(बजट 2018-19)
हमने ग्रामीण भारत की बुनियादी जरूरतों पर बेरूखी बरती। महत्वाकांक्षी योजनाओं को गले लगाया। इनमें उदारीकरण ने तड़का लगा दिया। आर्थिक उदारीकरण के साथ गांव, गरीब और किसान का चेहरा आंकड़ों के जंगल में खोे गया। बाजारवाद परवान चढ़ा जिससे गांवों की अर्थव्यवस्था के सशक्तिकरण के प्रयास के साथ ही गांव, गरीब और किसान रोग बढ़ता ही गया ज्यांे-ज्यों दवा की के पशोपेश में पड़ता रहा। प्रिवेन्सन इज वेटर देन क्योर सिर्फ नारा बनकर रहा गया। राजनैति दलों ने चुनावी आहट के साथ कर्ज माफी देकर तात्कालिक लाभ तो उठाया लेकिन स्थाई समाधान की ओर ध्यान देने के बजाय अनुदान की परिपाटी आरंभ कर दारोमदार बिचैलियों के हाथ में सौंप दिया। बजट सस्ते और महंगे उत्पाद की घोषणा तक सिकुड़ कर रह गया। देश में जीएसटी लागू होने के बाद उत्पाद और सेवा के सस्ते महंगे होने का तारतम्य खतम होने से बजट पर निगाह रखने वालो को हताशा हुई। वास्तव में बजट आर्थिक सुधार केंद्रित हो गया। स्थाई समाधान बजट की फितरत बना दी गई। यहाॅ सामूहिकता की दृष्टि के अभाव में व्यक्तिनिष्ठ समुदाय की खुशियां गायब हो गई। गांवों की अधोसंरचना, किसानों को साख सुविधा, किसान के उत्पाद के समर्थन मूल्य में डेढ़ गुना वृद्धि, हेल्थ कव्हर जैसी योजनाएं बजट की शीर्षक बनकर उभरी। बजट के बाद जब-जब शेयर बाजार गुलजार होता था। बाजार में खुशियां मनाई जाती रही है लेकिन बजट में दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ पर कर लगाना अर्थजगत को माफिक नहीं आने से उसने बजट की गांव, गरीब, किसान के हक में आई राहतों को नजर अंदाज करके हायतोबा मचा दी। आखिर इस मानसिकता को क्या कहा जायेगा। दरअसल बजट में पुराने ख्वाबों को नई इबारत में उतारा गया है। ग्रामोन्मुखी पहल पर जो सराहना मिलना थी, नजर नहीं आई लेकिन आगाज अच्छा है तो अंजाम भी भला होगा इस सकारात्मक सोच में भी कृपणता देखी जा रही है।
अर्थशास्त्र की सम्यक दृष्टि से देखा जाये तो मानना पड़ेगा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कदाचित पहले ऐसे राजनेता हैं जिन्होंने अपने चुनावी बजट को देश के दीर्घकालीन हितों को समर्पित किया है। वाहवाही लूटने का अवसर खोजने की तनिक भी परवाह नहीं की। इसके लिए श्री नरेंद्र मोदी और श्री अरूण जैटली वास्तव में बधाई के पात्र हैं जिन्होंने कहा था कि चुनाव जीतने के लिए राष्ट्रहित को कुर्बान नहीं किया जा सकता है। वे अपने कथन पर सोलह आने खरे उतरे हैं। इसे दार्शनिक भाव से उच्च विचार कह कर हमने इतिश्री मान ली।
वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली ने 24.42 लाख करोड़ रू. का बजट पेश करते हुए किसानों पर रहम करते हुए कहा है कि उसे लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य सुनिश्चित किया जायेगा। कृषि विज्ञानी डाॅ.स्वामी नाथन ने भी इस घोषणा को किसानों की आकंाक्षा के अनुकूल बताते हुए बजट को किसानोन्मुखी बताया है तथापि उन्होंने कहा है कुछ कसर और पूरी की जा सकती थी। किसानों को संस्थागत कर्ज की राशि 11 लाख रू. कर दी गई है। किसान और गरीब दोनों की सेहत पर श्री नरेंद्र मोदी सरकार की नजर गड़ी हुई है। ऐसे में जब बाजार मायूस है और दलाल स्ट्रीट में कारपोरेट सेक्टर से इसे ब्लेक फ्रायेड की संज्ञा दे रहा है तो विपक्ष का यह इलजाम तो मोदी ने झूठा साबित कर दिया है कि एनडीए सरकार उद्योग पतियों की हित चिन्तक है, यह सूटबूट की सरकार है। किसानों पर करम से यही अर्थ निकलता है कि सरकार ने स्वीकारा है कि देश की 65 प्रतिशत आबादी का खेती मूलाधार है। खेती की सेहत सुधरेगी तो अर्थव्यवस्था अपने आप सशक्त होगी। जहाॅ बजट में मध्यम वित्त वर्ग नौकरी पेशा को राहत न देने का सवाल है तो समझने की बात है कि वह आंकड़ों का खेल बन कर रह जाता। इस हाथ दिया उस हाथ टेक्स का स्लेब बदलकर ले लिया होता।
बजट में कृषि क्षेत्र में 11 लाख करोड़ रू. क्रेडिट कार्ड के जरिए जरूरत मंद किसानों को कर्ज के रूप में हासिल होगा। सभी फसलों को प्रोत्साहन देते हुए लागत मूल्य का डेढ़ गुना मूल्य सुनिश्चित होगा। इससे अब वे माटी मोल अपनी जिन्स बेचने के लिए लाचार नहीं होंगे। मंडियों को ई प्लेटफार्म से जोड़ा गया है। इससे किसान को बेहतर विपणन सेवा मिलेगी। देश की जिस मंडी में पुसावेगा किसान जिन्स बेच सकेगा। उसके खाते में राशि जमा हो जायेगी। लागत मूल्य के साथ मुनाफा उनकी हथेली पर रखा जायेगा।
अधोसंरचना विकास के लिए 5.97 लाख करोड़ रू. मिलेगा। 3 लाख किलोमीटर सड़के बनेगी। दो लाख करोड़ रू. स्मार्ट सिटी विकास के लिए मिलेंगे। सेहत लाख नियामत। दस करोड़ गरीब परिवारों के लिए पांच लाख करोड़ रू. सलाना स्वास्थ्य बीमा के लिए मिलेगा। क्षय रोग पीड़ितों को 500 रू. माहवार पौष्टिक आहार के लिए दिया जायेगा। हर परिवार को बीमारी के इलाज पर 5 लाख रू. सीमा में इलाज की सुविधा होगी। इसके लिऐ रोगी का आधार कार्ड ही ब्लैंक चेक होगा।
अब ब्लेक बोर्ड की जगह डिजीटल बोर्ड लेगा। एक लाख करोड़ रू. उच्च शिक्षा में लगी संस्थाओं के इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए मिलेगा जिससे इनका स्तर विश्वस्तरीय बनेगा।
लघु मध्यम उद्योगों के लिए 3794 करोड़ रू. मिलेंगे। 250 करोड़ रू. तक का कारोबार करने वाले उद्योगों को 25 प्रतिशत कर देना होगा। इस सीमा को बढ़ाये नहीं जाने से कारपोरेट घराने सरकार के बजट को हताशाजनक बता रहे हैं। विपक्ष का ध्यान इस ओर जाता तो उन्हें अपने कथन और आरोप की अतिश्योक्ति का आभास जरूर होगा, लेकिन इसकी अपेक्षा फिलहाल खुदगर्ज राजनेताओं से करना व्यर्थ है। भारत ने विश्व मंच पर बदलते मौसम की क्रूरता कम करने के प्रयासों में अग्रणी होने का संकल्प लिया। इसके लिए उज्जवला योजना का विस्तार एक प्रयास हैं आठ करोड़ महिलाओं को गैस कनेक्शन निशुल्क दिया जायेगा। कामकाजी महिलाओं की ईपीएफ हिस्सेदारी कम की जायेगी।
युवा शक्ति के लिए 70 लाख नये रोजगार सृजित होंगे। 50 लाख युवकों को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जायेगा। प्रौद्योगिकी के युग में कौशल विकास रोजगार, स्वरोजगार का गारन्टी कार्ड बन चुका है। बजट ने वरिष्ठ नागरिकों की जीवन की संध्या में उनकी बचत का लाभ उन्हें सुनिश्चित करने के लिए 50 हजार तक बैंक जमा में कर छूट दी है। पहले यह 10 हजार रू. थी। देश की रक्षा की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा गया है। इस वर्ष रक्षा बजट में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि की है जिससे यह राशि 2.95 लाख करोड़ हुई है। साथ ही रक्षा उत्पादन के स्वदेशीकरण की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाकर मेक इन इंडिया का सशक्तिकरण किया गया है। रक्षा उत्पादन के लिए प्रथक नीति लाई जा रही है जिससे निजी क्षेत्र का अवसर दिया जायेगा।
रक्षा उत्पादन के स्वदेशीकरण और मेकइनइंडिया मिशन को गति प्रदान करने के लिए दो औद्योगिक गलियारे बनाने की पृष्ठ भूमि भी बजट में दी गई है। इसके तहत प्रौद्योगिकी आयात के लिए विदेशी कंपनियांे को दावत दी जायेगी जो भारतीय साझेदारी में उद्योग लगायेगी। रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के साथ निर्यात की दिशा में भारत कदम बढ़ायेगा। इससे रोजगार के प्रचुर अवसर पैदा होंगे। रक्षा सेवाओं के आधुनिकीकरण पर 99 हजार करोड़ रू. खर्च होंगे। श्री नरेंद्र मेादी सरकार ने बीते वर्ष रक्षा कार्यों पर बजट से अधिक खर्च करके रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता साबित कर दी है। देश में करीब 24 लाख फौजी पेंशन भोगी है इनकी पेंशन के लिए 1 लाख, 8 हजार करोड़ रू. का प्रावधान किया गया है। इसे मिलाकर रक्षा बजट चार लाख करोड़ रू. पहुंचता है। इसकी अहमियत मोदी सरकार ने पहली बार आंकी है। इसकी धमक हमारे पड़ौसियों के जेहन में है और उनकी समझ में आ गया है कि भारत 1962 की गलत फहमी में नहीं है। वक्त की नजाकत को भारत समझ चुका है। इसका प्रतिफल देश को मिला है। जिस डे?गन के कदम सिर्फ आगे बढ़ने के अभ्यस्त थे कहा जाता था हिमालय हिल सकता है लाल सेना पीछे नहीं हटती। डोकलाम में पहली बार लाल सेना के कदम पीछे हटे हैं। भारत ने अपवाद बना दिया है।
बजट को लेकर प्रधानमंत्री का यह कहना है कि इससे नये भारत का स्वप्न साकार होगा इसलिए प्रासंगिक लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए कड़े निर्णय और अप्रिय निर्णय लिये जिससे अन्य बजट अवसरों की तरह वाहवाही कम मिली है, लेकिन ध्यान देने की बात है कि मोदी जी ने कडवी दवा ईजाद की है जो स्थाई असर देते हुए स्वाद कसैला कर देती है। फिर भी जनता उसे सहर्ष हजम करने को तैयार है, क्योंकि देश की जनता को भरोसा है कि नरेंद्र मोदी की नीयत साफ और इरादे नेक है। स्वहित की जगह राष्ट्र हित सर्वोच्च है। राष्ट्र प्रथम दलीय हित गौण होता है।
ग्रामीण भारत के ख्वाबों की नई इबारत, किसान को सूखा से मुक्ति
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Bhopal 👤By: Admin Views: 5812
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