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टेक्नोलॉजी और मानवता: क्या हम भविष्य के सुपर ह्यूमन्स की ओर बढ़ रहे हैं

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Location: भोपाल                                                 👤Posted By: prativad                                                                         Views: 59

भोपाल: 22 सितंबर 2024। आज की तारीख में तकनीक इतनी तेजी से विकसित हो रही है कि मानव अपने आप को सुपर ह्यूमन्स बनाने की कगार पर है। वैज्ञानिकों का दावा है कि हम निकट भविष्य में 3D प्रिंटिंग से मानव अंगों जैसे नाक, कान, फेफड़े, और किडनी का निर्माण कर सकते हैं। इससे भी बड़ा सवाल अमरता का है, जो मानवता की सबसे पुरानी खोजों में से एक रही है।

प्राचीन मिस्र और अन्य सभ्यताओं में देवताओं के रूप में जो कथाएं प्रचलित हैं, वे दरअसल उन्नत टेक्नोलॉजी और संभवतः एलियंस के हस्तक्षेप की ओर इशारा करती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि मानव इतिहास में कई जगहों पर हमें ऐसे सबूत मिलते हैं जो बताते हैं कि हमारे पूर्वज टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर इंसान के डीएनए को बदलने में सक्षम थे।

MIT और NASA के शोधकर्ता भी भविष्य के ट्रांस-ह्यूमन इंसानों पर काम कर रहे हैं, जो शारीरिक और मानसिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग करेंगे। जेनेटिक इंजीनियरिंग और नैनो-टेक्नोलॉजी की मदद से जल्द ही मानव शरीर के अंगों को बदलने, उनकी मरम्मत करने और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को पलटने की क्षमता विकसित हो सकती है।

वैज्ञानिक इस दिशा में भी शोध कर रहे हैं कि कैसे इंसानों को अमर बनाया जा सकता है। नए-नए शोध और आविष्कार यह संकेत दे रहे हैं कि आने वाले समय में हम टेक्नोलॉजी के सहारे एक नई मानव जाति की ओर बढ़ रहे हैं, जहां डिज़ाइनर बेबीज़ और सुपर इंटेलिजेंट इंसान असंभव नहीं रहेंगे।

इस टेक्नोलॉजी के जरिए इंसान इतनी क्षमता हासिल कर सकता है कि वह लोगों के जेनेटिक मटेरियल से ही उनके अंगों को 3डी प्रिंट कर सके। ट्रांस-ह्यूमनिस्ट यह मानते हैं कि हम जल्द ही अपनी शारीरिक सीमाओं को पार कर जाएंगे और अपने शरीर में मशीनों को इंटीग्रेट कर सकेंगे। अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस की एजेंसी DARPA, सैनिकों की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए न्यूरल इम्प्लांट्स जैसी तकनीकों पर काम कर रही है, जिससे उनकी सोचने और याददाश्त की क्षमता बेहतर हो सके।

2014 में, साउथ कोरिया की सोल नेशनल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी सिंथेटिक स्मार्ट स्किन पर रिसर्च की, जो असली त्वचा जैसी दिखती है और महसूस होती है। इसे नकली अंगों पर लगाया जा सकता है और इससे हम उन अनुभवों को महसूस कर सकते हैं, जैसे दूसरे हाथ या अंग महसूस करते हैं। भविष्य में, इस तकनीक से बने अंग हमारे असली शरीर जैसे ही दिखेंगे और काम करेंगे।

एक और क्रांतिकारी पहल न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में हुई, जहां वैज्ञानिकों ने नर्वस सिस्टम को इंटरनेट से जोड़ा और दिमाग के सिग्नल से रोबोटिक हाथ को कंट्रोल किया। इस तरह के न्यूरल इम्प्लांट्स भविष्य में मनुष्य के नकली अंगों को सोच से कंट्रोल करने की क्षमता देंगे।

ट्रांस-ह्यूमनिज्म के समर्थक मानते हैं कि इंसान और मशीन का फ्यूजन भविष्य में इतना उन्नत हो जाएगा कि हम न केवल पृथ्वी बल्कि अंतरिक्ष में भी रोबोटिक अवतार के रूप में यात्रा कर सकेंगे। हो सकता है कि परग्रही सभ्यताएं पहले ही इन तकनीकों का इस्तेमाल कर चुकी हों, और हम उनके नक्शेकदम पर चल रहे हों।

MIT जैसी संस्थाएं एक ऐसी स्मार्ट स्किन विकसित कर रही हैं, जो खुद को रिपेयर कर सकती है और सैनिकों को बैलिस्टिक या केमिकल हमलों से बचा सकती है। प्राचीन सभ्यताओं के देवताओं के शरीर की तुलना इन तकनीकों से की जा रही है, जो उन्हें अमरता प्रदान कर सकती थी।

इसके अलावा, मानव मस्तिष्क की सिमुलेशन और ब्रेन मैपिंग प्रोजेक्ट्स, जैसे यूरोप का "ह्यूमन ब्रेन प्रोजेक्ट" और अमेरिका का "ब्रेन इनिशिएटिव," भविष्य में दिमाग की संरचना और कार्यप्रणाली को पूरी तरह से समझने की कोशिश कर रहे हैं। अगर इंसानी मस्तिष्क को कंप्यूटर पर सिमुलेट किया जा सके, तो यह एक डिजिटल कॉन्शियसनेस की ओर बड़ा कदम होगा, जहां इंसान की हर जानकारी एक कंप्यूटर में सुरक्षित हो सकेगी।

कुछ फ्यूचरिस्ट मानते हैं कि इस तकनीकी क्रांति से इंसान खुद को मशीन में बदलने की कगार पर है। आने वाले समय में हम अपनी कॉन्शियसनेस को क्लाउड पर अपलोड करने में सक्षम हो सकते हैं, जिससे इंसानी अस्तित्व को एक नई परिभाषा मिलेगी।

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