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धरती के तापमान में बढ़ोतरी पर चिंताएं: भारत का पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय गंभीर

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Place: नई दिल्ली                                                👤By: prativad                                                                Views: 423

19 दिसंबर 2024। जलवायु परिवर्तन और धरती के बढ़ते तापमान को लेकर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने गंभीरता दिखाई है। देश भर में क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन करते हुए मंत्रालय ने बताया कि 1901-2018 के बीच भारत के सतह वायु तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। इसके अलावा, उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर का तापमान 1951-2015 के बीच लगभग 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है।

आईपीसीसी की चेतावनी
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की छठी आकलन रिपोर्ट (एआर6) के अनुसार, धरती के औसत तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए 2050 तक शुद्ध शून्य (नेट जीरो) उत्सर्जन का लक्ष्य आवश्यक है। हालांकि, भारत वैश्विक कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन में बड़ा योगदानकर्ता नहीं है, फिर भी उसने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सक्रिय और ठोस कदम उठाए हैं।

सरकारी प्रयास और योजनाएं
भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कई कार्यक्रम और पहल शुरू की हैं, जिनमें शामिल हैं:

राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC): जिसमें सौर ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, जल संरक्षण, सतत कृषि, और हरित भारत जैसे मिशन शामिल हैं।
राज्य स्तरीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (SAPCC): क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार कार्यों का निर्धारण।
अंतरराष्ट्रीय पहल: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन।

ग्लेशियरों पर प्रभाव
बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की दर में तेजी आई है, जिससे पानी की उपलब्धता, समुद्र स्तर में वृद्धि, और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ गया है।

हिंदू कुश हिमालय ग्लेशियर: औसत वापसी दर 14.9 मीटर/वर्ष है।
चंद्रा और भागा बेसिन: पिछले 20 वर्षों में ग्लेशियरों ने अपने क्षेत्र का 6% और 2013-2021 के दौरान 2.4-9 मीटर पानी के बराबर बर्फ द्रव्यमान खो दिया है।
गढ़वाल हिमालय: भागीरथी और मंदाकिनी बेसिन में ग्लेशियरों की वापसी दर 9-20 मीटर/वर्ष रही है।
प्राकृतिक आपदाओं का खतरा
ग्लेशियरों के पिघलने से:

जल प्रवाह में अस्थायी वृद्धि।
हिमस्खलन, मलबे का प्रवाह, और ग्लेशियल झील के फटने से बाढ़ (GLOF) का खतरा।
निचले इलाकों में विनाशकारी बाढ़ की आशंका।

वैज्ञानिक नजरिया
भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित संस्थान और विश्वविद्यालय हिमालय के ग्लेशियरों की स्थिति पर नजर रख रहे हैं। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में जानकारी दी कि ग्लेशियरों की वापसी और पतले होने की दर चिंताजनक है, जिससे मानव जीवन और पर्यावरण पर गहरा असर पड़ सकता है।

भारत ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत कदम उठाए हैं। लेकिन ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने और तापमान में वृद्धि के चलते प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है।

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