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मध्य प्रदेश बीजेपी में भ्रम का भूचाल: इस्तीफों, विरोधों और सोशल मीडिया पर भड़ास के बाद अब सब ठीक होने का अभिनय

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 2912

13 अक्टूबर 2024। मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में इन दिनों सियासी बवंडर ने ऐसा माहौल बना दिया है कि पार्टी भीतर से उबल रही है। एक के बाद एक नेताओं की नाराजगी, इस्तीफों की झड़ी, और सोशल मीडिया पर आक्रोश की लहर ने पार्टी को हिला कर रख दिया है। तीन पूर्व मंत्रियों सहित छह विधायकों ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए सत्ता में चल रही अव्यवस्था को उजागर कर दिया है। इस गुस्से में कहीं इस्तीफे की धमकियां हैं, कहीं खुला विरोध और कहीं सोशल मीडिया पर भड़कते बयान!

सबसे बड़ा धमाका हुआ गुरुवार को, जब देवरी के विधायक बृज बिहारी पटेरिया ने सांप काटने की घटना में पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज न करने के बाद सीधे अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को थमा दिया! पटेरिया ने पुलिस की अनदेखी पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा, "जब पुलिस मेरी नहीं सुन रही, तो विधायक होने का क्या मतलब?" लेकिन जैसे ही मामला तूल पकड़ा, पटेरिया ने चंद घंटों में इस्तीफा वापस लेकर इसे 'क्षणिक गुस्सा' बता दिया। एक पल का शो, और फिर पर्दा गिरा!

लेकिन असली सियासी ड्रामा यहीं खत्म नहीं हुआ! मऊगंज विधायक प्रदीप पटेल ने एक दिन पहले ही पुलिस पर गंभीर आरोप लगाकर हलचल मचा दी थी। उनका बयान, "पुलिस गुंडों से मेरी हत्या करवा दे," ने भाजपा के गलियारों में तूफान ला दिया। पटेल के इस विस्फोटक बयान के बाद पाटन विधायक अजय विश्नोई ने सोशल मीडिया पर पटेल का खुला समर्थन करते हुए लिखा, "प्रदीप जी, आप सही मुद्दा उठा रहे हैं, लेकिन हम कर ही क्या सकते हैं' सरकार शराब माफियाओं के आगे घुटने टेक चुकी है।"

बगावत की आग शराब माफिया पर ही नहीं रुकी। नरियावली विधायक ने अपने क्षेत्र में अवैध शराब और जुए के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर खुद पुलिस थाने का दौरा कर दिया, जब पुलिस ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

इसके बीच, पूर्व मंत्री संजय पाठक का बयान इस राजनीतिक उथल-पुथल में नया मोड़ ले आया। पाठक ने अपनी जान पर खतरे का दावा किया, और आरोप लगाया कि उनके आधार कार्ड के साथ छेड़छाड़ की गई है। "ये सिर्फ आधार छेड़छाड़ का मामला नहीं है, बल्कि मेरे खिलाफ एक बड़ी साजिश है," पाठक ने दावा किया।

वहीं, गढ़ाकोटा के विधायक गोपाल भार्गव ने रेप के मामलों पर सरकार की असफलताओं को उजागर करते हुए सवाल उठाया कि क्या ऐसे माहौल में समाज रावण दहन के लायक भी रह गया है- उनका बयान, "हम अपनी बहनों और बेटियों को सुरक्षित माहौल देने में नाकाम रहे हैं" ने सरकार की नीतियों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया।

बीजेपी का नेतृत्व इस बवंडर को 'साधारण आंतरिक चर्चा' कहकर टालने की कोशिश कर रहा है। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने इसे कमतर आंकते हुए कहा, "हर परिवार में चर्चाएं होती हैं।" लेकिन विपक्षी कांग्रेस ने इसे "बीजेपी की अंदरूनी जंग" बताकर मजा ले लिया। कांग्रेस नेता मुकेश नायक ने चुटकी लेते हुए कहा, "पहले जब हम ये मुद्दे उठाते थे, तो बीजेपी हमें बदनाम करने का आरोप लगाती थी। अब तो उनके अपने ही विधायक वही बातें कह रहे हैं। अब बीजेपी क्या कहेगी?"

अंदर की ये बगावत बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुकी है। कार्यक्रमों में प्रोटोकॉल टूटने से लेकर आपसी खींचतान और अपराधियों को संरक्षण देने तक, पार्टी के भीतर सबकुछ बिखरता नज़र आ रहा है। हर कोई अपने ही ढर्रे पर चलता दिख रहा है, और यह असंतोष कभी भी नए रूप में भड़क सकता है।

आखिकार सत्ता और संगठन ने हालात की गंभीरता भांपते हुए बागी नेताओं को साफ संदेश दे दिया है: "सोशल मीडिया पर सरकार की किरकिरी बंद करें। अपनी शिकायतें सही मंचों पर उठाएं, वरना अनुशासनहीनता की सख्त सज़ा मिलेगी।"

अब देखना होगा कि बीजेपी का ये आंतरिक विद्रोह कब और कैसे फिर से फूटता है, या इसे दबाने की कोशिशें कामयाब होती हैं!

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