
17 नवंबर 2024। भारतीय सेना ने अपने दूसरे अंतरिक्ष युद्ध अभ्यास 'अंतरिक्ष अभ्यास 2024' को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। इस अभ्यास का उद्देश्य नवीनतम अंतरिक्ष-आधारित तकनीकों का उपयोग कर देश के सशस्त्र बलों की तत्परता और क्षमताओं को मजबूत करना था।
हालांकि यह अभ्यास अंतरिक्ष में नहीं, बल्कि नई दिल्ली में एकीकृत रक्षा स्टाफ मुख्यालय में आयोजित हुआ। तीन दिवसीय टेबलटॉप युद्ध अभ्यास सोमवार से बुधवार तक चला, जिसमें अंतरिक्ष से जुड़े परिदृश्यों का विश्लेषण किया गया।
अभ्यास के उद्घाटन पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा, 'अंतरिक्ष, जिसे पहले अंतिम सीमा माना जाता था, अब भारत के रक्षा और सुरक्षा तंत्र का एक महत्वपूर्ण प्रवर्तक बन गया है। भारत की समृद्ध अंतरिक्ष अन्वेषण परंपरा और बढ़ती सैन्य क्षमताओं के साथ, हम अंतरिक्ष-आधारित चुनौतियों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।'
अभ्यास में भागीदारी
इस अभ्यास में भारतीय सेना, नौसेना, वायुसेना के अधिकारियों के साथ-साथ रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक शामिल हुए।
उद्देश्य और उपलब्धियां
भारतीय रक्षा मंत्रालय ने बताया कि यह अभ्यास "अंतरिक्ष-आधारित परिसंपत्तियों और सेवाओं" के उपयोग पर केंद्रित था। इसके अलावा, इसने ऐसी परिस्थितियों में कमजोरियों की पहचान की, जब शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयों से अंतरिक्ष सेवाओं में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
अभ्यास के दौरान सैन्य अधिकारियों ने विशेषज्ञों और शिक्षाविदों से भी चर्चा की, जिन्होंने मौजूदा और भविष्य की सैन्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों पर अपनी अंतर्दृष्टि साझा की।
अंतरिक्ष युद्ध में भारत की प्रगति
भारत ने 2018 में DSA (Defence Space Agency) की स्थापना की थी, जो अमेरिकी अंतरिक्ष बल की स्थापना से एक साल पहले का कदम था। हालांकि, भारत ने अंतरिक्ष युद्ध में अपना पहला कदम करीब एक दशक पहले उठाया था।
2019 में, भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने एंटी-सैटेलाइट मिसाइल का सफल परीक्षण किया था, जिसमें एक निचली-पृथ्वी कक्षा में उपग्रह को मार गिराया गया। इस ऑपरेशन पर पेंटागन ने अंतरिक्ष में मलबे की समस्या को लेकर चिंता जताई थी।
इसके बाद DRDO ने "निर्देशित-ऊर्जा हथियार, लेजर, विद्युत चुम्बकीय पल्स (EMP) और सह-कक्षीय हथियार" जैसी उन्नत अंतरिक्ष युद्ध तकनीकों पर काम शुरू किया।
भारत का यह अंतरिक्ष युद्ध अभ्यास देश की रक्षा क्षमताओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाने और भविष्य की संभावित चुनौतियों का सामना करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है।