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वर्तमान सरकार का अंतिम बजट: दबाव और चुनोतियाँ

Place: भोपाल                                                👤By: Admin                                                                Views: 2640

कल पेश करेंगे जयंत मलैया, खराब वित्तीय हालात कर्मचारियों को मनाए,या चुनाव पर ध्यान लगाए



27 फरवरी 2018। 28 तारीख को मध्य प्रदेश सरकार मौजूद कार्यकाल का अपना आखिरी बजट पेश करने जा रही है।एक तरफ जहां संविदा ओर दैनिकवेतन भोगी कर्मचारी सरकार पर दूसरे कर्मचारियों की तरह सुविधाएं देने का दाबाव बना रहे है तो सरकारी कर्मचारी एरियर की राशि अबतक न देने और छठवें वेतनमान की विसंगति दूर किये बिना सातवां वेतनमान लागू करने से नाराज है।ऐसे में अगर सरकार कर्मचारियों की सारी मांगे मान लेती हैं तो उस पर 15हजार करोड़ से ज्यादा का भार पड़ेगा।



खराब वित्तीय स्थिति और कर्ज़ के बोझ से लदी भाजपा की मध्य प्रदेश सरकार अपना आखिरी बजट पेश करने जा रही है। चुनाव पास होने के चलते एक तरफ जहां आम जनता बजट के लोकलुभावन होने की उम्मीद कर रही है तो दूसरी तरफ सरकारी कर्मचारियों की भी निगाहें इस वजट पर लगी हुई है।



दरअसल पंचायत सचिवों ओर अध्यापकों के आंदोलन के बाद अब सभी संविदा ओर दैनिक वेतनभोगी सरकार पर दबाव बना रहे है की उन्हें भी नियमित करने के साथ सरकारी कर्मचारियों की तरह सुविधाएं मिले। यही कारण है कि राजधानी अब संविदा ओर दैनिक वेतनभोगियों के लिए अखाड़ा बन गया है,हर रोज सरकार के खिलाफ हजारो आंदोलनकर्मी मोर्चा संभाल दिखाई देते हैं। सरकार भी कई कर्मचारी संगठनों को ये आश्वाशन दे चुकी है कि बजट में उनकी मांगों के लिए प्रावधान किया जाएगा।यही वजह है कि सभी कर्मचारी संगठन 28 तारीख को पेश किए जाने वाले वजट पर निगाह रखें है।



सरकारी कर्मचारियों की माने तो सरकार ने न केवल छटवे वेतनमान में ग्रेड पे नही देने से उनका लाखों का नुकसान किया है तो एरियर का भुगतान न कर कर्मचारियों की दस हजार करोड़ से ज्यादा की राशि दबा ली है।वही कर्मचारियूं की नाराजगी इस बात से भी है कि बिना छटवे वेतनमान की विसंगति दूर किये बिना सातवां वेतनमान लागू कर दिया।दूसरी तरफ दैनिक वेतनभोगी,संविदा कर्मचारी, अध्यापक संवर्ग,आंगनवाड़ी कर्मचारी का वर्ग भी सरकार की तरफ नियमतिकरण करने का मुंह देख रही है।दरअसल 2003 के चुनावों में भाजपा ने दैनिक वेतन भोगियों को दिग्विजाई सरकार द्वारा बर्खास्त करने का मुद्दा जोर शोर से उठाया था और वादा किया था कि भाजपा सरकार में उन्हें नियमित किया जाएगा।उमा भारती ने सरकार बनने के बाद नियमतिकरण के मसले पर कदम भी उठाया,लेकिन उच्च न्यायलय से जीत के बावजूद उमा भारती उन्हें नियमित नही कर पाई।लेकिन इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ सरकार ने दैनिक वेतन भोगियों के पदों का सृजन कर उन्हें नियमित कर दिया।



-शासकीय विभाग में कार्यरत कर्मचारी- 4.37 लाख।



- निगम मंडल में - 54 हजार।



- नगर निगम, नगर पालिका ओर स्थानीय निकायों में- 1.60 लाख।



- पेंशनर 3.29 लाख।



- पेंशनर की विधवाएं - 1.53 लाख।



- पंचायत सचिव- 23 हजार।



- ग्रामीण सहकारी समितियों मैं- 35 हजार।



- अधिकारी संवर्ग- 2.50 लाख।



- संविदा कर्मचारी - 2 लाख ।



वहीं 2013 के घोषणा पत्र में भी भाजपा ने इन्हें नियामित करने का वादा किया लेकिन अब तक वादा पूरा नही हो पाया।यही वजह है कि संविदा सहायक रोजगार सहायक आनगंवादी समेत तीन लाख कर्मचारी नियमतिकरण की आस लगाए बैठे हैं।



वही सबसे ज्यादा नुकसान सरकारी कर्मचारियों को हुआ।दूसरी तरफ भाजपा ने सरकार बनने के बाद कर्मचारियों को 1 जनवरी 2006 से छटवा वेतनमान दिया।यह वेतनमान केंद्र के हिसाब से जस का तस देना था।लेकिन सरकार ने 5000 से 8000 ग्रेड पे वाले 54 हजार कर्मचारियों को 3200 का ग्रेडपे दिया जबकि ये ग्रेड पे 4200 का होना था।5500 से 9000 ग्रेड वे वाले 26 हजार कर्मचारियों को भी इसी तरह 4200 की जगह 3200 का ग्रेड पे दिया गया।इस तरह हर कर्मचारी को हर महीने हजार से 15 सौ का नुकसान हुआ। इसी ग्रेड पे के चलते इन्ही कर्मचारियों को सातवे वेतन मान से भी नुकसान होगा।इसलिये सरकारी कर्मचारी उम्मीद में है कि वजट में शायद उन्हें कुछ लाभ मिल सके।



वहीं बजट से सबसे ज्यादा उम्मीदें प्रदेश के साढ़े चार लाख पेंशनरों को है जिन्हें छटवे ओर सातवे वेतनमान दोनों का ही लाभ सरकार ने अब तक नही दिया है।ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि इस बजट में इसकी घोषणा हो सकती हैं।



लेकिन सरकार अगर इन कर्मचारियों की मांग मानती है तो उस पर तक़रीबन 15 हजार करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ेगा ऐसे में खराब वित्तीय हालात और कर्ज़ में डूबी सरकार जानती है की सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी ने ही दस साल के दिग्विजय शासन की नींव हिलाई थी, सरकार चुनावी वर्ष मैं इनका विरोध नही लेना चाहेगी लेकिन सरकार कैसे इन मांगों के लिए 15 हजार करोड़ का प्रावधान करेगी ये बड़ा संवाल है।



- डॉ. नवीन जोशी

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