10 सितंबर 2017। राज्य सरकार ने प्रदेश के सरकारी अस्पतालों जिनमें 13 जिला चिकित्सालय, 30 सिविल अस्पताल, 194 सामुदायिक अस्पताल, 127 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा 10 अन्य चिकित्सकीय संस्थायें शामिल हैं, के दस साल पुराने मेडिकल वेस्ट प्रदूषण की बकाया राशि का निपटारा कर दिया है।
ज्ञातव्य है कि इन सरकारी अस्पतालों से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट जिसमें खून, रुई, सिरिंज, पट्टियां आदि प्रदूषणकारी कचरा शामिल है, के प्रदूषण नियंत्रण मंडल की गाईड लाईन एवं नियमों के अनुसार निपटारे हेतु कार्यवाही करना होती है तथा प्रदूषण नियंत्रण मंडल को हर साल निर्धारित शुल्क जिसे अथोराईजेशन फीस कहा जाता है देकर इस निपटारे का प्रमाण-पत्र लेना होता है। भारत सरकार ने वर्ष 1998 में इस निपटारे हेतु गाईड लाईन बनाई थी और वर्ष 2008 में नियम। लेकिन प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत उक्त सरकारी अस्तपालों ने वर्ष 1998 से वर्ष 2008 तक एक भी वर्ष में उक्त गाईड लाईन एवं नियमों का पालन नहीं किया।
यह मामला शासन स्तर के साथ-साथ एनजीटी में भी पहुंचा। वर्ष 2008 के बाद से तो इन सरकारी अस्पतालों द्वारा हर साल आथोराईजेशन फीस प्रदूषण मंडल को जमा कर सर्टिफिकेट लिया जाता रहा परन्तु पूर्व के दस वर्षों की फीस वह जमा नहीं कर पाया था। प्रदूषण मंडल और राज्य शासन के बीच उच्च स्तरीय बैठकों में इस बारे में कई बार चर्चा की गई तथा प्रदूषण मंडल ने इस दस सालों की करीब दो करोड़ रुपये राशि अथाराईजेशन फीस मांगी। लेकिन शासन स्तर पर 98 लाख 69 हजार 100 रुपये की राशि ही देने का फैसला हुआ।
अब स्वास्थ्य विभाग ने उक्त सभी 374 सरकारी अस्पतालों की वर्ष 1998-2008 के लिये अथाराईजेशन फीस प्रदूषण मंडल को देने के लिये स्वीकृत कर दी है तथा इसके आदेश जारी कर दिये हैं। आदेश में कहा गया है कि इस राशि का प्रदूषण मंडल को भुगतान कर आथोराईजेशन सर्टिफिकेट प्राप्त किया जाये।
विभागीय अधिकारियों के अनुसार, सरकारी अस्पतालों को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के बायोमेडिकल वेट मेनेजमेंट एण्ड हैण्डलिंग नियम 2016 के तहत वर्ष 1998-2008 के लिये आथोराईजेशन फीस जमा करना थी। यह राशि मंजूर होने से अब इन्हें मंडल के नियमों के तहत आथोराईजेशन सर्टिफिकेट जारी करने की कार्यवाही की जायेगी।
- डा.नवीन जोशी
सरकारी अस्पतालों के दस साल पुराने मेडिकल वेस्ट प्रदूषण का निपटारा हुआ.....
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