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हृदय रोगों के 85 प्रतिशत मामलों में एंजियोप्लास्टी व सर्जरी जरूरी नहीं- डॉ. दीपक चतुर्वेदी

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Place: भोपाल                                                 👤By: prativad correspondent                                                                Views: 19171

दवाईयों व जीवनशैली में परिवर्तन से मिलते हैं ज्यादा अच्छे परिणाम



28 सितम्बर। हाल ही में कुछ प्रतिष्ठित हृदय रोगों के जर्नल्स जैसे 'सर्कुलेशन' व 'जेएसीसी' (जर्नल ऑफ अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी) तथा दो बड़ी ट्रायल - 'फेम2' तथा 'प्रॉस्पेक्ट' - के अनुसार हृदय रोगों के अधिकतर मामलों में ओएमटी (ऑप्टिमल मेडीकल थेरेपी या सटीक चिकित्सा उपाय) व जीवनशैली में परिवर्तन द्वारा एंजियोप्लास्टी व बायपास सर्जरी की तुुलना में ज्यादा अच्छे परिणाम मिलते है।



उक्त बात आज विश्व हृदय दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित एक पत्रकार वार्ता में जाने-माने चिकित्सक एवं अक्षय हार्ट एण्ड मल्टी स्पेश्यिालिटी हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. दीपक चतुर्वेदी ने कही।



उन्होंने कहा कि जहां एक ओर विगत कुछ वर्षों में एंजियोप्लास्टी व बायपास सर्जरी के क्षेत्र में नई तकनीकें जैसे ड्रग एल्यूटिंग स्टेंट, बीटिंग हार्ट सर्जरी, ऑफ पंप सर्जरी व कीहोल सर्जरी आई हैं वहीं दूसरी ओर दवाओं के क्षेत्र में भी नए व क्रांतिकारी अविष्कार हुए हैं। स्टेटिन्स, एंटी प्लेटलेट्स, बीटा ब्लाकर्स, ऐस इनहिबिटर आदि कुछ ऐसी दवाएं हैं जिनसे आश्चर्यजनक परिणाम हासिल हो रहे हैं। इन आधुनिक दवाओं के सेवन व जीवनशैली में बदलाव लाकर 85 प्रतिशत तक मामलों में दिल की अधिकांश बीमारियों की जोखिमपूर्ण सर्जरी से बचा जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि समय के साथ हृदय रोगों को और अधिक गहराई से जानने व समझने की समझ भी बढ़ी है जिससे हृदय रोगों का उपचार और बेहतर हुआ है।



विभिन्न शोधों में यह बात निकलकर आई है कि एंजियोप्लास्टी व एंजियोग्राफी भविष्य में आने वाले हार्ट अटैक से बचाव प्रदान नहीं करती। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि हृदय, जोकि एक बड़ी मांसपेशी होती है चौबीसों घण्टे काम करती रहती है। हजारों वाहिकाएं इस तक रक्त पहुंचाती हैं। एंजियोप्लास्टी में इन हजारों वाहिकाओं में से एक या दो बंद वाहिकाओं को खोल दिया जाता है जिसके बहुत अच्छे परिणाम नहीं मिलते।



उन्होंने बताया कि दिल की बीमारी के मामले में एंजियोप्लास्टी, एंजियोग्राफी या बायपास सर्जरी आदि करवाना सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय बन गया है। यह आम धारणा है कि इन उपायों के बिना हृदय रोगों को ठीक नहीं किया जा सकता।



डॉ. चतुर्वेदी ने आगे बताया कि एंजियोग्राफी में धमनियों में बड़े लेसियन पर ध्यान दिया जाता है जबकि असली दोष छोटे प्लॉक्स का होता है। वहीं एंजियोप्लास्टी में इन प्लॉक्स (धमनियों में जमकर खून के प्रवाह को रोकने अथवा धीमा करने वाला वसा, कैल्शियम, कोलेस्ट्राल आदि) पर काम नहीं किया जाता। अधिकांश मरीज यह मानते हैं कि एंजियोप्लास्टी करा लेने से वे ऑप्टिमल मेडीसिन थेरेपी (ओएमटी) व जीवनशैली में बदलाव करने से वे मुक्त हो जाएंगे जबकि यह एक बड़ी भूल है। महत्वपूर्ण यह है कि खतरनाक प्लॉक्स को शीघ्रातिशीघ्र हटाया जाए। अब तो वीएचआईवीयूएस नामक एक ऐसी नई तकनीक आ चुकी है जिससे फटने की कगार पर पहुंच चुके प्लॉक्स को चिन्हित किया जा सकता है।

दिल की अच्छी सेहत के लिए सुझाव देते हुए डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि जीवन शैली और खानपान में बदलाव तथा कुछ दवाओं के सेवन से दिल के ऑपरेशन से बचा जा सकता है। यथासंभव वसायुक्त भोजन, आयोडाइज्ड नमक, फास्ट फूड, भोजन का स्वाद बढ़ाने वाले कृत्रिम स्वादवर्द्धक पदार्थ, शराब, धूम्रपान तथा सभी तरह के सॉफ्ट डिं?क के सेवन से बचें। ऑर्गेनिक भोजन लें व नियमित व्यायाम करें।



किनके लिये जरूरी है एंजियोप्लास्टी, एंजियोग्राफी या बायपास सर्जरी ?

डॉ. दीपक चतुर्वेदी ने बताया कि एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम, हार्ट अटैक के उपरांत, ट्रिपल वेसेल रोग से पीड़ित डायबेटिक मरीज, दवाओं से भी आराम न मिलने वाले मरीज तथा बूढ़े रोगी जिनका हृदय ठीक तरह से काम न कर पा रहा हो आदि को एंजियोप्लास्टी, एंजियोग्राफी या बायपास सर्जरी की जरूरत होती है।

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