भारतीय मीडिया का ध्रुवीकरण और डिजिटल मीडिया की बढ़ती भूमिका

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 1060

4 मार्च 2025। भारत में मीडिया का ध्रुवीकरण और इसकी स्वतंत्रता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। पारंपरिक समाचार माध्यमों के साथ-साथ अब डिजिटल और सोशल मीडिया भी खबरों के प्रमुख स्रोत बन गए हैं। हालांकि, इन माध्यमों की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता पर भी चर्चा तेज हो रही है।

विज्ञापनों पर निर्भरता और राजनीतिक हस्तक्षेप
रिपोर्ट के अनुसार, बड़े समाचार पत्र और टीवी चैनल अपनी लागत निकालने के लिए सरकारी और निजी विज्ञापनों पर निर्भर हैं। उदाहरण के तौर पर, टाइम्स ऑफ इंडिया प्रतिदिन 16 लाख प्रतियां बेचता है, लेकिन इसकी कीमत बढ़ाने से इसकी पाठक संख्या में गिरावट आ सकती है। इसके चलते अखबार और चैनल विज्ञापनदाताओं की प्राथमिकताओं के अनुसार अपनी रिपोर्टिंग को ढालने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

समाचार एजेंसियों की भूमिका
समाचार एजेंसियां जैसे प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (PTI), यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (UNI) और एशियन न्यूज इंटरनेशनल (ANI) भारत में समाचार प्रसार का बड़ा माध्यम हैं। ये एजेंसियां विभिन्न मीडिया हाउस को समाचार बेचती हैं। अगर कोई सरकार या बड़ी संस्था इन्हें नियंत्रित कर लेती है, तो वह देश की राय को प्रभावित कर सकती है।

सरकारी विज्ञापन और मीडिया पर नियंत्रण
रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले सरकारी विज्ञापनों में 25% की बढ़ोतरी देखी गई थी। यही पैटर्न 2024 के चुनावों से पहले दोहराए जाने की संभावना है। राजनीतिक दल सत्ता में आने के बाद यह तय करते हैं कि किस मीडिया समूह को सरकारी विज्ञापन दिए जाएं और किसे नहीं। उदाहरण के लिए, 2019 में मोदी सरकार ने टाइम्स ऑफ इंडिया, द हिंदू, इकोनॉमिक टाइम्स और एबीपी न्यूज़ को विज्ञापन देना बंद कर दिया था।

डिजिटल और सोशल मीडिया की भूमिका
डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप) तेजी से समाचार के प्राथमिक स्रोत बनते जा रहे हैं। हालांकि, इन प्लेटफॉर्म्स पर फेक न्यूज़, दुष्प्रचार और राजनीतिक ध्रुवीकरण का खतरा भी बढ़ा है।

फेक न्यूज़ और दुष्प्रचार
सोशल मीडिया पर बिना सत्यापन के खबरें वायरल हो जाती हैं, जिससे जनमत को प्रभावित किया जाता है। 2019 और 2024 के चुनावों में सोशल मीडिया पर ट्रोल आर्मी और बॉट्स के माध्यम से गलत जानकारी फैलाई गई।

स्वतंत्र डिजिटल मीडिया का उभरना
द वायर, न्यूज़लॉन्ड्री, ऑल्ट न्यूज़ जैसे स्वतंत्र डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म सरकार और कॉरपोरेट दबावों से अलग रहते हुए स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, इन प्लेटफॉर्म्स को भी SLAPP (Strategic Lawsuit Against Public Participation) मुकदमों का सामना करना पड़ता है।

पत्रकारिता का भविष्य और निष्पक्षता की चुनौती
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि एआई (AI) और चैटजीपीटी (ChatGPT) जैसी तकनीकों के माध्यम से समाचार लेखन की प्रक्रिया तेजी से बदल रही है। हालांकि, पत्रकारिता की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए पारदर्शिता और स्वतंत्रता बनाए रखना बेहद जरूरी है।

डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के साथ, अब यह सवाल और महत्वपूर्ण हो जाता है कि खबरें निष्पक्ष रहें और राजनीतिक तथा कॉरपोरेट दबाव से मुक्त होकर जनता तक सही जानकारी पहुंचे।

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