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डिजिटल इंडिया: सबके लिए टेक्नोलॉजी का लोकतंत्रीकरण

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 1176

37 करोड़ डिजीलॉकर उपयोगकर्ता, हर भारतीय के लिए डिजिटल समाधान

9 दिसंबर 2024। हाल के वर्षों में, भारत ने डिजिटल बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय प्रगति की है, जिससे यह डिजिटल समाधानों को अपनाने में वैश्विक अग्रणी बन गया है। क्लाउड कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), मशीन लर्निंग (एमएल), और डिजिटल गवर्नेंस जैसे क्षेत्रों में नवाचारों ने देश की अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक सेवाओं को पुनर्परिभाषित किया है। डिजिटल परिवर्तन के इस दौर में भारत का बुनियादी ढांचा न केवल विकसित हो रहा है, बल्कि सरकारी सेवाओं की पहुंच और सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए नागरिकों के जीवन में सुधार भी कर रहा है।

डिजिटल बुनियादी ढांचे का विकास

डेटा केंद्र: डिजिटल रीढ़
भारत के डिजिटल बुनियादी ढांचे का केंद्र बिंदु डेटा केंद्रों का विस्तार है। इन केंद्रों ने क्लाउड कंप्यूटिंग, डेटा स्टोरेज, और एआई/एमएल एप्लिकेशन की बढ़ती मांग को पूरा किया है।

राष्ट्रीय डेटा केंद्र (एनडीसी): राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) ने दिल्ली, पुणे, भुवनेश्वर और हैदराबाद में अत्याधुनिक एनडीसी स्थापित किए हैं। ये केंद्र सरकारी सेवाओं के लिए अत्यधिक सुरक्षित और विश्वसनीय क्लाउड सुविधाएं प्रदान करते हैं।

गुवाहाटी केंद्र: असम के गुवाहाटी में 200 रैक का टियर III एनडीसी स्थापित किया गया है, जिसे 400 रैक तक विस्तारित किया जा सकता है।

पूर्वोत्तर केंद्र: सितंबर 2020 में शुरू किया गया एनडीसी-एनईआर, डिजिटल विभाजन को कम करने और सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मदद करता है।

क्लाउड सेवाओं का विस्तार: मेघराज और एनआईसी की भूमिका

भारत में क्लाउड सेवाओं ने डिजिटल परिवर्तन को गति दी है।

एनआईसी का राष्ट्रीय क्लाउड: 2022 में उन्नत की गई राष्ट्रीय क्लाउड सेवा परियोजना, 300 से अधिक सरकारी विभागों को ई-गवर्नेंस सेवाओं में सहायता प्रदान कर रही है।

मेघराज पहल: यह परियोजना केंद्र और राज्य सरकारों को आईसीटी सेवाएं प्रदान करती है, जिससे डिजिटल भुगतान, पहचान सत्यापन, और डेटा साझाकरण जैसी सेवाओं में तेजी आई है।

डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई): एक नया आयाम

भारत का डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) सुलभ और सुरक्षित सार्वजनिक सेवाओं की नींव रखता है।

आधार: दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल पहचान कार्यक्रम, जिसमें अब तक 138.34 करोड़ आधार नंबर जारी किए गए हैं।

यूपीआई: 30 जून 2024 तक 24,100 करोड़ डिजिटल लेनदेन का रिकॉर्ड।

डिजीलॉकर: 37.046 करोड़ उपयोगकर्ताओं द्वारा 776 करोड़ से अधिक डिजिटल दस्तावेज़ प्रबंधित।

दीक्षा: शिक्षा क्षेत्र में डिजिटल परिवर्तन, 556.37 करोड़ शिक्षण सत्र आयोजित।

नागरिक-केंद्रित सेवाएं
सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी):
ग्रामीण भारत में ई-सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए सीएससी पहल ने 5.84 लाख से अधिक केंद्र स्थापित किए हैं।

उमंग एप:
23 भाषाओं में उपलब्ध, यह ऐप 2077 सेवाएं प्रदान करता है और 7.12 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ताओं को जोड़े हुए है।

मेरी पहचान और ई-साइन:
मेरी पहचान सिंगल साइन-ऑन सेवा के तहत 132 करोड़ लेनदेन प्रोसेस हुए हैं। ई-साइन सेवा ने 81.97 करोड़ डिजिटल हस्ताक्षर सक्षम किए।

सरकारी कार्यप्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव

डिजीलॉकर और एंटिटी लॉकर:
डिजिटल दस्तावेज़ प्रबंधन के लिए ये प्लेटफ़ॉर्म महत्वपूर्ण साबित हुए हैं।

गोव ड्राइव और गोव इंट्रानेट:
सरकारी अधिकारियों के लिए सुरक्षित दस्तावेज़ भंडारण और साझाकरण के माध्यम से वर्कफ्लो प्रबंधन को सरल बनाया गया है।

राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क (एनकेएन):
2010 में शुरू किया गया यह नेटवर्क देशभर के ज्ञान संस्थानों और सरकारी उपक्रमों को जोड़ता है। इसके माध्यम से 1,803 संस्थानों और 637 जिला केंद्रों को कनेक्ट किया गया है।

भारत का डिजिटल क्रांति अभियान न केवल सरकारी सेवाओं को सुव्यवस्थित कर रहा है, बल्कि नागरिकों को भी सशक्त बना रहा है। डेटा केंद्रों से लेकर नागरिक-केंद्रित प्लेटफ़ॉर्म तक, भारत की डिजिटल यात्रा ने इसे वैश्विक मंच पर एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित किया है।

हालांकि, इस विकास के साथ डेटा सुरक्षा और साइबर अपराधों का जोखिम भी बढ़ा है। इसलिए, डिजिटल अवसंरचना के साथ-साथ साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता देना आवश्यक है। सरकार को मजबूत डेटा सुरक्षा नीतियां अपनानी चाहिए और नागरिकों को जागरूक करना चाहिए ताकि डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग सुरक्षित और प्रभावी तरीके से किया जा सके। साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में निरंतर अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के अद्यतन से इन खतरों को नियंत्रित किया जा सकता है।




- दीपक शर्मा



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