जब नोटबंदी और जीएसटी को देश की घटती जीडीपी और सुस्त होती अर्थव्यवस्था का कारण बताते हुए सरकार लम्बे अरसे से लगातार अपने विरोधियों के निशाने पर हो, और 8 नवंबर को विपक्ष द्वारा काला दिवस मनाने की घोषणा की गई हो, ऐसे समय में कारोबारी सुगमता पर विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट सरकार के लिए एक ठंडी हवा का झोंका बनकर आई है।
लेकिन जिस प्रकार कांग्रेस इस रिपोर्ट को ही फिक्सड कहते हुए अपनी हताशा जाहिर कर रही है वो निश्चित ही अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। उसकी इस प्रकार की नकारात्मक रणनीति के परिणामस्वरूप आज न सिर्फ कांग्रेस खुद ही अपने पतन का कारण बन रही है बल्कि देशवासियों को पार्टी के रूप में कोई विकल्प और देश के लोकतंत्र को एक मजबूत विपक्ष भी नहीं दे पा रही है।
सरकार के विरोधियों को उनका जवाब शायद वर्ल्ड बैंक की "ईज आफ डूइंग बिजनेस" रैंकिंग की ताजा रिपोर्ट में मिल गया होगा जिसमें इस बार भारत ने अभूतपूर्व 30 अंकों की उछाल दर्ज की है।
यह सरकार की आर्थिक नीतियों का परिणाम ही है कि 190 देशों की इस सूची में भारत 2014 में 142 वें पायदान पर था, 2017 में सुधार करते हुए 130 वें स्थान पर आया और अब पहली बार वह इस सूची में 100 वें रैंक पर है।
अगर अपने पड़ोसी देशों की बात करें तो महज 0.40 अंकों के सुधार के साथ चीन 78 वें पायदान पर है, पाकिस्तान 147 और बांग्लादेश 177 पर।
सरकार का लक्ष्य 2019 में 90 और 2020 तक 30 वें पायदान पर आना है।
प्रधानमंत्री का कहना है कि "सुधार, प्रदर्शन और रूपांतरण के मंत्र की मार्गदर्शिका के अनुसार हम अपनी रैंकिंग में और सुधार के लिए और अधिक आर्थिक वृद्धि को पाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"
रिपोर्ट की सबसे खास बात यह है कि भारत को इस साल सबसे अधिक सुधार करने वाले दुनिया के टाँप टेन देशों में शामिल किया गया है और बुनियादी ढांचे में सुधार करने के मामले में यह शीर्ष पर है।
भारत के लिए निसंदेह यह गर्व की बात है कि इस प्रतिष्ठित सूची में वह दक्षिण एशिया और ब्रिक्स समूह का एकमात्र देश है।
2003 में जब यह रिपोर्ट जारी की गई थी, तब इसमें 5 मुद्दों के आधार पर 133 देशों की अर्थव्यवस्था को शामिल किया था लेकिन इस साल 11 बिन्दुओं के आधार पर 190 देशों की अर्थव्यवस्था में यह रैंकिंग की गई है।
चूंकि विश्व बैंक की यह रिपोर्ट हर साल 1 जून तक के प्रदर्शन पर आधारित होती हैं इसलिए इस साल एक जुलाई से लागू किए गए जीएसटी और उसके प्रभाव को इसमें शामिल नहीं किया गया है।
वर्ल्ड बैंक के साउथ एशिया के उपाध्यक्ष डिक्सन का कहना है कि यह रिपोर्ट संकेत देती है कि भारत के दरवाजे कारोबार के लिए खुले हैं और अब यह विश्व स्तर पर व्यापार करने के लिए पसंदीदा स्थान के रूप में कड़ी टक्कर दे रहा है।
मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मोदी ने गुजरात को व्यापार की दृष्टि से "गेटवे आफ इंडिया" बना दिया था। देश के लगभग सभी बड़े औद्योगिक घराने अन्य राज्यों की अपेक्षा गुजरात को उसकी आर्थिक नीतियों के कारण निवेश के लिए सर्वश्रेष्ठ राज्य मानते थे। विश्व बैंक की यह ताजा रिपोर्ट इस बात का सुबूत है कि अपनी नई आर्थिक नीतियों के सहारे भारत आज व्यापार और निवेश की दृष्टि से दुनिया की नजरों में पहले के मुकाबले कहीं अधिक आकर्षक और उपयोगी सिद्ध हो रहा है। आने वाले समय में शायद भारत विदेशी निवेश की दृष्टि से "गोटवे आफ द वर्ल्ड" बन जाए।
दिल्ली और मुंबई के कॉर्पोरेट जगत से मिली जानकारी के आधार पर तैयार की गयी इस रिपोर्ट के अनुसार जहाँ पहले नया व्यवसाय शुरू करने के लिए व्यक्ति को बैंक से लोन लेने से लेकर विभिन्न कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए महीनों पसीना बहाने के साथ साथ अपनी मेहनत की कमाई भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ानी पड़ती थी। आज अधिकतर प्रक्रिया आनलाईन करके लालफीताशाही पर भी लगाम लगाने की काफी हद तक सफल कोशिश की गई है।
कर्ज लेना आसान बनाकर न सिर्फ देश में 'स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया' के द्वारा उद्यमिता को बढ़ावा दिया गया बल्कि विदेशी निवेश को भी आकर्षित किया गया।
देश में अब तक छोटे निवेशकों के हितों को अनदेखा किया जाता था लेकिन अब सेबी द्वारा छोटे निवेश में भी सुरक्षा देने के लिहाज से कई कदम उठाए गए जिनके आधार पर भारत ने इस क्षेत्र में नौ पायदान ऊपर आते हुए चौथी रैंकिंग हासिल की।
टैक्स सुधारों के परिणामस्वरूप पहले की 172 रैंकिंग के मुकाबले इस बार 53 अंकों की उछाल के साथ भारत 119 वें स्थान पर है।
हालांकि आयात निर्यात जैसे क्षेत्र में भारत सरकार को अभी और काम करना है लेकिन दस में से आठ क्षेत्रों में सुधार के साथ यह कहा जा सकता है कि विरोध करने वाले जो भी कहें, देश प्रगति की राह पर चल पड़ा है।
-डाँ नीलम महेंद्र
विश्व बैंक रिपोर्ट एक ठंडी हवा का झोंका बनकर आई है
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