भोपाल 27 अप्रेल। आधुनिक जीवनशैली और विकास के नाम पर हो रहे बदलावों ने हमें कई गंभीर बीमारियों का शिकार बना दिया है। डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, ओबेसिटी, हार्ट डिसीज और अस्थमा (दमा) कुछ ऐसी ही बीमारियां है, जो दिन ब दिन शहर में तेेजी से अपने पैर पसार रही है। खासतौर पर अस्थमा जैसी असाध्य बीमारी के केस बढ रहे है। 10 वर्ष में अस्थमा के पेशेंट्स में 20 फीसदी कीे वृद्धि देखने को मिली है। भारत में देष में करीब 30 करोड लोग अस्थमा से पीडित है। भोपाल में अस्थमा के डेढ लाख मरीज है। इस मौके पर हमीदिया अस्पताल में अस्थमा मरीजों के लिए विशेष क्लीनिक भी शुरु किया जा रहा है।
वर्ल्ड अस्थमा वीक के ( 27 अप्रेल - 2 मई ) मौके पर 'सेव युअर लंग्स - नो युअर लंग नंबर' थीम पर आयोजित जनजागृति पत्रकारवार्ता को संबोधित करते हुए शहर ने जाने माने छाती रोग विशेषज्ञ व गांधी मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ निशांत श्रीवास्तव व डॉ पवन गुरु ने बताया कि अस्थमा के मरीजों की सख्या में बढोतरी का बडा कारण वाहनों की संख्या में इजाफा और विकास के नाम पर पेडों की कटाई है। धुुल, सर्दी-जुकाम, पराग कण, पालतु जानवरो के बाल एवं वायु प्रदुषक को अस्थमा का प्रमुख कारण माना जाता है। पिछले कुछ समय में भावनात्मक आवेश (इमोशनल) भी अस्थमा अटैक का बडा कारण बनकर सामने आया है। ज्यादा खुशी और ज्यादा गम जैसे भावनात्मक क्षणों के पीछे का तनाव अस्थमा रोगी की बीमारी को और बढा देता है। शहर में वाहनों की लगातार बढती संख्या अस्थमा के पेंशेट्स बढने का बडा कारण है। उचित लोक परिवहन न होन से हर व्यक्ति निजी वाहन रखता है। लाखों गाडियों से निकलने वाला धुआं दमा का बडा कारक है।
भारत में दमा को लेकर जागरुकता का घोर अभाव है और इसे शुरुआती चरण में पता लगाना संभव नहीं हो पाता। इस देश के 30 मिलियन दमा रोगियों में से अधिकांश इससे अनभिज्ञ हैं एवं उनके रोग का ठीक से पता नहीं चल पाया है और उनके उपचार का स्तर भी काफी निम्न है। इसके अतिरिक्त यह भी पाया गया है कि दमा के उपचार की निरंतरता भी बहुत निम्नस्तरीय है और यह बच्चों तथा वयस्कों दोनों में ही कुछ माह के बाद उभर कर आ जाता है तथा इसके नॉन-ऐडहरेंस की दर लगभग 70 प्रतिशत अनुमानित की गई है।
हमीदिया अस्पताल में अस्थमा के लिए क्लीनिक
वर्ल्ड अस्थमा वीक के अवसर पर दिनांक 1 मई को प्रातः 11 बजे से हमीदिया अस्पताल के रुम नंबर 24 में मरीजों को निशुल्क सलाह, उपचार व जांच का केंप लगाया जा रहा है। इसमें उन्हे अस्थमा के कारण और बचाव की जानकारी दी जाएगी एंव उपचार किया जाएगा। यह केंप 6 मई तक चलेगा। इसके साथ ही अस्पताल में डॉ निषांत श्रीवास्तव के निर्देशन में अस्थमा मरीजों के लिए स्पेशल क्लिनिक भी शुरु किया जा रहा है। जिसमें सप्ताह में एक बार मरीजों की जांच की जाएगी।
बच्चों में भी तेजी से बढ रही है अस्थमा की बीमारी
अगर बच्चे को खांसी लगातार बनी हुई है तो उससे अस्थमा का खतरा हो सकता है। बच्चों में लगातार होने वाली खांसी पर ध्यान न देने के कारण उनमे अस्थमा की बीमारी तेजी से बढ रही है। सांस की नली को प्रभावित करता है, जो फेफडें से सांस अंदर और बाहर ले जाने का काम करती है। बच्चों के फेफेडे से जाने वाली सांस की नली सामान्य से ज्यादा से ज्यादा संवेदनशील होती है, इसलिए बच्चों में जुकाम और खॉसी होने की ज्यादा समस्या रहती है। जब अस्थमा से पीडित बच्चा ऐसी चीज के संपर्क में आए जो फेफडों में परेशानी बढाए तो उसे ट्रिगर कहते है। इससे सांस की नली छोटी और आसपास की मॉसपेशियॉ सिकुड जाती है और बलगम बनने लगता है। ऐसी स्थिति में सांस लेने में दिक्कत तो आती ही है, घरघराट की आवाज, खॉसी, सांस लेने में तकलीफ और छाती में जकडन जैसे लक्षण शुरू हो जाते है। बच्चों में भी तेजी से बढ रही अस्थमा की बीमारी की एक वजह यह भी हैं की आज बच्चों को हम धूल और मिट्टी में खेलने से रोकते हैं और थोड़ी धूल और मिट्टी से भी दूर रखते हैं जिस की वजह से उन में धूल मिट्टी से प्रतिरोधक क्षमता कमजोर रह जाती हैं और आगे चल कर अस्थमा रोग के होनें की अधिक संभावना होती हैं।
इनहेलर थैरेपी है बेस्ट
अस्थमा पर पुर्ण नियत्रंण संभव है और इसका मरीज एक सामान्य और सक्रिय जीवन जी सकता है। सर्वाधिक प्रभावी दमा उपचार इनहेलेशन थेरेपी है, क्योंकि यह सीधे रोगी के फेफडों में पहुचकर अपना प्रभाव त्वरित रुप से दिखाना शुरु कर देता है। यह भारत में 4 से 6 रुपये प्रतिदिन की निम्न कीमत में उपलब्ध है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि इस दवा का वर्ष भर का खर्चा अस्पताल में एक रात्रि के भर्ती से भी कम है। उपचार के लिए टैबलैट या सीरप का उपयोग करते है तो असर दिखाने में समय ज्यादा लगता है।
जीन थैरेपी का अभाव
अस्थमा को असाध्य रोगों की श्रेणी में रखा गया है, क्योकि इसे जड से खत्म नहीं किया जा सकता है। हालाकि विदेश मे जीन थैरेपी पर काम हो रहा है ताकि अनुवाशिंक केस में हो रही बढोतरी को रोक सके। देश में इस थैरेपी का अभाव है फिलहाल इस तरह को कोई रिसर्च या काम नहीं हो रहा है।
क्योरेबल अस्थमा केसेस
अस्थमा रोग विशेषज्ञों ने बताया कि ऐसा नहीं है कि अस्थमेटिक केसेस को सॉल्व नहीें किया जा सकता है। कुछ केसेस ऐसे है जिन्हे पुरी तरह ठीक कर सकते है उनमें गैस्ट्रिक अस्थमा( पेट का पानी सांस की नली में आ जाता है), एस्प्रिन सेसिटिव अस्थमा (कोई दवाई खाने से सांस नली में परेशानी) और किन्ही खास चीजों जैसे सीमेंट, फ्रेरेंस आदि के संपर्क में आने से होने वाले अस्थमा को ठीक किया जा सकता है।
पीक फ्लो मीटर से निगरानी
दमा को शुरुआती चरण में पकड लिया जाए तो इसके गंभीर परिणामों से बचा जा सकता है। ऐसे में अस्थमा पेंशेट्स लक्षणों को पहचाने और समय -समय पर चिकित्सक से परामर्श करें। मार्केट में उपलब्ध पीकफ्लो मीटर आपको दमा का पता लगाने और उस पर निगरानी रखने में मददगार साबित हो सकते है।
भोपाल में अस्थमा के डेढ लाख मरीज
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