×

क्या है किड़नी फेल्युअर

prativad news photo, top news photo, प्रतिवाद
Place: Bhopal                                                👤By: DD                                                                Views: 53792

किड़नी फेल्युअर -किड़नी का ब्लड़ (खून) से यूरिन (पेशाब) को� छानना या अलग करना बंद कर देती है



कैसे होती है शुरुआत



जब लम्बे समय से किसी व्यक्ति की पेशाब में प्रोट्रीन सामान्य से अधिक जाता रहता है (पेशाब करते समय पेशाब में झाग बनना दिखायी दे या पेशाब दूधिया कलर या दूध जैसी सफेद जाये) जिसके चलते उसे दिन व दिन कमजोरी महसूस होना, कमर में दर्द बने रहना, बार-बार पेशाब आना, वजन घटते जाना, पैरों में सूजन आना, पैरों में भारीपन होना जैसे लक्षण शुरुआत में दिखाई देते है



यही से वास्तविक किड़नी फेल्युअर बीमारी की शुरुआत हो जाती है

व्यक्ति इन सभी को अनदेखा कर सिर्फ ताकत या कमजोरी की दवा लेता रहता है इस तरह व्यक्ति 5-8 माह निकाल देता है



जितनी तेजी या मात्रा से प्रोट्रीन निकलता है ठीक उतनी ही तेजी से रोग की तीव्रता बढ़ती है, लम्बे समय से प्रोट्रीन लॉस (कमी) के चलते किड़नी की कार्य क्षमता कम होने लगती है जिसके चलते किड़नी में बदलाब आने लगते है जैसे पेशाब में क्रियटिनिन कम जाना या खून से क्रियटिनिन को अलग न कर पाना, जिसके चलते क्रियटिनिन खून में ही बने रहने लगता है जिससे ब्लड सीरम में क्रियटिनिन की मात्रा बढ़ने लगती है लम्बे समय तक ऐसा होने से धीरे धीरे किड़नी का साइज भी घटने (कम) लगता है।



लोग क्रियटिनिन के बढ़ने को किड़नी फेल्युअर का मुख्य कारण मानते है जो की पूर्णत: गलत है।

दवाओं से या अन्य प्रकार से क्रियटिनिन कम करना किड़नी रोग का पूर्ण निदान नही है।

अगर किड़नी को ठीक करना है तो उसके लिये प्रोट्रीन का जाना रोकना होगाजोकि स्थाई और सही समाधान है, सिर्फ क्रियटिनन को कम करने से किड़नी कभी भी ठीक नहीं होगी यह एक कटु सत्य है।



कैसे होती है किड़नी ठीक (रिकवर)



जब दवाओं से पेशाब में प्रोट्रीन का जाना कम होने लगता है या बंद हो जाता है या सामान्य अवस्था में आ जाता है तब शरीर स्वंय किड़नी को हील (ठीक) करने लगता है जिससे किड़नी की कार्य क्षमता बढ़ने लगती है और G.F.R. बढ़कर सामान्य (90+) की तरफ आने लगता है जिसके चलते क्रियटिनिन छनकर पेशाब के रास्ते जाने लगता है जिससे सीरम क्रियटिनिन कम या सामान्य होने लगता है अर्थात् किड़नी नॉर्मल होने लगती है।

इस सम्पूर्ण हीलिंग प्रक्रिया में कम से कम 18 से 30 माह (व्यक्ति विशेष के लिये कम या ज्यादा हो सकता है) का समय हो सकता है।



किड़नी फेल्युअर 2 तरह का होता है

पॉली सिस्टिक किड़नी (PKD)- यह जेनेटिक डिस-ऑडर होता है, जिसमें किड़नी में सिस्ट बनने लगते है जिसके कारण किड़नी की कार्य करने की क्षमता धीरे धीरे खत्म होने लगती है।



इसका सिर्फ मैनेजमेंट ही संभव है (अर्थात् गंभीर स्थिति में जाने से रोकना या ज्यादा बीमारी को बढ़ने न देना) इसे पूर्णत: ठीक नही किया जा सकता।



क्रोनिक किड़नी डिजीज (CKD) - यह सही समय पर उपचार से ठीक हो सकती है।

यह कई कारणों से हो सकती है जिनमें मुख्य है

A. बी.पी. कम या ज्यादा होना

B. लम्बे समय से शुगर होना

C. लम्बे समय से थायरॉइड होना

D. लम्बे समय से ड्रग्स का सेवन

E. लम्बे समय से किड़नी में स्टोन का होना

F. लम्बे समय से यूरिन इंफेक्शन का होना

G. लम्बे समय से पेशाब में प्रोट्रीन का जाना



किड़नी रोगी को क्यों जरुरी है 5 टेस्ट ?

क्योंकि यह 5 टेस्ट आपको आपकी वास्तविक स्थिति बतलाते है



Urine Test (Microscopic + Routine)

यह टेस्ट आपको यूरिन में क्या जा रहा है ये बतलाता है जैसे ब्लड़, पस सेल्स, प्रोट्रीन,बैक्टेरिया आदि।

अगर बैक्टेरिया या प्रोट्रीन (एलब्युमिन) प्लस में आता है तो तुरंत उपचार करायें इसे हल्के में न ले यह किड़नी फेल्युअर की शुरुआत कि निशानी हो सकती है।

प्रोट्रीन(एलब्युमिन) का जितना ज्यादा प्लस साइन होते है यानि उतनी ही तेजी से प्रोट्रीन पेशाब में जा रहा है और स्थिति उतनी ही गंभीर होती जाती है।



Urine Micro Albumin Test

यह टेस्ट आपको यूरिन में एलब्युमिन प्रोट्रीन की मात्रा की दर को बतलाता है एक स्वस्थ्य व्यक्ति में इसकी मात्रा 08-12 होती है अगर रिपोर्ट में इसकी वेल्यु 20 से अधिक हो रही है तो वह किड़नी फेल्युअर की दर को दर्शाती है।

इसकी जितनी ज्यादा वेल्यु बढ़ती जाती है ठीक उतनी ही तेजी से किड़नी की कार्य क्षमता कम होती जाती है।

पेशाब में प्रोट्रीन के जाने के चलते पैरों में सूजन आना, कमर दर्द के साथ वजन घटना, पैरो में भारीपन और थकान बनी रहना, किड़नी का सिकुड़ना जैसे लक्षण आने लगते है



दवायें इसी को कम करने का या रोकने का काम करती है जिस दिन यह (प्रोट्रीन- एलब्युमिन का जाना) नॉर्मल या सामान्य हो जाता है किड़नी भी नॉर्मल की तरफ आने लगती है



Estimated Glomerular Filtration Rate (Estimated G.F.R.) Test

यह टेस्ट आपको किड़नी में युरिन (पेशाब) छानने की दर को बतलाता है जो कि सामान्य व्यक्ति का 90 से ऊपर होता है।

अगर यह कम आ रहा है तो आपकी किड़नी पूर्णतः काम नही कर रही है साथ ही यह टेस्ट किड़नी की स्टेज को भी बतलाता है ।

किड़नी की स्टेज जानने के लिये यह टेस्ट अवश्य करायें इस टेस्ट के बगैर किड़नी की स्टेज का अंदाजा लगाना गलत होगा।

कभी कभी हम बगैर टेस्ट कराये किड़नी की लास्ट स्टेज मान कर हतास हो जाते है जो कि अपने आप से ही धोखा है।

(किसी भी बीमारी को इंसान अपने हौसले और साहस से हरा सकता है इसलिये कभी भी हौसले और साहस को कदापि न छोड़े आपका हौसला ही आपको स्वस्थ्य होने में मदद करता है)



Serum Creatinin Test

यह टेस्ट ब्लड में क्रियटिनिन (यह यूरिया की तरह शरीर के लिये जहर होता है) की मात्रा को बतलाता है सामान्य व्यक्ति में इसकी मात्रा 1.2 तक मानी गयी है कभी कभी बी.पी. कम ज्यादा होने के चलते यह कम ज्यादा होता रहता है।

मगर इसकी मात्रा 1.8 से अधिक होने पर यह खतरे का सिग्नल होता है क्योकि इसके बढने से बहुत सारी परेशानियां शुरु हो जाती है।

जैसे - खाना खाते समय उल्टी आना, मुंह का कडवापन, पेशाब कम बनना

क्रियटिनिन के बढने का मतलब है कि किड़नी अपना काम सही से नही कर पा रही है जिसके चलते क्रियटिनिन पेशाब में जाने कि बजाय खून में ही रुकने लगा है जबकि किड़नी फैल की शुरुआत बहुत पहले हो चुकी होती है अर्थात् पेशाब में प्रोट्रीन की शुरुआत होने से, मगर क्रियटिनिन बहुत बाद में (2-6 माह बाद) बढ़ना शुरु होता है।

कभी कभी क्रियटिनिन 1.8 से 7 के बीच ही बना रहता है और किड़नी 5 स्टेज में पँहुच जाती है।

जब कभी अचानक से पेट दर्द या उल्टियाँ होना स्टार्ट होती है या क्रियटिनिन अचानक से 12 से ऊपर पँहुच जाता है तब हम टेस्ट करवाते है तब पता चलता है की किड़नी लास्ट स्टेज में पहुँच गई तब तक बहुत देर हो चुकी होती है उस कंडीशन में डायलिसिस करवा कर ही क्रियटिनिन को कम करने का विकल्प होता है ऐसे समय में दवाओं से क्रियटिनिन इतनी जल्दी (2-3 दिन में) कम नहीं हो पाता ऐसी स्थिति से बचने के लिये समय समय पर Estimated G.F.R. कराते रहना चाहिये क्योंकि 20 से कम G.F.R. वालों में एंव डायलिसिस वाले पेशेंट में रिकवरी बहुत ही धीमे होती है जिसमें 3-4 साल लग सकते है।



Whole Abdomen U.S.G.

यह सोनोग्राफी किड़नी के साथ साथ लीवर, गॉलब्लेड़र, तिल्ली, प्रोस्टेट, स्टोन (पथरी), फोटो फेनिक ऐरिया की स्थिति को बतलाती है।



लीवर - किड़नी के साथ साथ लीवर भी नाजुक स्थिति में आ जाता है ऐसी स्थिति में दी जा रही दवाऐं पच (डायजेस्ट) नहीं पाती जिससे रोगी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाता तब किड़नी के साथ साथ लीवर का उपचार भी अनिवार्य हो जाता है।



बगैर लिवर के उपचार लिये किड़नी का या अन्य किसी बीमारी का उपचार लेना गलत होता है क्योंकि किसी भी प्रकार की दवा या भोजन को पचाने (डायजेस्ट) के लिये लिवर का स्वस्थ्य होना बहुत ही जरुरी होता है।



गॉलब्लेडर - किड़नी रोग के चलते ज्यादातर पेशेटों में बाईल गाढ़ा और तीक्ष्ण हो जाता है जिससे गॉलब्लेडर में स्टोन बनने लगते है।

जिससे भोजन का पाचन ठीक से नहीं हो पाता है या भूख का अभाव होने लगता है।

ऐसे पेशेंट चिडंचिड़े, जिद्दी और झगड़ालू स्वभाव के हो जाते है

पित्त की पथरी को गलाकर निकाल देना चाहिए नहीं तो यह कैंसर का कारण बन सकती है।

किड़नी के उपचार के साथ पित्त की पथरी का उपचार भी अनिवार्य हो जाता है।



तिल्ली - लम्बे समय से बुखार (हड्डी बुखार/बोन फीवर) के चलते या खून के ज्यादा टूटने के चलते तिल्ली भी बढ़ी हुई होती है जो की समस्या को और बडा देती है क्योंकि इसके चलते क्रियटिनिन तेजी से बढ़ता है।

किड़नी उपचार के साथ तिल्ली का उपचार भी अनिवार्य हो जाता है।



प्रोस्टेट - पुरुषों में इंफेक्शन के चलते या अधिक उम्र के चलते प्रोस्टेट का साईज बड़ जाता है जिसके चलते पेशाब सही से नही हो पाती है या ज्यादा दबाब बनाने पर आती है।

सामान्य व्यक्ति या किड़नी रोगी को इसका उपचार समय पर ले लेना चाहिये नहीं तो पेशाब के बैक फ्लो के चलते किड़नी परेशानी (किड़नी का साइज का बडा होना या कम काम करना) में आ सकती है।

किड़नी रोगी के लिये प्रोस्टेट का उपचार भी लेना अनिवार्य हो जाता है



किड़नी स्टोन (पथरी) - यह किसी को कभी भी हो सकती है पेट दर्द होने पर Whole Abdomen U.S.G. जरुर करवाये।

किड़नी स्टोन को जितनी जल्दी हो सके आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक दवाओं से गलाकर निकाल देना चाहिये, क्योंकि दवाओं से गलाकर निकालने से पथरी दोबारा होने के 99% चांस कम हो जाते है साथ ही यह सुरक्षित तरीका भी है।

पथरी से किड़नी में घाव या पेशाब रुकावट के चलते किड़नी के खराब होने चांस बड़ जाते है।

लम्बे समय तक स्टोन के चलते किड़नी की कार्य क्षमता बिगड़ जाती है जिसके चलते किड़नी फेल्युअर में जाने लगती है।



फोटो फेनिक ऐरिया (Photophenic Area) - यह किड़नी में तब दिखाई देता है जब किड़नी के नेफ्रोन पूर्णतः खत्म या मृत होकर कठोर हो जाते है इस अवस्था में यह कहना ठीक होगा की किड़नी अब पुनः ठीक नहीं हो सकती है अर्थात् किड़नी पूर्णतः खत्म हो चुकी है।

अगर किड़नी में फोटो फेनिक ऐरिया नहीं है तो इसका सीधा अर्थ है कि आपके किड़नी के नेफ्रोन अभी तक जीवित है वह सिर्फ अपना काम नहीं कर पा रहे है जो कि सही उपचार से पहले की तरह काम कर सकते है अर्थात् किड़नी पूर्णतः ठीक हो सकती है।

उपरोक्त 5 जाँचों के आधार पर ही हम किड़नी रोगी को उपचार देते है हम अधूरी जाँचों पर किसी भी प्रकार की दवाऐं नहीं देते।



जिन रोगियों को बी.पी. या शुगर या थायरॉइड की समस्या है उनको समय समय पर ये 5 टेस्ट कराते रहना चाहिये।

जब भी पेशाब में प्रोट्रीन की मात्रा बढ़ती दिखे या किड़नी में स्टोन दिखे तो तुरंत उपचार लेना प्रांरभ कर दे क्योंकि शुरुआती समय में उपचार होने पर बीमारी जटिल नहीं हो पाती और हम कम समय में ठीक भी हो जाते है।

सही समय पर जानकारी और बचाव से हम शरीरिक व आर्थिक क्षति से बच सकते है।



हमारी दवाओं से 90 दिनों के अंदर (किसी को 15 दिनों में) रिजल्ट आने लगते है यानि पेशेंट के स्वास्थ्य में सुधार होने लगता है।



अगर किड़नी रोगी शुरुआती समय में यानि क्रियटिनिन 1.8-6 में उपचार शुरु कर देता है तो वह जल्दी ठीक भी होते है और डायलिसिस की जरुरत भी नहीं पड़ती है।



हमारी दवाओं से 12-14 माह में (किसी किसी के लिये 3-6 माह) डायलिसिस बंद हो जाता है।



जो पेशेंट पूर्व में किड़नी ट्रांसप्लांट करा चुके है और उनका फिर से क्रियटिनिन बडना शुरु हो गया है ऐसे केस में भी हमारी दवायें सुधार लाती है अर्थात् उनका भी प्रोट्रीन (एलब्युमिन) जाना कम होने लगता है जिसके चलते क्रियटिनिन में भी सुधार होने लगता है।



पॉली सिस्टिक किड़नी के पेशेंट को भी हमारी दवाओं से प्रोट्रीन का जाना कम होने लगता है जिसके चलते रोगी के स्वास्थ्य में सुधार आने लगता है और रोगी गंभीर अवस्था में जाने से बचे रहते है।



किड़नी स्टोन (पथरी) और बाइल स्टोन (पित्त की पथरी) के लिये (60 दिनों में पथरी नही निकलने पर दोबारा पथरी की दवा मुफ्त दी जाती है) दवा दी जाती है यह दवा स्टोन को 45-60 दिनों में गलाकर निकाल देती है।



प्रोस्टेट की समस्या के लिये भी दवा दी जाती है





क्लिनिक का पता

आयुष्मान पॉली क्लिनिक एण्ड रिसर्च सेंटर

एफ - 115, यशवंत प्लाजा, रेलवे स्टेशन के सामने, इंदौर

किड़नी सेंटर हेल्पलाईन व वाट्सअप नम्बर 9826163201

कॉल करने का समय - सुबह 11 से शांम 5 बजे तक

अधिक जानकारी के लिये आयुष्मान के फेसबुक पेज पर विजिट करे

https://m.facebook.com/Ayushmaans-Kidney-Center-1769607956593116/

Related News

Global News