रकरण तथा संबध्द प्रकरणों की संख्या ध्यान में रखे बगैर अधिकतम एक हजार रुपये मानदेय दिया जायेगा। कैटेगरी चार के अंतर्गत मध्यस्थता के दौरान समझौता नहीं होने पर एक हजार रुपये प्रति प्रकरण मानदेय दिया जायेगा।
मध्यस्थतों के माध्यम से समझौता होने पर न्यायालय इसे डिक्री के रुप में पारित करेगा। मध्यस्थतों द्वारा किये गये समझौते पर कभी भी किसी न्यायालय में वाद दायर नहीं किया जा सकेगा।
- डॉ नवीन जोशी
प्रदेश में न्यायालय के बाहर समझौता करने के नये प्रावधान बने
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