भविष्य में क्रांति ला सकता है! खून की जांच से 15 साल पहले डिमेंशिया का पता लगाना संभव

News from Bhopal, Madhya Pradesh News, Heritage, Culture, Farmers, Community News, Awareness, Charity, Climate change, Welfare, NGO, Startup, Economy, Finance, Business summit, Investments, News photo, Breaking news, Exclusive image, Latest update, Coverage, Event highlight, Politics, Election, Politician, Campaign, Government, prativad news photo, top news photo, प्रतिवाद, समाचार, हिन्दी समाचार, फोटो समाचार, फोटो
Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 2036

12 जून 2024। डिमेंशिया एक भयानक बीमारी है जिसका अभी तक कोई इलाज नहीं है। हालांकि, जल्दी पता चलने से डॉक्टर बीमारी को धीरे-धीरे बढ़ने से रोकने और मरीजों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। नेचर एजिंग जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन में एक आशाजनक खोज सामने आई है: एक खून की जांच जो लक्षण दिखने से 15 साल पहले डिमेंशिया के खतरे का पता लगा सकती है।

यह शोध, वारविक विश्वविद्यालय (यूके) और फुदान विश्वविद्यालय (चीन) के बीच सहयोग से किया गया था। इसमें लगभग 1,500 प्रोटीनों का विश्लेषण किया गया जो खून के नमूनों में पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों ने फिर इस जानकारी का उपयोग करके 15 साल की अवधि में किसी व्यक्ति में डिमेंशिया विकसित होने के खतरे का अनुमान लगाया।

अध्ययन ने डिमेंशिया और तीन विशिष्ट प्लाज्मा प्रोटीनों के बीच पहले से मौजूद संबंधों की पुष्टि की: GFAP, NEFL और GDF15। ये प्रोटीन पहले न्यूरोडीजनरेशन से जुड़े पाए गए हैं, यह वह प्रक्रिया है जिसमें दिमाग की कोशिकाएं खराब हो जाती हैं।

हालांकि, शोध में एक नए प्रोटीन LTBP2 की भी पहचान की गई। विश्लेषण में यह प्रोटीन सबसे महत्वपूर्ण भविष्यवाणियों में से एक के रूप में उभरा। गौरतल澹 बात यह है कि शोधकर्ता न केवल सामान्य रूप से डिमेंशिया का पता लगाने वाले मॉडल विकसित करने में सक्षम थे, बल्कि अल्zheimer रोग (डिमेंशिया का सबसे आम रूप) और वाहिकाओं संबंधी डिमेंशिया (मस्तिष्क में रक्त प्रवाह खराब होने से caused) के बीच भी अंतर कर सके।

इसका क्या मतलब है?
हालांकि खून की जांच अभी विकास के शुरुआती दौर में है, यह अध्ययन डिमेंशिया के निदान के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण उम्मीद जगाता है। जल्दी पता चलने से डॉक्टर जल्द ही हस्तक्षेप कर सकते हैं, संभवतया ऐसे उपचारों के साथ जो रोग की प्रगति को धीमा कर देते हैं या लक्षणों को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करते हैं। इसके अतिरिक्त, जल्दी निदान से नए डिमेंशिया उपचारों के नैदानिक परीक्षणों में भाग लेने के द्वार खुल सकते हैं।

बड़े पैमाने पर आबादी पर इस अध्ययन को और अधिक मान्यता की आवश्यकता है तभी इस टेस्ट को क्लिनिकल इस्तेमाल के लिए विश्वसनीय माना जा सकता है।
डिमेंशिया का अभी कोई इलाज नहीं है, और जल्दी हस्तक्षेप रणनीतियों की प्रभावशीलता अभी भी जांच के दायरे में है।
टेस्ट भविष्यवाणी के लंबे समय (15 साल तक) के कारण नैतिक चिंताएं पैदा होती हैं, जैसे कि सकारात्मक परीक्षा परिणाम से जुड़ी संभावित चिंता।

यह शोध डिमेंशिया के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम है। जैसे-जैसे वैज्ञानिक परीक्षण को परिष्कृत करते हैं और जल्दी हस्तक्षेप रणनीतियों का पता लगाते हैं, उम्मीद है कि डिमेंशिया एक प्रबंधनीय स्थिति बन जाएगी, जिससे लोग लंबा और अधिक सुखद जीवन जी सकेंगे।

Related News

Global News