जीएसटी पर संविधान संशोधन बिल संसद से पारित करा लेने भर से ही चुनौतियां खत्म नहीं होतीं। दरअसल, असली चुनौती तो संसद से बिल पारित होने के बाद शुरू होती है। जानकारों की मानें तो सबसे ज्यादा राजनैतिक खींचतान तो शुरू होना अभी बाकी है। संसद से बिल पारित हो जाने भर से ही जीएसटी लागू नहीं होगा। अभी इसे दो परीक्षाओं से गुजरना है।
पहली है राजनीतिक परीक्षा - संसद से पारित संविधान संशोधन बिल को आधे से ज्यादा राज्यों की विधानसभा से मंजूरी लेनी होगी। हालांकि इसमें कोई बड़ी अड़चन नहीं आने वाली है, क्योंकि मौजूदा स्थिति ये है कि कांग्रेस अकेले सिर्फ 6 राज्यों में शासन कर रही है, जबकि 2 राज्य में वो गठबधंन का हिस्सा है। वहीं भाजपा 8 राज्यों में अकेले और 6 में गठबंधन के साथ शासन में है। बाकी 9 राज्यों में दूसरी पार्टियां सत्ता में हैं। इनमें भी ओडिशा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्य जीएसटी के पक्ष में हैं। यानी 16 राज्यों का समर्थन आसानी से मिल जाएगा और संविधान संशोधन कानून बन जाएगा।संविधान संशोधन बिल के कानून बनने के बाद सरकार को जीएसटी बिल लाना होगा, जिसमें जीएसटी की बारीकियां शामिल होंगी। इस बिल को तैयार करने में भी खास तौर से राज्यों के स्तर पर राजनैतिक सहमति बनाना काफी मुश्किल होगा। क्योंकि कई मुद्दे ऐसे हैं जिस पर राज्यों के साथ मतभेद लंबे समय से बने हुए हैं। मसलन, जीएसटी के दायरे में कितने टर्नओवर तक के कारोबारियों का लाना है। जीएसटी ड्राफ्ट लॉ का प्रस्ताव है कि 9 लाख रुपए से ज्यादा के सालाना टर्नओवर वालों को जीएसटी के दायरे में लाया जाए, लेकिन जानकार इसे खतरनाक मान रहे हैं।
राज्यसभा में पास लेकिन GST का असली इम्तिहान तो शुरू होता है अब!
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